बाबा साहब आंबेडकर पर जातिगत टिप्पणियां करने वाले गीता प्रेस को गाँधी शांति पुरस्कार देना दलित समाज का अपमान: शाहनवाज़ आलम

प्रदेश भर से राष्ट्रपति को ज्ञापन भेजकर अल्पसंख्यक कांग्रेस ने हस्तक्षेप की मांग की
शाहनवाज़ आलम
शाहनवाज़ आलमफोटो साभार- फ़ेसबुक हैंडल
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लखनऊ। अल्पसंख्यक कांग्रेस ने देश के प्रथम क़ानून मंत्री बाबा साहब आम्बेडकर पर अतीत में जातिगत टिप्पणियां करने वाले गीता प्रेस को केंद्र सरकार द्वारा 2021 का गाँधी शांति पुरस्कार देने के निर्णय के खिलाफ़ राष्ट्रपति को ज्ञापन भेजकर हस्तक्षेप करने की मांग की है।

लखनऊ मुख्यालय से जारी बयान में अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने कहा कि गीता प्रेस प्रकाशन ने अपनी पत्रिकाओं के माध्यम से लगातार देश के प्रथम क़ानून मंत्री और संविधान ड्राफ्टिंग कमेटी के चेयरमैन बाबा साहब अंबेडकर पर जातिगत टिप्पणियों वाले लेख छापकर उन्हें अपमानित किया है। उदाहरण के बतौर इस प्रकाशन की पत्रिका 'कल्याण' के जून 1948 के अंक में प्रकाशित लेख हिंदू कोड बिल: हिंदू संस्कृति के विनाश का आयोजन' को देखा जा सकता है जिसमें बाबा साहब पर जातिगत टिप्पणी करते हुए लिखा गया 'स्वयं हीनवर्ण के होते हुए उन्होंने बुढ़ापे में एक ब्राह्मण महिला से शादी की और हिंदू कोड बिल पेश किया'।

उन्होंने कहा कि बाबा साहब के खिलाफ़ इस तरह की जातिसूचक भाषा का इस्तेमाल हमारे उन संवैधानिक मूल्यों के विरुद्ध है जिसपर देश आस्था रखता है। सरकार को बताना चाहिए कि आधुनिक भारत के निर्माताओं में से एक अहम शख्सियत के खिलाफ़ ऐसी अमर्यादित भाषा लिखने वालों को सम्मानित करके वो क्या संदेश देना चाहती है।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि आज ज़िला अधिकारियों के माध्यम से राष्ट्रपति को प्रेषित ज्ञापन में मांग की गयी कि सरकार के फैसले को बदलने के लिए हस्तक्षेप करें। उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज से आने वाली राष्ट्रपति से उम्मीद की गयी है कि वो बाबा साहब का अपमान नहीं होने देंगी।

उन्होंने कहा कि दलित समाज समझ रहा है कि बाबा साहब के सामाजिक परिवर्तन के दर्शन को कमज़ोर करने और उन्हें अपमानित करने के लिए ही मोदी सरकार ने इस प्रकाशन को पुरस्कृत करने का काम किया है। 2024 के लोकसभा चुनाव में दलित समाज बाबा साहब के इस अपमान का बदला भाजपा को हरा कर लेगा।

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