जयपुर। चुनावी घोषणाओं के साथ ही राजनैतिक पार्टियों का दलित प्रेम उमड़ने लगता है। नेता दलितों के घर जाकर खाना खाने, झाड़ू लगाने व पैर धोने तक से गुरेज नहीं करते। चुनाव समाप्त होने के साथ इनका प्रेम बंधन टूटने लगता है। वोट के लिए जिनके घर भोजन किया अब उनके हाथ से पानी पीने तक पर ऐतराज होता है। इतना ही नहीं दलितों के घोड़ी पर बैठने व मूंछ रखना तक स्वीकार नहीं किया जाता। दलित के मूछ रखने, घोड़ी चढ़ने व मटकी से पानी-पीने पर मारपीट व हत्या तक की जाती है।
ताजा मामला करौली जिले के गढ़मोरा पुलिस थाना इलाके से सामने आया है। जहां बामौरी गांव में दलित परिवार के दूल्हे की घोड़ी पर निकासी के लिए विधायक व राजस्थान एससी आयोग के चेयरमैन खिलाड़ी लाल बैरवा को ट्वीट कर पुलिस सुरक्षा की गुहार लगानी पड़ी। इससे राजस्थान में दलितों की सुरक्षा व आजादी का अंदाजा लगाया सकता है।
जानकारी के अनुसार, करौली जिले के गढ़मोरा पुलिस थाना क्षेत्र के बामौरी गांव के जितेंद्र कुमार बैरवा के बड़े भाई का 22 फरवरी को विवाह है। बारात बामौरी गांव से लगभग 25 किलोमीटर दूर मकनपुर जाएगी।
जितेंद्र कुमार बैरवा ने गांव के सवर्ण जाति के 4 लोगों को नामजद करते हुए भीम आर्मी के नाम एक चिट्ठी लिखी है। इस चिट्ठी में घोड़ी पर निकासी की पूछने पर सवर्ण जाति के लोगों द्वारा मना करने की बात कही गई है।
दलित दूल्हे की बिन्दौली (घोड़ी पर निकासी) मनाही के मामले को लेकर द मूकनायक ने दूल्हे के भाई जितेंद्र कुमार बैरवा से बात की।
इस पर बैरवा ने कहा कि यह सच है कि हमने गांव के सवर्ण जाति के लोगों से मेरे भाई की शादी में घोड़ी पर निकासी निकालने के लिए पूछा है, लेकिन उन लोगों ने मना कर दिया।
आखिर लोकतंत्र में शादी में घोड़ी पर बैठने के लिए किसी से अनुमति लेने की क्यों जरूरत पड़ी? इस सवाल पर जितेंद्र कुमार बैरवा ने कहा कि हमारे गांव में किसी दलित दूल्हे की घोड़ी पर बिन्दौली नहीं निकाली गई है। लगभग 6 - 7 साल पहले हमारे समाज के लोगों ने बिन्दौली के लिए ब्राह्मणों से अनुमति मांगी थी। तब भी इन लोगों ने मना कर दिया था। (हालांकि जितेंद्र इस बात की प्रमाणिकता की पुष्ठि नहीं कर पाए।)
जितेंद्र ने कहा कि हम लोग दिल्ली में रहकर मजदूरी करते हैं। अब हमारे घर में लड़के की यह पहली शादी है। हमारी इच्छा है कि मेरे बड़े भाई की शादी धूमधाम से हो। उसकी भी घोड़ी पर बैठा कर गांव में बिन्दौली निकाले।
उन्होंने कहा कि हमें आशंका है कि जब पूर्व में सवर्णों ने दलित दूल्हे को बिन्दौली नहीं निकालने दी थी। हमें भी पूछने पर मना कर दिया है। हमने घोड़ी पर बिन्दौली निकली तो बारात में विघ्न डाल सकते हैं। मारपीट भी हो सकती है। इस लिए पुलिस की शरण ली है।
उन्होंने कहा कि हमारी शिकायत पर पुलिस गांव में आई थी। बारात का विरोध करने वालों को चिन्हित कर समझाइश कर दी है। हमें पुलिस ने भरोसा दिया है कि आप घोड़ी पर बैठा कर दूल्हे की बिन्दौली निकालें।
पूरे मामले पर द मूकनायक ने दलित परिवार के दूल्हे व बारात की सुरक्षा को लेकर गढ़मोरा थानाधिकारी जगदीश सागर से बात की। इस पर एसएचओ ने भी माना कि यहां बारात के साथ कुछ भी अनहोनी की आशंका से इनकार नहीं कर सकते। ऐसे में 22 फरवरी को दलित दूल्हे की बिन्दौली में अतिरिक्त पुलिस जाब्ते के साथ वह खुद रहने वाले हैं। एसएचओ ने कहा कि इस संबंध में उन्हें पीड़ित परिवार ने सूचना दी थी कि उनकी बारात में व्यवधान हो सकता है। कुछ लोग दूल्हे को घोड़ी पर नहीं चढ़ने देंगे। एसएचओ कहते हैं कि "सूचना पर मैं खुद बामोरी गांव पहुंचा था। मैंने आशंकित परिवार से बात की है। उन्हें भरोसा दिलाया कि आप घोड़ी क्या हाथी पर बारात निकाले कोई व्यवधान नहीं होगा। हम उन्हें स्वतंत्रता के साथ बारात निकालने का भरोसा देकर उस परिवार पर कोई अहसान नहीं कर रहे हैं। यह हमारा कर्तव्य है तथा उस परिवार का अधिकार है।"
एसएचओ जगदीश सागर ने कहा कि बारात में व्यवधान करने वाले सम्भावितों को चिन्हित कर आधा दर्जन व्यक्तियों के पाबन्द करवा रहे हैं ताकि दलित की शादी में घोड़ी चढ़ने पर कोई विवाद नहीं हो। उन्होंने कहा कि 22 फरवरी को बारात वाले दिन में खुद मौके पर रहूंगा। सुरक्षा की दृष्टि से उच्च अधिकारियों से अतिरिक्त पुलिस जाब्ता भी मांगा है।
गढ़मोरा थानाधिकारी ने द मूकनायक से कहा कि मुझे बामोरी गांव के बैरवा समाज के लोगों ने बताया कि अभी तक इस गांव में किसी दलित दूल्हे की घोड़ी पर बारात नहीं निकली है। यह बड़ी बात है। हालांकि एसएचओ ने आगे यह भी कहा कि कभी किसी दलित ने घोड़ी पर बारात निकाली हो और किसी ने इन्हें रोका हो, ऐसा भी हमारे पुलिस थाने में कोई मामला रिकॉर्ड में नहीं है। ना ही गांव वालों ने ऐसी किसी घटना की तारीख व साल की जानकारी दी है।
उन्होंने कहा कि ऐसे में हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि बारात में व्यवधान नहीं होगा। बिना सामने आए कोई भी बारात में पत्थर फेंक दे ऐसा भी हो सकता है। इस संबंध हमने गांव वालों को सूचित कर दिया है।
एसएचओ ने कहा कि आधा दर्जन लोगों को पाबंद करवा दिया गया है। दो बार गांव वालों के साथ बैठक कर समझाइश भी की गई। अभी तक दलित दूल्हे के घोड़ी चढ़ने के विरोध में कोई खुल कर सामने नहीं आया है। फिर भी हम पूरी निगरानी रखे हैं। बारात में कोई व्यवधान का प्रयास करेगा तो कानूनी कार्रवाई करेंगे।
एएनआई की खबर के अनुसार, फरवरी 2018 में भीलवाड़ा जिले के गोवर्धनपुर गांव में दलित दूल्हे को घोड़ी चढ़ने पर पीटा गया और उसी गांव के कुछ लोगों ने उसे घोड़ी से उतरने के लिए मजबूर किया था। फरवरी 2020 में बूंदी के सगावदा गांव में पुलिस पहरे के बीच दलित दूल्हे की बिंदोरी (बारात निकासी) निकाली गई थी। बूंदी के गांव सगावदा में यह पहली घटना नहीं थी। इस घटना से 2 वर्ष पहले भी एक पुलिस कांस्टेबल ने अपनी शादी की बिंदोली में घोड़ी पर बैठने को लेकर पुलिस सुरक्षा मांगी थी। इसके बाद कड़ी पुलिस सुरक्षा में दलित पुलिसकर्मी दूल्हे की घोड़ी पर बिन्दौली निकाली गई।
6 मार्च 2018 को प्रकाशित बीबीसी की एक खबर के अनुसार राजस्थान के गृह मंत्री रहते गुलाबचंद कटारिया ने विधानसभा में एक दिलचस्प, लेकिन चिंताजनक जानकारी दी थी। इस रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने बताया था कि राजस्थान प्रदेश में पिछले तीन साल में (2018 से पूर्व) दलित दूल्हों को घोड़ी पर चढ़ने से रोकने की 38 घटनाओं में मुकदमें दर्ज हुए। ये घटनाएं रुक नहीं रही हैं।
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