यूपी के पीलीभीत में कई गांव के दलित अब भी बुरी तरह जातीय भेदभाव की प्रताड़ना झेल रहे हैं। इन गांवों में न तो कोई दलित के हाथ का पानी पीता है, न ही उन्हें पीने के लिए अपने बर्तनों में पानी देता है। उच्च जाति के लोग बैठने के लिए कुर्सी तक नहीं देते। गांव में अनुसूचित जाति के लोगों को शादी ब्याह जैसे पारिवारिक समारोह में आयोजन के लिए किराए पर टेंट आदि का सामान भी नहीं दिया जाता है। गांव में बाल कटाने वाले सैलून पर नाई भी दलितों की बाल और दाढ़ी बनाने में कतराते हैं। वह उनका सार्वजनिक रूप से बहिष्कार करते हैं। इससे जुड़ा एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया है। इस मामले को लेकर एसडीएम ने कार्रवाई करने की बात कही है।
जानिए क्या है पूरा मामला?
यूपी के पीलीभीत में अमरिया क्षेत्र में बरहा और मझलिया गांव पड़ते हैं। दोनों गांवों में 1000 से ऊपर मिली-जुली आबादी रहती है। इस गांव में 40 से ज्यादा दलित परिवार रहते हैं। जिला मुख्यालय से दोनों गांव की दूर 20 किमी है। गांव के एक किनारे पर दलितों के घर हैं। दोनों अगल-अलग ग्राम पंचायतों में आते हैं। दोनों के ग्राम प्रधान मुस्लिम समुदाय से हैं।
इस पूरी घटना को लेकर भीम आर्मी के सैयद आजम ने दो दिन पहले ट्वीट कर लिखा, "पीलीभीत पुलिस मामले पर एक्शन ले। दलितों के बाल काटने से मना किया जा रहा है, उन्हें टेंट का सामान नहीं दिया जा रहा है। अगर पुलिस इस पर एक्शन नहीं लेगी तो भीम आर्मी सड़क पर उतकर आंदोलन करेगी।" उनके इस ट्वीट के बाद मामला गरमा गया।
आइए सुनते हैं ग्रामीणों की जुबानी उनका दर्द
इस गांव में अनिल कुमार रहते हैं। अनिल बताते हैं, "गांव का नाई हमारे और हमारे बच्चों के बाल काटने से मना कर देता है। कहता है कि तुम्हारे बाल काटे तो हमारी बस्ती के लोग हमारा हुक्का-पानी बंद कर देंगे। ज्यादा दबाव डालते हैं तो नाई दुकान ही बंद कर देते हैं। मजबूरी में हम लोग गांव से 5-7 किमी दूर जाकर खुद के और बच्चों के बाल कटवाते हैं। यह कई वर्षों से चला आ रहा है। लेकिन अब समय बदल गया है, हमारे बच्चे हमसे पूछते हैं कि हम लोगों के साथ इस तरह का भेदभाव क्यों किया जा रहा है। तो जवाब देना बड़ा मुश्किल होता है। अपने ही बच्चों की सामने हीनता की भावना आ जाती है।"
रवि कुमार कहते हैं, "हमारे समाज के बच्चों की शादी में टेंट वाले सामान और बर्तन नहीं देते। टेंट मालिक कहते हैं कि तुमने बर्तन छू लिये तो बाकी लोग न हमारे बर्तन लेंगे न तो टेंट। इसलिये तुम लोगों को बर्तन नहीं दे सकते। हम लोग मजबूरी में गांव से करीब 10 किमी दूर शहरी क्षेत्र में जाकर टेंट सामान और बर्तन लाते हैं। तब जाकर शादी करवा पाते हैं।"
"बर्तन कम पड़ जाएं तो गांव में कोई मदद करने वाला नहीं है, एक दूसरे के घरों से बर्तन वगैरह लाकर काम चलाते हैं।" सुरेंद्र कहते हैं, "गांव सामाजिक रूप से दो तीन हिस्सों में बंटा हुआ है। यहां मुस्लिम, सवर्ण, ओबीसी और दलित समाज के लोग हैं। सवर्ण और ओबीसी तो मिल बांटकर अपने काम कर लेते हैं। मुसलिम लोगों को ज्यादा किसी बात से मतलब नहीं रहता। हम लोग अछूते से हो जाते हैं। गांव में जो दुकानें है वे ज्यादातर सवर्ण या ओबीसी कैटेगिरी के लोगों की ही है। नाई अपने को बड़ा मानते हैं इसलिए हमारे बाल नहीं काटते।"
छठी हो या बारात, कोई कुर्सी भी नहीं देता
इस गांव में अनीता रहती हैं। अनीता ने बताया ,"घर में छठी का कार्यक्रम हो या फिर शादी किसी भी कार्यक्रम के लिये टेंट वाले कुर्सी और मेज नहीं मिलती है। वह सब हमे अछूत कहकर सामान देने से मना कर देते हैं। हम लोग अमरिया के बाहर से कुर्सी मेज लाते हैं। हमें कोई आयोजन करने से पहले इंतजाम के बारे में ज्यादा सोचना पड़ता है।"
नाई बोले- हमारे पुरखों ने भी नहीं काटे दलितों के बाल
इस गांव में हजामत बनाने वाले नाई का एक वीडियो वायरल हुआ है। नाई का कहना है "हमारे बाबा के जमाने से दलित समाज के बीच ये दूरियां चली आ रही हैं, हमें तो ये भी याद नहीं कि कब हमारे पुरखों ने दलित समाज के लोगों के बाल काटे थे। अगर हम लोग आगे बढ़कर नई पहल करने की कोशिश भी करते हैं तो हमारा समाज हमारा ही बहिष्कार करने की धमकी दे देता है। जिनकी जाति का पता नहीं चलता उनके तो बाल कट जाते हैं, लेकिन जिन्हें जानते हैं कि ये वाल्मीकि हैं तो उसके बाल नहीं काटते। इसलिए हम भी वाल्मीक समाज के लोगों को लौटा देते हैं। विवाद न हो इसलिए दुकान ही बंद कर देते हैं।"
बाल न कटवाने पर टीचर बच्चों को डांटते हैं
इस गांव में फैली छुआछूत के कारण बच्चों को भी बहुत कुछ सहना पड़ता है। गांव के एक बच्चे ने बताया, "हम लोगों को स्कूल में टीचर डांटती हैं। वह हमें बाल कटवाकर स्कूल आने को कहती हैं। बाल न कटवाने के कारण हमें स्कूल में भी प्रवेश नहीं दिया जाता है। मजबूरी में पापा 7 से 8 किमी दूर ले जाकर हमारे बाल कटवाते हैं। उसके बाद हम लोग स्कूल जा पाते हैं। जब बाल नहीं कटते तो हम डर के मारे स्कूल भी नहीं जाते कि टीचर डांट देंगी।"
पुलिस द्वारा मामला जानकारी में आया
मझलिया गांव के प्रधान जुबेर मलिक अनजान बनते हुए कहते हैं "मामला मेरे संज्ञान में पुलिस द्वारा लाया गया था। दो तीन समाजों के बीच का मामला है, ऐसे में बहुत ज्यादा मेरी तरफ से कुछ किया भी नहीं जा सकता। हां मैं लगातार इस भेदभाव को समाप्त करने की कोशिश कर रहा हूं, कहीं भी ऐसा नहीं होना चाहिए।"
क्या बोले जिम्मेदार?
इस पूरे मामले को लेकर एसडीएम अमरिया सौरभ ने बताया, "अभी तक इस मामले में कोई लिखित शिकायत नहीं मिली है। सोशल मीडिया और आपके माध्यम से ही पता चला है, दोनों गांवों के ग्राम प्रधान से पता कराकर दलित समाज के साथ हो रहा भेदभाव बंद कराया जाएगा। खुद इस मामले पर नजर रखूंगा।"
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