दलित साहित्य महोत्सव: साहित्य से एक बेहतर दुनिया संभव है

दलित साहित्य महोत्सव
दलित साहित्य महोत्सवफोटो- सतीश भारतीय, द मूकनायक
Published on

दिल्ली के आर्यभट्ट कॉलेज में 3 से 4 फरवरी को तीसरा दलित साहित्य महोत्सव अंबेडकरवादी लेखक संघ द्वारा आयोजित किया गया। समारोह की थीम 'साहित्य से एक बेहतर दुनियाँ संभव है' रखा गया।

विशेष रूप से संविधान प्रस्तावना पाठ से आरंभ हुए इस महोत्सव में विभिन्न कवि, लेखक और वक्ताओं ने शिरकत की। महोत्सव में मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश रहे।

महोत्सव बताता है कि दलित साहित्य की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि, मुख्यधारा के सहित्य ने दलित वर्ग के साथ किए गए, जातिवाद, छुआछूत, अत्याचार भेदभाव और अन्य असमानताओं के लिए एक मंच दिया ही नहीं।

ऐसे में दलित साहित्य का उद्भव और विकास हुआ। सही मायनों में दलित या अन्य साहित्य का निर्माण तब होता है, जब गरीबी, असमानता, भेदभाव, भुखमरी, दासता, प्रताड़ना, पीड़ा और संघर्ष को लोग अहसास के साथ शब्दों में पिरो कर एक लेखकीय या वक्तव्य का रूप देते हैं।

द मूकनायक टीम ने दलित साहित्य महोत्सव में आए विभिन्न लोगों से बातचीत की। कर्मशील भारती बताते हैं कि, "इस तरह के साहित्य सम्मेलन इसलिए आयोजित किए जाते हैं ताकि एक समाज में एक वैचारिक क्रांति से बदलाव लाया जा सके। युवाओं की समझ विकसित की जा सके।"

दलित साहित्य महोत्सव में उपस्थित लोग
दलित साहित्य महोत्सव में उपस्थित लोग फोटो- सतीश भारतीय, द मूकनायक

आगरा विवि, प्रोफेसर सूरज बताते हैं कि, "साहित्य एक उत्पाद में तब्दील हो गया है। लेकिन हमारी समझदारी यह है कि साहित्य हमें मनुष्य बनाता है। साहित्य को आज वस्तु के मुआफ़िक देखा जाने लगा है, जिससे आज मनुष्यता पर संकट है।"

एक अन्य वक्ता कहते हैं कि, "दलित साहित्य केवल कुछ लेखकों की देन नहीं हैं, यह साहित्य उन लेखकों से भी समाहित है, जो गुमनाम रह गये। जिनका लेखन दब गया। आज हम ऐसे लेखकों को तलाशें उनके लेखन को पढ़े, समझे और सामने लाएं, ताकि नयी पीढ़ी के लिए एक सुन्दर पैगाम मिले।"

दिल्ली विवि में मीडिया स्टडीज के टीचर डॉ. योगेश की नजर में दलित साहित्य एक न्याय का साहित्य है। वह कहते हैं कि, दलित साहित्य का संदर्भ केवल उत्पीड़न का दंश झेलते लोगों से ही नहीं, बल्कि सही मायनों में नागरिकतावाद से है।

दलित साहित्य इस देश से यह अपेक्षा करता है कि हम सभी जो मानव हैं, चाहे वह किसी भी समुदाय, रंग, संस्कृति से हो, हम सब को बराबरी का हक मिले।

दलित साहित्य महोत्सव
बीबीएयू में बाबा साहब अंबेडकर के चित्र को लेकर विद्यार्थी की वह हरकत जिसके बाद धरने पर बैठे दलित छात्र

सीमा माथुर अपने विचार ऐसे रखती हैं, "जब हमने पहले और दूसरे दलित साहित्य समारोह को देखा, तब हमें एक विचारों चिंगारी नजर आयी, जिससे लगा सच में साहित्य से एक बेहतर दुनिया संभव है।" आगे वह कहती हैं, "महोत्सव में अनुभव हो रहा है ये हमारी दुनिया है। ये हमारा साहित्य है, जो सच में हमारी बात कह रहा है।"

इस अवसर पर "जंग जारी है" जैसे अन्य किताबों का विमोचन किया गया। समारोह में अंतर्राष्ट्रीय कथक नर्तक राहुल कुमार ने अपनी नृत्य कला का मनमोहक प्रदर्शन भी किया। वहीं नारी समान तत्व की दृढ़ता के लिए एक नुक्कड़ नाटक का मंचन हुआ।

इस दो दिवसीय दलित साहित्य महोत्सव में देश-विदेश के विभिन्न इलाकों, समुदायों से आये विभिन्न लोगों ने अपने विचार, कविता, लेखन, संदेश के जरिये अपनी मौजूदगी जाहिर की।

दलित साहित्य महोत्सव
मध्यप्रदेश: दलित छात्रों को मिड-डे मील में फेंक कर दी जाती थीं रोटियां, बीआरसी की ओर से हुई ये कार्रवाई..

द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.

The Mooknayak - आवाज़ आपकी
www.themooknayak.com