जयपुर। राजस्थान हाई कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद 29 महीनों से फाइलो में दबे कंटीजेंसी प्लान को राजस्थान सरकार ने लागू करते हुए 19 फरवरी 2024 को "राजस्थान अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति पुनर्वास योजना 2024" अधिनियम बनाकर गजट नोटिफिकेशन जारी कर दिया, लेकिन इसकी क्रियान्विति को लेकर सरकार कितनी गंभीर है, यह दलित ग्राम विकास अधिकारी ललित रेगर की मौत से जुड़े मामले में देखा जा सकता है।
घटना के 20 दिन बाद भी मृतक के पीड़ित आश्रित परिवार को कंटीजेंसी प्लान का लाभ नहीं मिला। यह खुलासा सामाजिक संगठन दलित अधिकार केन्द्र राजस्थान की फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में हुआ है। केन्द्र के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एडवोकेट हेमंत मीमरोठ के नेतृत्व में एक दल घटना की तथ्यात्मक जांच की है। जांच अधिकारी पुलिस उपाधीक्षक राजेंद्र सिंह ने द मूकनायक से कहा, "कंटीजेंसी प्लान के तहत लाभ के लिए हमने आश्रितों के बैंक खाता नंबर व अन्य डिटेल ऑनलाइन अपलोड कर दिया है। लाभ की राशि सीधे पीड़ितों के खाते में आएगी। राशि मिली या नहीं इसकी जानकारी हमें नहीं होती है।"
जबकि एडवोकेट मीमरोठ ने द मूकनायक से कहा,"ग्राम विकास अधिकारी ललित रेगर पढ़ाई में होशियार था। सिविल सर्विस की तैयारी कर रहा था। परिवार के पालन पोषण की जिम्मेदारी उसी पर थी। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण उसने राजकीय सेवा में ग्राम विकास अधिकारी के पद पर जॉइन किया था। ताकि परिवार के पालन पोषण के साथ आईएएस की तैयारी कर सके। मृतक की तीनों बहनें भी पढ़ाई में होशियार हैं। उस पर बहनों की पढ़ाई की जिम्मेदारी भी थी। गरीबी का आलम यह था कि जब भी वह किसी राजकीय सेवा के लिए इंटरव्यू देने जाता तो पड़ोसियों या फिर अपने रिश्तेदारों से कपड़े उधार लेकर जाता था। उसके पास अच्छे कपड़े तक नहीं थे।"
दलित अधिकार केंद्र ने जिला कलेक्टर नीम का थाना को ज्ञापन सौंप कर बताया कि, मृतक ललित कुमार पुत्र हीरालाल रैगर झाडली गांव का निवासी था। अप्रैल, 2023 में राजकीय सेवा में ग्राम विकास अधिकारी के पद पर नियुक्त हुआ। चीपलाटा सरपंच व अन्य कर्मचारियों द्वारा सेवा नियमों के पदीय कर्तव्यों के विरुद्ध कार्य करने के लिए लगातार दबाव बनाया जा रहा था। जिसके बारे में उसने वरिष्ठ अधिकारियों विकास अधिकारी को भी अवगत करवाया, लेकिन उच्च अधिकारियों ने उसकी शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया और ना ही किसी प्रकार की कोई कार्यवाही की।
इसके अलावा विकास अधिकारी, पंचायत समिति, अजीतगढ़ ने निदेशालय स्थानीय निधि अंकेक्षण विभाग के पत्र संख्या 1302/7/2/2024 की पालना के लिए पत्र संख्या 392/8/2/2024 जारी कर मृतक ललित कुमार को ग्राम पंचायत में हुए गबन राशि 5,20,011 रू. के सबंध में सरपंच व तात्कालीन ग्राम विकास अधिकारी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाने के आदेश दिये। जिस पर मृतक ललित कुमार ने आदेशों की अनुपालना में सरपंच मनोज गुर्जर व तत्कालीन ग्राम विकास अधिकारी नरेन्द्र प्रताप सिंह के खिलाफ पुलिस थाना थोई में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई।
उक्त मामला दर्ज होने के बाद सरपंच मनोज गुर्जर व तत्कालीन ग्राम विकास अधिकारी नरेन्द्र प्रताप सिंह, पूर्व सरपंच बीरबल, ठेकेदार पोखर, सहायक कर्मचारी मंगल व जगदेव ने मृतक ललित कुमार को अत्यधिक परेशान व प्रताड़ित करना शुरू कर दिया, उसे झूठी कानूनी कार्यवाही में फंसाने की धमकियां देने लगे। मृतक ललित कुमार ने उक्त धमकियों व प्रताड़ना के संबंध 15 फरवरी को विकास अधिकारी, पंचायत समिति, अजीतगढ़ के समक्ष उपस्थित होकर उन्हें लिखित में अवगत करवाया और समुचित पुलिस सुरक्षा की मांग की, लेकिन विकास अधिकारी का व्यवहार मृतक के प्रति सकारात्मक नहीं रहा, विकास अधिकारी ने मृतक की शिकायत पर कार्यवाही करने के बजाय मृतक को ही धमकाया जिससे मृतक ललित कुमार मानसिक रूप से टूट गया था।
आरोप है कि, प्रभावशाली अधिकारियों का सहयोग मिलने के कारण आरोपियों के हौसले बुलंद हो गए और वे सभी लगातार उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित करने लगे। एफआईआर में नामजद आरोपियों एवं अन्य षड्यंत्रकारी कर्मचारियों को भली भांति पता था कि, मृतक अनुसूचित जाति का सदस्य है जिसे वह आसानी से शारीरिक, मानसिक रूप से अपमानित कर सकते हैं। आरोपियों ने साजिश कर मृतक को राजकीय आदेशों की पालना करने व ईमानदारी से काम करने पर गंभीर रूप से प्रताड़ित किया। जिसके कारण उसने 18 फरवरी को सुसाइड नोट जारी कर आत्महत्या कर ली।
घटना के संबंध में मृतक के परिजनों ने 18 फरवरी को पुलिस थाना थोई में धारा 306, 120-बी आईपीसी व 3 (2) (va) एससी/एसटी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज करवाई। इसके बाद पंचायती राज मंत्री मदन दिलावर के आदेशानुसार कार्यवाही के दौरान आरोपी सरपंच मनोज गुर्जर व पंचायत समिति अजीतगढ़ के सहायक विकास अधिकारी मंगल चंद सैनी, नरेन्द्र प्रताप सिंह जगदेव और पोखर मल को सेवा से निलंबित कर दिया और खंड विकास अधिकारी अजय सिंह नाथावत को एपीओ (पद स्थापन की प्रतीक्षा) किया गया है। इस मामले में पुलिस ने भी सरपंच मनोज गुर्जर व उसके पिता को गिरफ्तार किया है। दोनों जेसी (न्यायिक अभिरक्षा) में है।
दलित अधिकार केंद्र के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हेमंत मीमरोठ ने कहा, "एफआईआर दर्ज होने के बाद कंटीजेंसी प्लान के तहत पीड़ित आश्रित परिवार को आर्थिक व अन्य मदद उपलब्ध कराना था, लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों ने ऐसा नहीं किया। आज भी पीड़ित परिवार दहशत में है और उनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित है।"
दलित अधिकार केन्द्र के एडवोकेट सतीश कुमार ने बताते हैं, "राजस्थान अनुसूचित जाति और जनजाति पुनर्वास योजना 2024, के तहत एफआईआर दर्ज होने के सात दिवस में दलित पीड़ित आश्रित परिवार को गेहूं, चावल, दलहन आदि खाद्य सामग्री नहीं दी गई। बर्तन खरीदने के लिए एकमुश्त राशि नहीं दी गई। नियम 15 (क) के तहत परिवार को सुरक्षा भी नहीं दी गई। क्योंकि मृतक परिवार में अकेला कमाने वाला था। इसलिए परिवार को अविलंब रोजगार के संसाधन उपलब्ध कराना था, लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों ने ऐसा नहीं किया। नियमानुसार, आश्रित परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी मिलना चाहिए, लेकिन सरकार ने इस पर गौर नहीं किया। परिवार को पांच हजार रुपए मासिक पेंशन भी शुरू नहीं की गई। कृषि के लिए जमीन भी नहीं दी गई।"
उन्होंने कहा कि, "एससी, एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 यथा संशोधित अधिनियम, 2015 के तहत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) नियम 1995 यथा संशोधित नियम, 2016 के नियम 15 (1) के तहत बने. राजस्थान अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति पुनर्वास योजना 2024, अधिनियम के तहत अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग के पीड़ित, उनके आश्रितों को आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक पुनर्वास एवं गवाहों को तुरंत राहत उपलब्ध कराना था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। नियमों के अनुसार हत्या या मौत होने पर पोस्टमार्टम के तत्काल बाद निर्धारित राशि 8 लाख 25 हजार रुपए का 75 प्रतिशत राशि देना था, लेकिन नहीं दी गई। जबकि आरोपियों की मंशा दलित व्यक्ति को प्रताड़ित कर मौत के लिए मजबूर करना था।"
दलित अधिकार केंद्र ने जिला कलेक्टर से पुलिस थाना थोई में धारा 306, 120-बी आईपीसी. व 3 (2) (va) एससी/एसटी एक्ट में दर्ज एफआईआर में नामजद एंव अन्य साजिश कर्ताओं को आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध में अविलम्ब गिरफ्तार करने, एससी/एसटी (अ.नि) अधिनियम की धारा 15-ए, (10) के तहत प्रकरण का सम्पूर्ण अन्वेषण विडियोग्राफी में सम्पादित करवाने, उक्त प्रकरण की जांच इलेक्ट्रोनिक तकनीकी अपना कर पूर्ण करने, प्रकरण से सम्बधित समस्त पूर्व के अभिलेखिये साक्ष्यों को पत्रावली में शामिल करने, आरोपी मनबढ़, प्रभावशाली, उच्च राजनीतिक पहुंच वाले हैं एसे में जांच स्थानीय पुलिस से पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारियों की एसाईटी गठित कर करवाने, मुख्यमंत्री एक्सग्रसिया मद में से विशेष प्रकरण मानकर मृतक आश्रित परिवार को आर्थिक सहायता के रूप में कम से कम 50 लाख रुपये की सहायता दिलाने, एससी/एसटी (अ.नि) नियम 1995 के नियम 15 (1) (घ) सपठित नियम 12(4) (46) के अन्तर्गत मृतक के आश्रित अथवा परिवार के सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाने की मांग की है।
दलित अधिकार केंद्र ने मांग की है कि, अनुसूचित जाति/जनजाति पुर्नवास योजना-2024, के नियम
(क) के उपनियम 5 (3) (ii) (iii) के अन्तर्गत पीड़ित के आश्रितों को 3 माह के लिए गेहूं, चावल, दलहन, बर्तन आदि 7 दिवस में उपलब्ध करवाना सुनिश्चित करें।
(ख) के उपनियम 5 (3) (ii) (iii) के अन्तर्गत पीड़ित के आश्रितों के बच्चों को आवासीय विद्ययाल में अविलम्ब प्रवेश दिलवाया जावे।
(ग) के उपनियम 5 (3) (ii) (iii) के अन्तर्गत पीड़ित के आश्रितों को शहरी क्षेत्र में उचित मुल्य कि दुकान का आवंटन किया जावे।
(घ) के उपनियम 5 (3) (i) के अन्तर्गत पीड़ित के आश्रितों को, मृतक के पीड़ित परिवार को अविलम्ब पुलिस सुरक्षा उपलब्ध करवाई जाना सुनिश्चित किया जावे।
पीड़ित परिवार को त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए मामले को "केस ऑफिसर स्कीम" के तहत शामिल कर मामले में अविलम्ब "केस ऑफिसर" नियुक्त किया जावे। एससी/एसटी (अ.नि) नियम 1995 के नियम-7 के अन्तर्गत उपरोक्त प्रकरण की जाँच 15 दिवस में पूर्ण कर एससी/एसटी स्पेशल कोर्ट में चालान पेश करने की कार्रवाई की जावे। जिला नीमकाथाना में एससी/एसटी (अ.नि) नियम 1995 के नियम 16 के अंतर्गत जिला एवं सतर्कता समिति का गठन अविलम्ब किया जावे तथा एससी/एसटी (अ. नि) अधिनियम के अन्तर्गत पंजीबद्ध समस्त प्रकरणों की विधि सम्मत सूक्ष्मता व गहनता से पुनरावलोकन किया जावे। प्रकरण की गंभीरता के मद्देनजर जिला कलेक्टर, नीमकाथाना उक्त प्रकरण मे एससी/एसटी (अ.नि) नियम 1995 के नियम-4 (5) (6) के तहत निशुल्क पीड़ित की इच्छा अनुसार विशेष लोक अभियोजक नियुक्त किया जाए।
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