मध्य प्रदेश: SC-ST Act में संशोधन के खिलाफ 2018 के आंदोलनकारियों पर दर्ज मुकदमों को वापस लेने के लिए भोपाल में प्रदर्शन

लगभग 5 साल पहले एससी/एसटी एक्ट में हुए संशोधन के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले दलित और आदिवासी समुदाय के सैकड़ों लोगों के खिलाफ दर्ज किए गए मुकदमों को आज तक वापस नहीं लिए गए हैं। इस आंदोलन में कई लोगों की जानें भी जा चुकी हैं।
मध्य प्रदेश: SC-ST Act में संशोधन के खिलाफ 2018 के आंदोलनकारियों पर दर्ज मुकदमों को वापस लेने के लिए भोपाल में प्रदर्शन
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भोपाल। अनुसूचित जाति एवं जनजाति समुदाय के लोगों ने मध्य प्रदेश सरकार से 2 अप्रैल 2018 को किए गए आंदोलन में हजारों लोगों के खिलाफ लगाए गए आपराधिक मामलों को वापस लेने के लिए एक दिवसीय धरना दिया है। गुरुवार को राजधानी भोपाल के डॉ. अंबेडकर मैदान में सैकड़ों लोगों ने धरना देकर आंदोलन की शुरुआत की है। आंदोलनकारियों का कहना है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक बार नहीं बल्कि कई बार मंच से इस बात की घोषणा की थी कि 2018 में एससी-एसटी एक्ट को लेकर किए गए आंदोलन में जिन लोगों के खिलाफ भी आपराधिक मामले दर्ज किए गए थे, उन्हें वापस ले लिया जाएंगे लेकिन आज तक मामले वापस नहीं लिए गए। 

आपको बता दें कि एक्ट में संशोधन के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले करीब 4 हजार लोगों पर मामला दर्ज हुआ था।

प्रदर्शन कर रहे लोगों का कहना है 2 अप्रैल को उस समय प्रदर्शन में जो लोग शामिल ही नहीं थे उन पर भी मामले दर्ज कर दिए गए थे। इनमें कई ऐसे लोग भी शामिल हैं जो शासकीय सेवक हैं। राजधानी के भीमराव अंबेडकर जयंती मैदान में एक दिवसीय धरना देकर सरकार से सभी मामले वापस लिए जाने की मांग की गई है। इसके साथ ही आंदोलन में आगे की रणनीति बनाई गई है।

द मूकनायक को राजवीर अग्निहोत्री ने बताया की हमने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को एक बार नहीं कई बार कार्यक्रमों में ज्ञापन देकर मामलों को वापस लिए जाने की मांग की है लेकिन आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई। हम आज फिर यहां धरना देकर मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन दे रहे हैं, और इन मुकदमों को वापस कराने की मांग कर रहें हैं। यदि मुकदमे वापस नहीं होते तो हम आगे की रणनीति बनाकर आंदोलन की राह पर चलने को विवश होंगे। राजवीर ने बताया कि 2 अप्रैल के आंदोलन में उन पर भी पुलिस ने आपराधिक मुकदमा दर्ज किया था, जिन्होंने अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई। लेकिन प्रशासन ने उन पर झूठे मामले दर्ज कर दिए। 

भारत बंद आंदोलन में 13 लोगों की गई थी जान

20 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि एससी-एसटी अधिनियम के तहत पब्लिक सर्वेंट की गिरफ्तारी, एपॉयंटिंग अथॉरिटी की मंजूरी के बिना नहीं की जा सकती है। आम लोगों को भी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की मंजूरी के बाद ही इस मामले में गिरफ्तार किया जा सकता है। पहले इस कानून के तहत इसका उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को शिकायत के आधार पर तुरंत गिरफ्तार कर लिये जाने का प्रावधान था। दलित समुदाय इस फैसले से आहत हुआ। उसके मुताबिक ये एक तरह से कानून को लचीला बनाने की कोशिश थी और उन्हें डर था कि दलितों पर अत्याचार की घटनाएं बढ़ेंगी और उन्हें जैसे मर्जी धमकाया जाएगा। 

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सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ दलित संगठनों में भारी आक्रोश था। दलित समुदाय के लोग सड़कों और उतर आए। 2 अप्रैल 2018 भारत बंद की घोषणा की गयी और बंद अभूतपूर्व रहा। इस ऐतिहासिक भारत बंद में पहली बार इतने बड़े पैमाने पर तमाम दलित संगठन एक साथ सड़कों पर उतरे। वहीं आंदोलन को कई संगठनों का भी समर्थन मिला। बंद के दौरान हिंसक घटनाएं भी हुईं और इन घटनाओं में 13 आंदोलनकारी मारे गए।

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