BHU में दलित छात्र का उत्पीड़न; संघर्ष और SC आयोग के दखल से मिला एडमिशन, जानिए क्या है पूरा मामला?

विश्वविद्यालय प्रशासन छात्र के बी.कॉम प्रथम सेमेस्टर के एक पेपर को जांचना (मूल्यांकन) भूल गया था, जिसके चलते उनकी मार्कशीट अधूरी रह गई। एससी आयोग के बाद विवि ने उनका प्रवेश ले लिया।
BHU में दलित छात्र का उत्पीड़न; संघर्ष और SC आयोग के दखल से मिला एडमिशन, जानिए क्या है पूरा मामला?
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नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) में एक दलित छात्र के साथ हुए जातिगत भेदभाव का ताजा मामला सामने आया है, जहां बी.कॉम 2021-2024 बैच का एक दलित छात्र, प्रशासनिक लापरवाही और अन्याय का शिकार हुआ। विश्वविद्यालय द्वारा छात्र के एक पेपर का मूल्यांकन न होने के कारण उनकी मार्कशीट अधूरी रह गई और उनका एम.कॉम में प्रवेश निरस्त कर दिया गया। लेकिन राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) की हस्तक्षेप से अंततः उन्हें न्याय मिला।

यह घटना न केवल एक व्यक्ति के संघर्ष की कहानी है, बल्कि यह उस जातिगत भेदभाव और प्रशासनिक उदासीनता की भी कहानी है, जो देश की शीर्ष विश्वविद्यालयों में भी आज तक विद्यमान है।

छात्र निर्भयचन्द अहिरवार ने अपनी UG की पढ़ाई (बी.कॉम) में सभी सेमेस्टर की परीक्षाएं सफलतापूर्वक उत्तीर्ण की थीं और CUET-PG परीक्षा भी पास कर ली थी। एम.कॉम में प्रवेश लेना चाहते थे। लेकिन उन्हें अंदाजा नहीं था कि विश्वविद्यालय प्रशासन की गलती उनके भविष्य पर संकट खड़ा कर देगी। उनके बी.कॉम प्रथम सेमेस्टर के एक पेपर जांचना (मूल्यांकन) विश्वविद्यालय भूल गया, जिसके चलते उनकी मार्कशीट अधूरी रह गई। इसके चलते उन्हें न केवल सालभर की पढ़ाई दोहराने (ईयरबैक) का सुझाव दिया गया, बल्कि 18 जुलाई 2024 को उनका एम.कॉम प्रवेश भी निरस्त कर दिया गया।

विश्वविद्यालय की यह स्थिति एक गंभीर चूक को दर्शाती है, लेकिन इससे भी गंभीर बात यह थी कि विश्वविद्यालय के अधिकारियों, कुलपति, रजिस्ट्रार समेत अन्य जिम्मेदार अधिकारियों ने उनकी शिकायतों पर कोई ध्यान नहीं दिया। पत्र, ईमेल, और व्यक्तिगत मुलाकातों के बावजूद, निर्भय को उनकी समस्या के समाधान के लिए लगातार टालमटोल का सामना करना पड़ा।

इस अन्याय से हार मानने की बजाय, निर्भय ने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) का सहारा लिया। द मूकनायक से बातचीत में निर्भय ने बताया, की उन्होंने 28 जुलाई 2024 को आयोग और इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने दो मुख्य मांगे रखीं: पहला, उनके बी.कॉम के अधूरे अंकों को जारी किया जाए, और दूसरा, उनके एम.कॉम प्रवेश को बहाल किया जाए। उन्होंने इस मुद्दे में विश्वविद्यालय प्रशासन की जवाबदेही तय करने की भी मांग की।

8 अगस्त 2024 को एससी आयोग ने बीएचयू के कुलपति को नोटिस जारी किया और मामले में संज्ञान लिया। इस दखल का सकारात्मक परिणाम यह हुआ कि 14 अगस्त 2024 को निर्भय के अंक पोर्टल पर अपडेट कर दिए गए। हालांकि, इसके बावजूद भी BHU प्रशासन ने उनके एमकॉम प्रवेश पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।

मार्कशीट मिलने के बावजूद, प्रवेश से वंचित रहने पर निर्भय ने 27 अगस्त 2024 को फिर से एससी आयोग में याचिका दायर की। यह याचिका इस बात का प्रतीक थी कि भले ही छात्रों को अपना हक पाने के लिए न्यायिक हस्तक्षेप की जरूरत क्यों न पड़े, लेकिन उनकी आवाज सुनी जानी चाहिए। इसके बाद, BHU प्रशासन को एक और नोटिस जारी किया गया और अंततः 5 सितंबर 2024 को उन्हें एम.कॉम में प्रवेश मिल गया।

इस मामले में एससी आयोग की भूमिका महत्वपूर्ण रही। यदि निर्भय ने आयोग का सहारा नहीं लिया होता, तो शायद उनका मामला विवि प्रशासन की फाइलों में ही दबकर रह जाता। एससी आयोग का हस्तक्षेप उस संवैधानिक सुरक्षा को याद दिलाता है, जो देश के दलित और उत्पीड़ित वर्गों के लिए बनाई गई है। यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी प्रकार के भेदभाव के खिलाफ लड़ने का रास्ता खुला हो।

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