महाराष्ट्र। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, बॉम्बे में पिछले महीने एक दलित छात्र दर्शन सोलंकी की आत्महत्या का मामला सामने आया था। परिजनों ने साथी छात्रों व फैकल्टी पर जातीय उत्पीड़न का आरोप लगाया था। हालांकि आईआईटी बॉम्बे प्रबंधन द्वारा गठित जांच समिति ने जातिगत भेदभाव से इनकार किया है। कमेटी का कहना है कि छात्र द्वारा आत्महत्या की वजह खराब शैक्षणिक प्रदर्शन हो सकता है। मामले के संदर्भ में संस्थान के एससी/एसटी प्रकोष्ठ द्वारा 2022 में किए गए सर्वे की रिपोर्ट अहम हो जाती है, जिसमें कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए थे।
आईआईटी बॉम्बे की एससी-एसटी स्टूडेंट सेल द्वारा पिछले साल किए गए एक सर्वे की ड्राफ्ट रिपोर्ट में जातिगत भेदभाव होने की जानकारी मिली है। ड्राफ्ट रिपोर्ट के मुताबिक, संस्थान में पढ़ने वाले 388 एससी/एसटी स्टूडेंट्स में से एक तिहाई का कहना है कि वे कैंपस में अपनी जातिगत पहचान के बारे में खुले तौर पर चर्चा करने में सहज महसूस नहीं करते हैं। फरवरी 2022 में हुए सर्वे की जानकारी आईआईटी बॉम्बे द्वारा अभी सार्वजनिक नहीं की गई है।
रिपोर्ट के मुताबिक, 131 छात्रों (33.8 फीसदी) ने कहा कि वे अपनी जाति की बात सिर्फ करीबी दोस्तों से कर पाते हैं. केवल 27 छात्र (7.2 फीसदी) ऐसे थे, जिन्होंने कहा कि वे अपने दोस्तों के थोड़े बढ़े हुए दायरे में जाति को लेकर बात करने से डरते हैं। ‘बहुत करीबी दोस्त’ का मतलब यहां पर ऐसे छात्रों से था, जो अपनी जैसी सामाजिक पृष्ठभूमि वाले छात्रों के दोस्त थे।
रिपोर्ट से ये भी पता चलता है कि लगभग 245 (63.2 फीसदी) छात्र जाति की पहचान के बारे में खुले तौर पर बात करने में सहज नहीं थे। ड्राफ्ट रिपोर्ट में कहा गया, ये संख्या बताती है कि एससी और एसटी स्टूडेंट्स के लिए आईआईटी बॉम्बे कितना ज्यादा असंवेदनशील और असुरक्षित है। इस वजह से एससी-एसटी सेल और आईआईटी के लिए सबसे पहले ये जरूरी है कि वे संस्थान को सुरक्षित स्थान बनाएं, ताकि छात्रों के बीच विश्वास बनाया जा सके।
सर्वे रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 83 (21.6 फीसदी) छात्रों ने यह पूछे जाने पर ‘हां’ में जवाब दिया कि क्या उन्हें जातिगत भेदभाव के बारे में बोलने पर छात्रों व फैकल्टी से किसी तरह की प्रतिक्रिया का डर है। 99 छात्रों (25.5 फीसदी) ने इसका जवाब ‘शायद’ में दिया, जबकि बाकी ने ‘नहीं’ के रूप में जवाब दिया। स्पष्ट रूप से ये दिखाता है कि बड़ी संख्या में छात्र संस्थान में जाति-आधारित भेदभाव पर चर्चा करने में सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं।
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