जानें देवदासी बनने की प्रक्रिया, और क्या है इस पर बना कानून। नारी अस्मिता को रौंदने वाली सदियों पुरानी प्रथा आज भी क्यों है जारी!
नई दिल्ली। भारत में इस वक्त सबसे ज्यादा चर्चा देवदासी प्रथा की हो रही है। हाल ही में दैनिक भास्कर ने देवदासी प्रथा के कारण दुर्दशा में जीवन जी रही महिलाओं पर एक खबर की है। जिस पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने स्वतः संज्ञान लेते हुए दक्षिण भारत के छह राज्यों समेत केंद्र सरकार के दो मंत्रालयों को नोटिसा भेजा है। जिसमें कर्नाटक, केरल, तमिलनाडू, आंध्रप्रदेश, तेलगांना और महाराष्ट्र शामिल है। इसके साथ ही केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय को भी नोटिस भेजा गया है।
कौन होती हैं देवदासी?
देवदासी वह महिला होती जिसे उनके माता-पिता मंदिर में दान कर देते हैं। इस कुंवारी कन्या का विवाह मंदिर के देवता से कराया जाता है और उसके बाद वह जीवनभर किसी अन्य पुरुष से शादी नहीं कर सकती है। देवता से विवाह हो जाने के बाद उसे मंदिर की सेवा के लिए रख लिया जाता था। जिसके बदले में उसे थोड़ी बहुत आर्थिक मदद दी जाती है। जिससे की वह अपना जीवनयापन कर सकें। देवदासी बनने की प्रक्रिया में प्रत्येक देवदासी के लिए एक पुरोहित होते हैं। जो देवता से मिलाने के नाम पर उससे शारीरिक संबंध बनाते हैं। यही प्रक्रिया आज तक चली आ रही है। संबंध बनाने के दौरान जब वह गर्भवती हो जाती तो उन्हें छोड़ दिया जाता है। जिससे उनका जीवनयापन करना मुश्किल हो जाता है। यहां तक कई देवदासियां वेश्यावृति में आ जाती हैं। ताकि, अपना और अपने बच्चों का पेट पाल सकें।
दैनिक भास्कर की खबर के अनुसार, बदले समय के साथ इलाके के रसूखदार और दबंग लोग भी अपनी पसंदीदा लड़की को देवदासी बनाने लगे। ताकि उनके साथ शारीरिक संबंध बना सकें। इसके लिए वह सुदंर लड़कियों को जबरदस्ती देवदासी बनाने के लिए कहते थे ताकि उसके देवदासी बनने के बाद उससे संबंध बना सकें। वह लोग जब तक देवदासी की शारीरिक क्षमता ठीक रहती है तब तक उसका इस्तेमाल करते हैं, लेकिन उसके प्रेग्नेंट हो जाने के बाद उसे छोड़ देते हैं। स्थिति ऐसी हो जाती की देवदासी को भिक्षा मांगने के लिए विवश हो जाना पड़ता।
देवदासी बनने की प्रक्रिया
देवदासी बनने की प्रक्रिया एक कुंवारी लड़की को मंदिर में दान करने से शुरू होती है। प्रक्रिया में, मंदिर में सबसे पहले काला कंबल बिछाया जाता है। उसके ऊपर देवदासी बनने वाली महिला को बैठाया जाता है। उसके बाद उसे सफेद साड़ी और हरे रंग की चूड़िया और चांदी के कंगन पहनाए जाते हैं। इसके बाद उसके चारों कोनों पर पडलगी यानि की बांस की टोकरी रखी जाती है और एक टोकरी उसके सामने रखी जाती है। यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद पांच देवदासियों को बुलाया जाता है। जो जोर-जोर से हुदो-हुदो शलोक बोलती हैं। इसे वह लड़की भी दोहराती है। जो देवदासी बनने जा रही हो। श्लोक दोहराने के बाद उसके माथे पर आड़ा सिंदूर लगाया जाता है, और गले में मणिमाला, और हाथ में पडलगी दी जाती है। जिसके बाद उसे पांच घरों से भिक्षा मांगकर लाने के लिए कहा जाता है। इस लंबी प्रक्रिया के बाद एक लड़की देवदासी बन जाती है। हालांकि, देवदासी बनने के लिए कोई निश्चित उम्र सीमा नहीं है, उम्र के किसी भी पड़ाव की महिला को देवदासी बना दिया जाता है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने क्यों भेजा नोटिस?
देश के दक्षिणी राज्यों में देवदासी यानि देवता के साथ शादी के नाम पर देवदासी महिलाओं के साथ हो रहा यौन शोषण और उनके जीवनयापन में आती मुश्किलों पर मीडिया की सुर्खियों और लोगों की प्रतिक्रियाओं को देखते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राज्यों और मंत्रालयों को नोटिस भेजा है। सदियों पुरानी इस प्रथा को 1982 में कर्नाटक और साल 1988 में आंध्रप्रदेश सरकार ने इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया था। इसके बाद भी कर्नाटक के 15 जिलों में यह लगातार जारी रहा। जिसका नतीजा यह है कि आज भी कम उम्र की दलित लड़कियों को देवदासी बनाया जा रहा है। उनके देवदासी बनने के बाद उनके साथ पुरोहितों द्वारा शारीरिक संबंध बनाया जाता है। फिर यहीं से शुरू होता है उनके जीवन के बर्बादी की कहानी। देवदासी बनने के बाद लड़कियां कथित ऊंची जाति के पुरोहितों के काम वासना की लगातार शिकार होती हैं और गर्भवती हो जाने के बाद उन्हें बेसहारा छोड़ दिया जाता है। जिससे उनकी स्थिति दयनीय हो जाती है। देवदासियों से पैदा होने वाले बच्चों के पिता का नाम नहीं दिया जाता है, बच्चे को संभालने की जिम्मेदारी सिर्फ देवदासी की होती है।
आंकड़ों की बात करें तो राष्ट्रीय मानवाधिकार की 2013 की रिपोर्ट के अनुसार, देश में 4.5 लाख देवदासियां हैं। जबकि, रघुनाथ राव की अध्यक्षता में बने एक कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ तेलगांना और आंध्रप्रदेश राज्य में 80 हजार देवदासियां हैं। कर्नाटक राज्य में देवदासियों की संख्या 46 हजार के करीब बताई जाती है। जबकि, इनकी संख्या इन आंकड़ों से कहीं अधिक हो सकती है क्योंकि कई परिवारों की बेटियों को बहुत कम उम्र में ही देवदासी बना दिया जाता हैं।
देवदासी प्रथा को रोकने के लिए लंबे समय से प्रक्रिया चल रही है। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार को लड़की को देवदासी बनाए जाने पर रोक लगाने का निर्देश जारी किया गया था। देवदासियों के बच्चों की लगातार होती दयनीय स्थिति पर साल 2007 में सुप्रीम कोर्ट को एक पत्र मिला था। जिसमें निराश्रित (जिनका कोई आसरा नहीं) देवदासियों के बच्चों की दुर्देशा का बयान किया गया था। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने आंध्रप्रदेश सरकार से इस बारे मे जवाब मांगा था कि देवदासियों के बच्चों के कल्याण के लिए क्या किया गया है।
वहीं दूसरी ओर, मानवाधिकार की रिपोर्ट की साल 2004 की रिपोर्ट अनुसार देश में कुल 45.9% देवदासियां वेश्यावृति में चली गई। बाकी की खेती-बाड़ी और मजदूरी कर अपना जीवन चला रही हैं।
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