नई दिल्ली। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की दीवारों पर आपत्तिजनक जातिवादी और सांप्रदायिक नारे लिखे हुए पाए गए हैं। दरअसल, बीते शनिवार यानी 20 जुलाई को जेएनयू परिसर में कावेरी छात्रावास की दीवारों पर ‘च$%र भारत छोड़ो’, दलित भारत छोड़ो', ‘ब्राह्मण-बनिया जिंदाबाद’ और ‘हिंदू-आरएसएस जिंदाबाद’ जैसे जातिसूचक गालियां और सांप्रदायिक नारे लिखे पाए गए। इसे लेकर यूनिवर्सिटी के छात्रों में काफ़ी रोष है। छात्रों ने यूनिवर्सिटी परिसर में इसके खिलाफ़ अपना कड़ा विरोध व्यक्त किया और शनिवार की शाम छात्रसंघ ने एक मार्च भी निकाला।
इस मामले में और जानकारी जुटाने के लिए जब हम कावेरी हॉस्टल पहुंचे तो हमने दीवारों को पुता हुआ पाया। हॉस्टल के छात्रों ने हमें बताया कि इसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल होने पर विश्वविद्यालय प्रशासन ने शनिवार को ही उन पर रंग से पुताई कर दी।
"दीवार से तो नारों को मिटा दिया लेकिन ऐसे लोगों के मन-मस्तिष्क से इसे कैसे हटाएंगे?"
'द मूकनायक' से बात करते हुए जेएनयू एनएसयूआई के जनरल सेक्रेटरी कुणाल कुमार ने बताया कि हमने जैसे ही इस घटना को रिपोर्ट किया तो प्रशासन ने दीवार को पुतवा दिया। वे कहते हैं, "यह एक बहुत बड़ी घटना है। इसे किसी छिटपुट घटना की तरह नहीं देखा जाना चाहिए। देश की मौजूदा सरकार के आने के बाद इस तरह की मनुवादी और ब्राह्मणवादी सोच रखने वालों को संरक्षण मिला है। दीवार से तो नारों को मिटा दिया लेकिन ऐसे लोगों के मन-मस्तिष्क से इसे कैसे हटाएंगे?"
"जेएनयू कैंपस में भी वही ताकतें जमी हुई है जो देश की सत्ता में बैठी हुई है"
वहीं इस मामले के बारे में हमसे बात करते हुए जेएनयूएसयू के अध्यक्ष धनंजय कहते हैं, “कावेरी हॉस्टल में जो घटना हुई है, जेएनयू छात्रसंघ उसकी कड़ी निंदा करता है और पूरी तरह से इसके खिलाफ़ खड़ा है। जेएनयू कैंपस में भी वही ताकतें जमी हुई है जो देश की सत्ता में बैठी हुई है। ये ताकतें लगातार दलितों, आदिवासियों, बहुजनों, मुसलमानों और महिलाओं के ख़िलाफ़ अपना एजेंडा चला रहे हैं और वे चाहते हैं कि कैंपस किसी तरह से इन सबके लिए बंद हो जाएं। वे चाहते हैं कि कैंपस में सभी छात्र एक साथ बैठकर नहीं पढ़ें। लेकिन जेएनयू को हम सबने मिलकर बनाया है और जेएनयू हमेशा समता, समानता और बराबरी की जगह रहेगी। इसके लिए हम ऐसी हर ताकत से लड़ते रहेंगे और हमें उनसे लड़ना बखूबी आता है।”
"प्रशासन को जातिवादी लोगों के खिलाफ़ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए"
इस घटना को लेकर कावेरी हॉस्टल में रहने वाले चेतन हमें बताते हैं, " हम छात्रावास में हाल में हुई घटनाओं से बहुत परेशान हैं, जहाँ दलित बहुजन समुदाय के खिलाफ जातिवादी गाली के साथ-साथ 'ब्राह्मण बनिया जिंदाबाद' और 'आरएसएस जिंदाबाद' जैसे नारे लगाए गए हैं, ये नारे हमारे विश्वविद्यालय के भीतर आरएसएस और उसके समर्थकों की ब्राह्मणवादी और मनुवादी प्रकृति को स्पष्ट रूप से उजागर करते हैं। और साथ ही उनके मन में एक खास समुदाय के लिए नफ़रत को दिखाता है।" आगे वे जोड़ते हैं, "ऐसे समय में यह जरूरी है कि प्रशासन, खासकर कावेरी छात्रावास के वार्डन, नफरत फैलाने वाले और जातिवादी लोगों के खिलाफ़ तत्काल और सख्त कार्रवाई करे।"
वहीं हमसे बात करते हुए 'कावेरी हॉस्टल' कमिटी के सदस्य अबुल कलाम कहते हैं, "हम इस तरह की कृत्य की निंदा करते हैं। विश्वविद्यालय में देश के अलग-अलग हिस्सों से और तमाम धर्म, समुदाय के छात्र पढ़ने आते हैं। इस तरह की घटनाएं कैंपस के माहौल को ख़राब करता है और सामाजिक सद्भाव को बिगड़ता है।"
हॉस्टल वरिष्ठ वार्डन ने जारी किया नोटिस
इस मामले को लेकर कावेरी हॉस्टल के सीनियर वार्डन ने एक नोटिस जारी कर छात्रों से कहा है, "हॉस्टल निवासियों या जिस किसी को भी इस कृत्य के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों के बारे में कोई जानकारी है, उनसे अनुरोध है कि वे हॉस्टल प्रशासन को छात्रावास के ईमेल पते पर सूचित करें।" इस नोटिस में वार्डन ने आगे हॉस्टल में सीसीटीवी लगाने के बारे में भी चेतावनी दी है। और साथ ही हॉस्टल के छात्रों को सतर्क रहने की सलाह दी है।
"यूनिवर्सिटी के छात्रों को सेंसिटाइज करने की है जरूरत"
इस बारे में 'द मूकनायक' से बात करते हुए साबरमती हॉस्टल में रहने वाली स्वाति कहती हैं, "कैंपस में इस तरह की यह पहली घटना नहीं है। हाल ही में एबीवीपी द्वारा परशुराम जयंती के लिए निकाले गए पोस्टर में लिखा गया था– 'वी द ब्रह्मिंस ऑफ जेएनयू'...इससे आप यह अंदाजा लगा सकते हैं कि कैंपस में स्टूडेंट्स को किस तरह से बांटा जा रहा है। इस घटना के बाद हॉस्टल में सीसीटीवी कैमरा लगाने की बात हो रही है लेकिन कैमरा लगाने से क्या होगा? इससे स्टूडेंट्स की मानसिकता में तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। मुझे लगता है यूनिवर्सिटी के छात्रों को सेंसिटाइज करने की जरूरत है।"
इससे पहले भी परिसर में ऐसे कई मामले आ चुके हैं सामने
जेएनयू परिसर में दीवारों पर आपत्तिजनक टिप्पणी और नारे लिखने के ऐसे कई मामले पहले भी सामने आ चुके हैं। इससे पहले, पिछले वर्ष स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज़ की दीवार पर भी कुछ आपत्तिजनक नारे लिखे हुए पाए गए थे। इसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद यह राष्ट्रीय स्तर पर मीडिया में सुर्खियां बनीं थी और जेएनयू की कुलपति शांतिश्री धुलीपुड़ी पंडित ने भी मीडिया में बयान दिया था कि इस तरह के कृत्य करने वालों को बख़्शा नहीं जाएगा। इसके बाद जेएनयू परिसर में बार-बार लगाए जाने वाले ‘राष्ट्र-विरोधी’ नारों की घटनाओं की जांच के लिए एक समिति का गठन किया गया था। हालांकि, समिति ने इन घटनाओं को लेकर अभी तक क्या किया है इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है।
बता दें कि जेएनयू में पहले एडमिशन के समय सभी स्टूडेंट्स और स्टाफ को सेंसिटाइज करने के लिए कई कार्यशालाएं आयोजित की जाती थी, जो अभी लगभग बंद हो चुकी है। अब इस तरह के कार्यक्रम मात्र औपचारिकता भर रह गए हैं।
यूनिवर्सिटी परिसर में सार्वजनिक स्थानों पर भी स्टूडेंट्स की आपसी बातचीत में दलित, बहुजन, आदिवासी और किसी समुदाय विशेष के प्रति विरोधी और सांप्रदायिक टिप्पणी करना और बोलचाल में ‘जातिसूचक गालियों’ का प्रयोग किया जाना इन दिनों बहुत आम हो गया है। बापसा से जुड़े छात्रों ने ‘द मूकनायक’ को बताया कि जब कभी वे अपने संगठन की गतिविधियों से जुड़े पोस्टर जेएनयू परिसर में चस्पा करते हैं तो उन पर कई बार भद्दी गालियां और जातिवादी टिप्पणियां लिख दी जाती है और पोस्टरों को फाड़ दिया जाता है। इस तरह की घटनाएं भी कहीं न कहीं उसी रूढ़िवादी मानसिकता का नतीजा है जिससे छात्र यहाँ पहुंचकर भी बाहर नहीं निकल पाते हैं।
यूनिवर्सिटी परिसर में किसी ‘समुदाय विशेष’ को निशाना बनाकर नारे लगाने, पोस्टर चस्पा करने या दीवारों पर आपत्तिजनक बातें लिखे जाने की घटनाओं में हाल के कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। लेकिन यूनिवर्सिटी प्रशासन की ओर से ऐसी किसी भी घटना पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। देश के सबसे प्रगतिशील और प्रतिष्ठित कहे जाने वाले विश्वविद्यालय में लगातार इस तरह की घटनाओं का सामने आना और यूनिवर्सिटी प्रशासन का मूक दर्शक बने रहना वाकई चिंताजनक है।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.