राजस्थान के बीकानेर जिले से आने वाली दलित महिला बॉडीबिल्डर प्रिया सिंह (Bodybuilder Priya Singh) ने हाल ही में देश में ही नही, बल्कि विश्व में भी भारत का परचम लहराया है।
प्रिया सिंह द मूकनायक को बताती हैं, "बच्चों का बचपन जहां हंसी-खुशी और खेल में गुजरता है वहीं मेरा बचपन में ही बालविवाह हो गया था। यह वक्त मेरे लिए चुनौतीपूर्ण था। मैं राजस्थान जैसे राज्य के बीकानेर जिले से आती हूं, और हमारे यहां आज भी सामाजिक परिवेश को देखते हैं तो यहां महिला (सास), महिला (बहू) से घूंघट निकाल कर रखती है, ससुर के सामने तक नहीं जाती। सास, घर के दामाद के सामने से नहीं गुजरती है, यह सब कुछ डिजिटल इंडिया में हो रहा है।"
वह कहतीं हैं, "जिस समाज में ऐसे लोग रहते हैं जो संकुचित मानसिकता रखने वाले हो, वहां घूंघट को छोड़कर बिकनी पहनना और विश्व में भारत का नाम रोशन करना सूकून देता है. मगर यहां भारत में आने के बाद एयरपोर्ट पर सिर्फ घरवालों व दोस्तों का पंहुचना, और मैने जितना कदम आगे बड़ा उठाया उतना लोगों की सोच को नही बदल पाई, ये सब मुझे खलता है. यहां पर आज किस तरह जातिवाद है वह दर्दनाक है, अगर यह किसी और समाज की बेटी ने किया होता तो सोचिए जनता उसको सर पर उठा लेती।"
"राजस्थान में तो बेटियां घूंघट उठा भी लेती हैं तो मारने की धमकियां तक मिल जाती है, और बहू को चूल्हा-चौका करने तक सीमित रखा जाता हैं. जब मैंने घरवालों से पूछा कि मैं सिर्फ जिम जाकर जिम करू! यहां तक सीमित नही रहना चाहती, मुझे राज्य स्तर और राष्ट्रीय स्तर पर खेलना है, तो वहां मेरा परिवार मेरे साथ कंधा मिलाकर साथ खड़ा था. उन्होने कहा ठीक है दोनो करो. मैंने उनको बताया बिकनी पहनना पड़ेगा वो फिर भी मेरे साथ खड़े रहें इसलिए आज यहां तक पहुंच पाई. मेरे परिवार ने मुझे हिम्मत दी. बेटियों को अवसर नही मिल पाते, ये बड़े शर्म की बात है," प्रिया कहती हैं।
"बेटियों को समाज पर बोझ समझा जाता है, लेकिन एक सच बात, और यह मेरे दिल की बात है कि - 'मेरी बेटी मेरा अभिमान' यह बात हमेशा मेरे हर वक्त साथ रहती है. जब मैं खाना छोड़ देती हूं, जब मैं अन्न को छोड़ देती हूं, मेरा मूड ठीक नही रहता, तब जब मेरा पूरा ध्यान बाडी पर रहता है. तब यही बात एक मेरी साथी दोस्त की तरह ध्यान रखती हैं. मेरे परिवार में बेटे और बेटी में भेदभाव होता था, मैं इसे देखती थी और तब से ही सोच रही थी कि इसे अब बंद किया जाना चाहिए। बेटियों के प्रति सोच बदलना जरुरी है. इसलिए आज देख लीजिए मैंने जो ठाना वह किया, जिससे पूरी दुनियाभर में भारत को सम्मान मिल रहा है. मेरे लिए ये सब खुशी वाला है," प्रिया ने द मूकनायक को बताया।
"बॉडीबिल्डिंग मर्दो का खेल है. ऐसे चुनौती वाले राज्य में यह करना मेरे लिए पत्थर को तोड़ने जैसा था. क्योंंकि इसमें शायद एक पुरूष को उतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती जितनी एक महिला को करनी पड़े। क्योंकि एक मर्द की बॉडी पहले से ही उस शेप में रहती है, जबकि एक महिला को पुरूष से पांच गुना अधिक मेहनत करनी पड़ती है. यह सब कुछ बिल्कुल भी आसान नही है. लेकिन जितनी मेहनत की उतना सम्मान नहीं मिला," प्रिया ने कहा.
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