Dalit History Month: बहुजनों को अपने अतीत को याद करने और उससे सीखने का महीना

Dalit History Month
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हाल ही में एक ख़बर आई जिसने पूरी दुनिया में अंबेड़करवादी और बहुजन चिंतकों का ध्यान अपनी ओर खींचा। ख़बर थी कि कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत में न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (New Democratic Party) की सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए अप्रैल माह को 'दलित इतिहास माह' (Dalit History Month) के रूप में मान्यता दी है। दलित इतिहास माह हर साल दलितों या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के इतिहास में बहुजन चिंतकों, महत्वपूर्ण लोगों और घटनाओं को याद करने के लिए मनाया जाता है। अब से हर वर्ष अप्रैल माह दलितों के इतिहास और उनके नेताओं को समर्पित किया जाएगा।

भारत में कब हुई शुरुआत?

भारत में दलित इतिहास माह की शुरुआत 2013 में हुई। अप्रैल महीने को महात्मा ज्योतिबा राव फूले, बीपी मंडल और बी. आर. अम्बेडकर के साथ ही बहुजन चिंतकों, उनके इतिहास और उनके योगदान को याद किया जाता है। इस पहल को 'ब्लैक हिस्ट्री मंथ' से प्रेरित बताया जाता है। इसे अफ्रीका-अमेरिका इतिहास महीने के रुप में भी जाना जाता है, ज़िसमें वहाँ के अश्वेत लोगों का इतिहास में योगदान को याद किया जाता है।

दलित इतिहास महीने की भारत में शुरुआत वी. करुणाकरण, क्रिस्टीना थॉमस धनराज, आशा कौतल, संघपाली अरुणा, मनीषा देवी और थेनमोझी सुंदरराजन जैसे बहुजन कार्यकर्ताओं ने मिलकर की थी, ज़िसका मकसद भारत में बहुजनों के इतिहास में योगदान को याद करना है।

भारत में दलित इतिहास महीने की ज़रुरत क्यों है?

दलित इतिहास माह की आवश्यकता उसी तरह महसूस की जाती है, जिस प्रकार इतिहासकार कार्टर जी वुडसन ने 1926 में नीग्रो इतिहास सप्ताह के लिए महसूस की थी। वुडसन के शब्दों में, "यदि किसी जाति का कोई इतिहास नहीं है, उसकी कोई मूल्य-परंपरा नहीं है, तो यह दुनिया के विचार में एक नगण्य कारक बन जाती है, और इसके समाप्त होने के खतरे बढ़ जाते है।"

इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि भारत के इतिहास निर्माताओं (ज्यादातर सवर्णों) ने बहुजनों के इतिहास में योगदान को तरजीह नहीं दी, और न ही उनके संघर्ष को इतिहास में ठीक तरह से बताया गया है। इतिहास में उनके साथ ठीक बर्ताव नहीं किया गया। उनके साथ हिंसक अपराध किए गए। लेकिन, इस हिंसा का विरोध करने की कई बड़ी कहानियां भी हैं। ऐसे उदाहरणों को इतिहास में ठीक तरह से नोट नहीं किया था। क्योंकि ये सब लिखने वाले ज्यादातर लोग सवर्ण हैं। इसे देखकर लगता है कि इसमें एक विशेष वर्ग पर ज्यादा ध्यान दिया गया है और दलितों के इतिहास और उनकी समाजिक लडाई को बिलकुल दरकिनार कर दिया गया है। ऐसे में बहुजनों के इतिहास में योगदान को बताने के लिए बहुजनों को आगे आना पड़ा और इसी कड़ी में दलित इतिहास महीने की शुरुआत की गई, ताकि देश की सबसे बड़ी आबादी को उनका इतिहास और संघर्ष का पता चल सके जो आज तक भी छिपाया जाता रहा है। लेकिन, सोशल मीडिया के मौजूदा दौर में बहुजनों ने इसमें बड़ी दिलचस्पी दिखाई है और वह अपना इतिहास खुद लिखने लगे है।

इसमें किसी को कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि ब्राह्मण सवर्णों का संस्थागत स्थानों पर पूर्णरुप से अधिकार रहा है। स्कूल की पाठ्यपुस्तकें लिखने से लेकर पत्रिकाओं को संपादित करने, लेखक मोनोग्राफ बनाने, संपादित संस्करणों का निर्माण करने और वृत्तचित्र फिल्में बनाने वाले वे अकेले ही रहे हैं। बहुजन विद्वानों और पत्रकारों को ऐतिहासिक रूप से इन अभ्यासों से दूर बहुत रखा गया है। इसलिए, भारत में इतिहास लेखन ब्राह्मण सवर्ण चेतना का एक उत्पाद मात्र रहा है।

दलित इतिहास माह के संस्थापक सदस्यों में से एक, संघपल्ली अरुणा ने मीडिया संसथान Deccan Herald को बताया कि, बचपन में हमारे पास सिर्फ 'अंबेडकर जयंती' मनाने के लिए थी। "हमें उत्सव के रूप में नए कपड़े और खाने के लिए अच्छा खाना मिला। चूंकि अप्रैल का हमारे जीवन में बहुत महत्व है, इसलिए हमने पूरे महीने को समुदाय को एक साथ लाने के उद्देश्य से इसकी शुरुआत की। अरूणा आगे बताती हैं कि "हजारों वर्षों से, ज्ञान उत्पादन उच्च जाति के पास रहा है, इसलिए हमारे समुदाय के योगदान को हमेशा नजरअंदाज किया गया या गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया।" "डिजिटल युग में, विकिपीडिया ज्ञान का प्राथमिक स्रोत है। इसलिए, हमने मौजूदा लेखों को संपादित करने और ऑनलाइन विश्वकोश पर अधिक सामग्री तैयार करने के बारे में सोचा।

बुद्धिजीवी और विचारक व दिल्ली यूनिवर्सिटी में हिंदी के प्रवक्ता डॉ. लक्ष्मण यादव द मूकनायक को बताते हैं कि "जब कोई भी वैचारिक लड़ाई बिना अपने अतीत और वैचारिक नायक – नायिकाओं के नहीं लड़ी जाती, तो हम अतीत से ऊर्जा लेते हैं और उन्हें याद करना पड़ता है ज़िन्होने आपके लिए लडाई लड़ी। इसलिये ये बहुत ज़रूरी है कि अपनी जडों को जाने और उनसे जुड़ें।"

डॉ. यादव आगे बताते हैं कि, "जयंती य़ा स्मृति दिवस को जैसे मर्जी मनाये लेकिन बहुजनों को ज़रुरत है उनके बारे में ज्यादा से पढ़े। केवल सोशल मीडिया पर तस्वीर पर माला डालने से कोई फायदा नहीं है क्योंकि! ये सब तो RSS जैसे संघठन भी करते हैं। बहुजनों को ज़रुरत है अपने नायकों को पढ़ने और उनसे सीखने की।"

Jyotiba Phule
Jyotiba Phule

बहुजनों के लिए अप्रैल महीना क्यों खास है?

11 अप्रैल: महात्मा ज्योतिराव गोविंदराव फुले 19वीं सदी के एक महान समाजसुधारक, समाज प्रबोधक, विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। इन्हें महात्मा फुले एवं "ज्योतिबा फुले" के नाम से भी जाना जाता है। फुले ने अपना पूरा जीवन स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार दिलाने, बाल विवाह को बंद कराने में लगा दिया था। फुले समाज की कुप्रथा और अंधश्रद्धा के जाल से इस समाज को मुक्त करना चाहते थे। 28 नवंबर, 1890 को 63 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था।

Former prime minister, VP Singh, addressing a rally in August 1990 in support of the Mandal Commission(HT)
Former prime minister, VP Singh, addressing a rally in August 1990 in support of the Mandal Commission(HT)

13 अप्रैल: मंडल कमीशन का नाम तो लगभग आप सभी ने सुना ही होगा। ये वही कमीशन है, जिसकी रिपोर्ट के आधार पर केंद्र की नौकरियों में पिछड़े वर्ग का आरक्षण सुनिश्चित किया गया था। 13 अप्रैल को इन्हीं बीपी मंडल यानी बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल की पुण्यतिथि होती है। उन्हें हमेशा बहुजनों के नायक के रुप में याद किया जाता है, जिनकी सिफारिशों ने वंचितों को देश की मुख्यधारा में लाने में बड़ा काम किया।

B. R. Ambedakar
B. R. Ambedakar

14 अप्रैल: डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में स्थित महू में हुआ था। जिसका नाम बदल कर डॉ. अंबेडकर नगर रख दिया गया था। डॉ. भीमराव अंबेडकर जी का जन्म 14 अप्रैल 1891 में हुआ था। डॉ. भीमराव अंबेडकर जाति से दलित थे। उनकी जाति को अछूत जाति माना जाता था। इसलिए उनका बचपन बहुत ही मुश्किलों में बीता। बाबासाहेब अंबेडकर सहित सभी निम्न जाति के लोगों को सामाजिक बहिष्कार, अपमान और भेदभाव का सामना करना पड़ता था। ऐसा ही कोई होगा जो शायद बाबा साहब को नहीं जाता होगा। बाबा साहब 32 डिग्रियों के साथ 9 भाषाओं के सबसे बेहतर जानकार थे। उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में मात्र 2 साल 3 महीने में 8 साल की पढ़ाई पूरी कर ली थी। बाबा साहब लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से 'डॉक्टर ऑल साइंस' नामक एक दुर्लभ डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त करने वाले भारत के ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के पहले और एकमात्र व्यक्ति बने, ज़िन्हे भारत का सबसे शिक्षित व्यक्ति भी कहा जाता है।

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