“बच्चे हमारे हाथों से बना खाना नहीं खाते, पूछती हूं तो बोलते हैं कुल देवी नाराज हो जाएगी, इसलिए मम्मी-पापा मना करते हैं” — दलित भोजन माता

स्कूल में घर से लाया हुआ भोजन करते बच्चे
स्कूल में घर से लाया हुआ भोजन करते बच्चे
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गुजरात के मोरबी जिले में दलित भोजनमाता के साथ भेदभाव, सोखड़ा प्राथमिक विद्यालय के 146 छात्र-छात्राओं ने पिछले करीब 50 दिनों से मिड-डे मील का कर रखा है बहिष्कार, घर से लाते है खाना

कलक्टर के आदेश पर जिला शिक्षा व राजस्व विभाग के अधिकारियों ने अभिभावकों को समझाया

नई दिल्ली। गुजरात के मोरबी जिले से हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है। यहां सरकारी स्कूल के बच्चों ने पिछले करीब 50 दिनों से मिड-डे मील के खाने का बहिष्कार कर रखा है। वजह है स्कूल में खाना बनाने वाली संचालिका, रसोईया व सहायक दलित समाज से आते हैं। माता-पिता अपने बच्चों को दलित रसोइए के हाथों बनाए गए भोजन को खाने के खिलाफ हैं। इस मामले की शिकायत जिला कलक्टर, जिला पुलिस अधीक्षक से लेकर जिला शिक्षा अधिकारी तक की गई, लेकिन जिम्मेदार अधिकारी-कर्मचारी टाल-मटोल करते रहे। मामला मीडिया में हाईलाइट होने के बाद अब कार्रवाई शुरू की गई है।

जून में मिला था खाना बनाने का ठेका

स्कूल प्रशासन व जिला पुलिस के अनुसार, धारा मकवाना को सोखड़ा गांव के श्री सोखड़ा प्राथमिक विद्यालय में मध्याह्न भोजन बनाने का ठेका जून में दिया गया था। जिसके बाद 16 जून को उसने करीब 153 छात्रों के लिए खाना बनाया। हालांकि, अपने माता-पिता के कहने पर 147 छात्रों ने खाना खाने से इनकार कर दिया।

द मूकनायक से धारा मकवाना बताती हैं, "13 जून 2022 को हमें स्कूल में भोजन बनाने का ठेका मिला था। 16 जून से हमने मिड-डे मील के तहत खाना बनाना शुरू किया। मैं संचालिका हूं। मेरी बुआ सास रेवी बेन रसोइया व सास शारदा बेन सहायक हैं। विद्यालय में कुल 153 छात्र-छात्राएं हैं। पहले दिन कुछ बच्चों ने खाना खाया। इसके पश्चात सिर्फ दलित समाज के सात छात्र-छात्राएं ही कभी-कभी खाना खाते थे। दूसरे बच्चों की देखा-देखी उन्होंने भी खाना बंद कर दिया। बच्चे हमारे हाथों से बना खाना नहीं खाते, पूछती हूं तो बोलते है कुल देवी नाराज हो जाएगी, इसलिए पापा-मम्मी मना करते हैं। हम भी इसी गांव के रहने वाले हैं। जब अभिभावकों से पूछते हैं तो वो कहते हैं —'हम तो नहीं मना करते।' बच्चे ही नहीं खाना चाहते हैं।"

उल्लेखनीय है कि, मिड-डे मील के तहत खाना बनाने के लिए संचालिका को 1600, रसोइए को 1400 व सहायक को 500 रुपए मिलते है।

धारा बेन के पति गोपी भाई ने कहा, "विद्यालय में बच्चे खाना नहीं खा रहे थे। पत्नी ने जब मुझे यह बताया तो मैंने कुछ बच्चों के माता-पिता से पूछताछ की। उन्होंने मुझसे कहा कि वे अपने बच्चों को एक दलित महिला का बना खाना नहीं खाने दे सकते।"

गोपी ने जानकारी देते हुए बताया कि, बहुत सारा खाना बर्बाद हो गया। इसके बाद स्कूल प्रबंधन ने अभिभावकों से बात की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ और बातचीत बेनतीजा रही। इस पर पति-पत्नी ने मामले की लिखित शिकायत 19 जून को जिला पुलिस अधीक्षक सहित एससी/एसटी सेल प्रभारी को की। संबंधित थाने को भी सूचित किया। "हमने दस दिन बाद 29 जून को राजस्व विभाग में तहसीलदार को शिकायत दी फिर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। यहां तक कलक्टर को भी अवगत कराया, लेकिन कुछ नहीं हुआ," उन्होंने कहा। धारा ने कहा कि जातिवादी सोच के कारण उन्हें प्रताडि़त किया गया है और पुलिस को हस्तक्षेप करना चाहिए।

प्रयास हुए विफल

स्कूल की प्रिंसिपल बिंदिया रत्नोतर ने इस घटना की पुष्टि की और कहा कि उन्होंने स्कूल मॉनिटरिंग कमेटी के साथ दो बैठकें की हैं, जिसमें माता-पिता भी शामिल हैं, लेकिन वे जिद पर अड़े हैं। "वे अपनी जातिवादी सोच को छोड़ना नहीं चाहते हैं। हम बच्चों को जातिवादी रवैया न रखना सिखा सकते हैं। हमारी नजर में तो सभी समान हैं और कोई भी अछूत नहीं है।" रत्नोतार ने कहा कि, यह दुख की बात है कि हम उनके माता-पिता को नहीं मना पा रहे।

एसएमसी सदस्य ने क्या कहा!

मामला मीडिया में रिपोर्ट होने के बाद गुरुवार को स्कूल में जिला शिक्षा व राजस्व अधिकारियों की पांच सदस्यीय टीम ने एसएमसी सदस्यों व अभिभावकों के साथ बैठक की। जिला शिक्षा अधिकारी बीएन विरजा के आदेशों पर स्कूल पहुंचे एजुकेशन इंस्पेक्टर मनन बुद्धदेव, नयन ओजानी व नायब तहसीलदार सत्यजी झाला ने अभिभावकों की समझाइश की। हालांकि जब द मूकनायक ने अधिकारियों से सम्पर्क किया तो उन्होंने जांच में जातीय भेदभाव जैसी किसी घटना होने से इंकार किया।

द मूकनायक ने सोखड़ा ग्राम पंचायत सरपंच खैरसा मेहुल लाभू भाई से बात की उन्होंने कहा, "हमने छात्र-छात्राओं व अभिभावकों की समझाइश की है। बच्चों को घर से भोजन नहीं लाने के लिए बोला है।"

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