कर्नाटक: दलित आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के काम करने पर सवर्णों ने जताया विरोध!

कर्नाटक: दलित आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के काम करने पर सवर्णों ने जताया विरोध!
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देश में व्याप्त जातिवाद की बातों को लोग भले ही नकारते हों लेकिन इसकी जड़ें इतनी गहरी हैं कि इसे आसानी से खत्म नहीं किया जा सकता। जातिवादी समाज की हकीकत बताने वाली एक और ख़बर कर्नाटक से सामने आई है। जहां 10 जून 2021 को बीदर के बसवकलायन के हट्याल गांव की 30 वर्षीय दलित महिला मिलाना बाई को कर्नाटक महिला एवं बाल विकास विभाग से एक आदेश मिला, जिसमें उनकी आंगनबाड़ी सहायिका के रूप में नियुक्ति की बात लिखी थी। मिलाना को आंगनबाड़ी में खाना पकाने और उसके रखरखाव के लिए काम पर रखा गया था। लेकिन कुछ ही समय बाद, कोरोना महामारी के चलते स्कूल बंद कर दिए गए थे।

मिलाना बाई के अनुसार, "जाति को लेकर समस्या रखने वाले स्थानीय ग्रामीणों ने उनकी जगह एक नया मराठा स्वयंसेवक नियुक्त किया है और मुझे पड़ोसी गांव सिरगापुर में स्थानांतरित करने के लिए कहा है, जो 10 किलोमीटर दूर है।"

द मूकनायक से मिलाना बाई के पति जयपाल राणे बताते हैं कि, "हमारे गांव में तीन आंगनबाड़ी हैं, और मेरी पत्नी को योग्यता (सामान्य श्रेणी) के आधार पर एक स्कूल में सहायक के रूप में भर्ती किया गया था, जो कि पड़ोस में है। लेकिन यहां ऊंची जाति के हिंदू समाज के लोग रहते हैं उन लोगों ने मेरी पत्नी को आंगनबाड़ी में काम करने और खाना बनाने की अनुमति नहीं दी।"

पहचान छिपाए जाने कि शर्त पर मिलाना बाई के परिवार के एक सदस्य ने बताया कि, "स्कूल बंद होने पर ग्रामीणों ने मिलाना बाई का भी अपमान किया था। लॉकडाउन के दौरान मिलाना किराने का सामान वितरण करने वाले लोगों में शामिल थी। उसका भी विरोध किया गया।"

हटयाल में बाल विकास परियोजना अधिकारी ने दावा किया कि, ग्रामीणों को आंगनबाड़ी सहायक की जाति से कोई समस्या नहीं थी, लेकिन वो ऊंची जाति के लोगों के लिए प्रतिनिधित्व चाहते थे। विभाग के अधिकारी ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए बताया कि, "गाँव के लोग चाहते थे कि उनकी जाति का एक सहायक हो, क्योंकि उन्हें दलित को रसोइया के रूप में नियुक्त किए जाने से दिक्कत थी। वे उनके ट्रांसफर की मांग कर रहे हैं। इस आंगनबाड़ी में दलित सहायिका को एक साल से अधिक समय हो गया है।"

मिलाना बाई और उनके परिवार ने आरोप लगाया है कि, सीडीपीओ के कार्यालय ने उन्हें पड़ोसी गांव सिरगापुर में स्वैच्छिक स्थानान्तरण करने के लिए कहा है। परिवार ने यह कहते हुए आगे बढ़ने से इनकार कर दिया कि वे आस-पास के गाँव में भी प्रमुख जाति के उत्पीड़न का शिकार हो सकते हैं। इसी दौरान ग्रामीणों द्वारा आंगनबाड़ी में काम करने के लिए एक और आंगनबाड़ी सहायक नियुक्त किया है।

मिलाना बाई बताती हैं कि, "सीडीपीओ (Child Development Project Officer)[बाल विकास परियोजना अधिकारी] और समाज कल्याण विभाग को बार-बार शिकायत करने के बाद, अधिकारियों ने गांव का दौरा किया और आश्वासन दिया कि मैं आंगनबाड़ी में काम करना जारी रख सकती हूँ। लेकिन, कुछ उच्च जाति के ग्रामीणों का कहना है कि वह बच्चों को स्कूल नहीं भेजेंगे।"

जबकि अधिकारियों के मुताबिक, गांव के तथाकथित ऊंची जाति के लोगों से उन्होंने कहा है कि वे दलित सहायिका को आंगनबाड़ी में काम करने दें। लेकिन ग्रामीणों ने बीदर में उपायुक्त कार्यालय का दरवाजा खटखटाने की धमकी दी है।

दलित कार्यकर्ता का कथित रूप से विरोध करने वाले ग्रामीणों के खिलाफ पुलिस ने अभी तक कोई मामला दर्ज नहीं किया है। द मूकनायक ने स्थानीय थाने में जानकारी के लिए फोन किया लेकिन कॉल का कोइ जवाब नहीं मिला।

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