छत्तीसगढ़: बीते सात दिनों से छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक आंदोलन चल रहा है। राज्य सरकार ने वर्ष 2020 में 267 ऐसे सरकारी कर्मचारियों की लिस्ट जारी की थी, जिनके जाति प्रमाणपत्र जांच में नकली पाए गए थे। इस लिस्ट के सामने आते ही 25 नवंबर 2020 को उन सभी 267 कर्मचारियों को नौकरी से बर्खास्त करने के आदेश भी दे दिए गए थे, लेकिन अब तक फ़र्ज़ी प्रमाण पात्र वाले सरकारी कर्मचारी को पद से हटाया नहीं गया है। इस मांग को लेकर बीते सात दिनों से राजधानी रायपुर में कुछ युवा आमरण अनशन पर बैठे हैं। यह मामला इतना बड़ा है कि इस में चपरासी से ले कर IPS अधिकारी और पूर्व CM तक शामिल हैं।
इस बात की शिकायत 2019 में आई थी की राज्य की सरकारी नौकरियों में करीब 700 लोग ऐसे हैं, जिनके जाति प्रमाण पर नकली हैं। राज्य सरकार ने इस पर जाँच कमेटी भी बनाई थी। इस जांच कमेटी की रिपोर्ट अगस्त 2019 में आ भी गई। रिपोर्ट में कहा गया कि 700 में से 267 सरकारी कर्मचारी ऐसे हैं जिनके जाति प्रमाण पत्र फ़र्ज़ी पाए गए हैं। इसमें छत्तीसगढ़ के पहले CM और पूर्व कांग्रेस नेता अजीत जोगी भी शमिल थे। अजीत जोगी पर उस समय SC ST OBC सामाजिक स्थिति के प्रमाणीकरण का विनियम के सेक्शन 10 के तहत FIR भी हुई थी।
एक अधिकारी जो उस जांच कमेटी का हिस्सा थे उन्होंने नाम नहीं छपने की शर्त पर बताया की लगभग 40 से 50 कर्मचारी जिनके जाति प्रमाण पात्र नकली पाए गए थे उन्हें अभी तक हटाया जा चुका है, लेकिन कई अधिकारी ऐसे हैं जिन्होंने पद से हटाए जाने से पहले ही कोर्ट से स्टे ले लिया था और उनके केस अभी भी चल रहे हैं।
इस मामले का क़ानूनी पक्ष जानने के लिए हमने बात की एडवोकेट भुवनेश कौशिक से, वे कहते हैं "इस मामले में किसी भी व्यक्ति ने यदि नकली जाति प्रमाण पत्र लगा आरक्षित सीट पर नौकरी पाई है, तो उस व्यक्ति को हर्जाने के रूप में नौकरी से पाए गए हर लाभ को ब्याज समेत सरकार को वापस करना होगा। यह मामला न सिर्फ सरकार के साथ धोखाधड़ी का है बल्कि एक निर्दोष व्यक्ति के अधिकारों के हनन का भी है। उस व्यक्ति ने न सिर्फ सरकार को धोखा दिया है बल्कि उस व्यक्ति की सीट का भी नुकसान किया है जो उस सीट के लिए ज़्यादा अधिकारी होता। इस मामले में IPC की धरा 420, 468, 471 और 472 के तहत केस दर्ज किया जा सकता है। जुलाई 2013 के सरबजीत महतो बनाम स्टेट में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले में भी इसका जिक्र मिलता है"
बीते सात दिन से अनशन पर बैठे युवाओं की मांग है कि, जो 267 लोगों के जाति प्रमाण पत्र नकली पाए गए हैं उन्हें तत्काल नौकरी से हटाया जाए। अनशन पर बैठे एक युवा हरेश बंजारा से द मूकनायक ने बात की वे बताते हैं कि बीते सात दिनों से वे अनशन पर बैठे हैं, लेकिन सरकार हमारी सुनने को राज़ी नहीं है, हम चाहते हैं कि उन सभी को नौकरी से निकला जाए जो दलित आदिवासी समाज का हक़ मार कर सालों से नौकरी कर रहे हैं। हम यह भी चाहते हैं कि नौकरी में रहते हुए उन लोगों ने जो भी सम्पत्ति अर्जित की है वह जप्त की जाए।
स्थानीय पत्रकार धनंजय बताते हैं कि इस आंदोलन को चलते हुए हफ़्ता भर बीत चुका है पर कोई इनकी सुध लेने नहीं आया। आंदोलन के छठे दिन आंदोलनस्थल पर भरी गर्मी में बिजली भी काट दी गई थी। एक युवा अनशन के दौरान बेहोश भी हो गया था पर किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है।
द मूकनायक ने इस मामले में और जानकारी लेने के लिए छत्तीसगढ़ सूबे के श्रम एवं नगरी प्रशासन मंत्री शिव कुमार डहरिया से बात करने कि कोशिश की, लेकिन हमें तीन बार किसी मीटिंग का हवाला देते हुए टाल दिया गया। मंत्री के दफ्तर से उनका पर्सनल नंबर भी मिला, कहा गया की उन्हें एक मैसेज भेज दीजिए वे खुद आप से संपर्क करेंगे पर ऐसा नहीं हुए। इस मामले पर छत्तीसगढ़ सरकार में सन्नाटा है और कोई बात करने को राज़ी नहीं है। 2018 में जब भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार सत्ता में आई तो उनके सब से बड़े वादों में से एक दलित आदिवासी समाज के अधिकारों की रक्षा करना भी था। पर उस ही समाज से उठती आवाज़ों का इस तरह अनसुना किया जाना उलटी ही कहानी बता रहा है।
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