उत्तर प्रदेश: गर्भवती महिला सहित तीन दलितों की हत्या के मामले में आरोपियों के घर चला बुलडोजर

प्रशासन ने अपनी कार्यवाही में खानापूर्ति तो कर दी लेकिन पीड़ित परिवार का आरोप सिर्फ दीवार ही गिराई गई है। वहीं प्रशासन ने कहा कि आरोपियों के अवैध निर्माण को कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद ही गिराया जा सकेगा।
जेसीबी से आरोपियों के अवैध निर्माण को गिरवाती पुलिस और प्रशासन की टीम
जेसीबी से आरोपियों के अवैध निर्माण को गिरवाती पुलिस और प्रशासन की टीम
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उत्तर प्रदेश। यूपी के कौशांबी के सन्दीपनघाट क्षेत्र में तीन दलितों की हत्या के मामले में प्रशासन ने शुक्रवार आरोपियों के अवैध निर्माण पर बुलडोजर चलाया। वहीं पीड़ित परिवार का आरोप है कि प्रशासन ने बुलडोजर के नाम सिर्फ आरोपियों के घर की दीवार गिराई है। जबकि, प्रशासन ने कहा है कि लोगों के घरों को गिराने की कानूनी प्रक्रिया है। अभी उनके अवैध निर्माण का कुछ हिस्सा गिराया गया है। प्रशासन का कार्य जान-माल का नुकसान न हो यह भी सुनिश्चित करना है। अतः इस मामले में आरोपियों के अवैध निर्माण को कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद ही गिराया जा सकेगा।

जानिए क्या है पूरा मामला?

यूपी के कौशांबी जिले के सन्दीपनघाट क्षेत्र के मोहद्दीनपुर गांव में बीते 16 सितंबर को दलित बुजुर्ग होरीलाल (62) उसकी बेटी सहित दामाद की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।

होरीलाल इस गांव से लगभग दो किमी की दूरी पर छबिलवा गांव में रहते थे। वारदात की शाम को ही अपने दामाद द्वारा खरीदी जमीन पर रहने आये थे। होरीलाल के तीन बेटे क्रमश: सुरेश कुमार, सुभाष, दिलीप तथा चार बेटियां गुड्डी, सुमन, बृजरानी तथा सूरजकली हैं। दो वर्ष पहले बृजरानी की शादी के बाद जब दामाद पत्नी को लेकर पड़ोसी गांव मोहीउद्दीन में रहने लगा तो वह भी यहीं आ गए थे। जिस भूमि में दामाद झोपड़ी बनाकर रहता था, विवादित होने के कारण उस पर निर्माण नहीं हो सका। बृजरानी आशा कार्यकर्ता थी तथा उसकी तैनाती मूरतगंज सीएचसी में थी। उसके भाई सुरेश ने बताया कि बहन को छह माह का गर्भ था। यह उसका पहला बच्चा था। उसके जाने के साथ ही उसकी अंतिम निशानी का भी कत्ल कर दिया गया।

क्या है भूमि से जुड़ा विवाद और क्यों जातिवाद ने ली तीन जानें?

चायल तहसील के मोहीउद्दीनपुर गौस गांव स्थित आराजी संख्या 344 ने मौजूद है। ग्रामीणों के मुताबिक जमीन पर कब्जे को लेकर मारपीट की घटनाएं तो अक्सर हुआ करती थीं लेकिन, कत्ल पहली बार हुआ। घटनाओं के बाद पुलिस या तो निरोधात्मक कार्रवाई करती थी या फिर लेनदेन करके मामले को रफा-दफा कर दिया जाता था।

ग्रामीणों के मुताबिक आराजी संख्या 344 बस्ती से बाहर है। 52 बीघे के रकबे वाली जमीन पर काफी पहले से चौहान तथा यादव बिरादरी का कब्जा है। पूर्व के प्रधान व लेखपालों ने खेल कर करीब 20 वर्ष पहले गरीबों के नाम कागज पर तो पट्टा कर दिया लेकिन, कब्जा सिर्फ चौहान तथा यादव बिरादरी को ही दिलाया। इसी जमीन के पास ही आईटीआई का निर्माण कराया गया है। इसकी वजह से भूमि की कीमत काफी बढ़ गई। अब यहां दो लाख रुपये बिस्वा की जमीन खोजे भी नहीं मिल रही है। हत्याकांड के बाद भीड़ का गुस्सा इसी बात को लेकर था कि आखिर जब पट्टा दिया गया तो उन्हें कब्जा क्यों नहीं दिलाया गया। उनका कहना था कि चौहान तथा यादव बिरादरी के लोगों ने जो घर बनवाया है, उसका पट्टा किसी अन्य के नाम पर है।

पासी समाज को आवंटित जमीन पर यादवों और ठाकुर का था अवैध कब्जा!

इसी में 10 बिस्वा जमीन का पट्टा लालचंद्र निर्मल को 13 सितंबर 2009 में मिला था। उसने एक साल बाद इस जमीन पर 15 सितंबर 2010 में पहली बार खेती शुरू की थी। अस्वस्थ होने के कारण उसने इस पर कुछ समय बाद खेती करना छोड़ दिया और अपने रिश्तेदारों के घर चला गया। जब इसपर कब्जा होने लगा तो उसने शिकायत की। कुछ समय के लिए अधिकारियों ने लालचन्द्र के नाम पट्टा हुई जमीन पर हो रहे कब्जे को रुकवा दिया। लेकिन यह नहीं थमा और कुछ समय बाद आरोपियों ने दोबारा कब्जा करना शुरू कर दिया। लालचन्द्र जब जमीन नहीं बचा सका तो उसने यह जमीन शिवसरन को बेच दी।

ग्रामीणों का कहना है प्रशासन से यही मांग की जा रही थी कि बुलडोजर मंगवाकर अवैध निर्माण गिरवाएं। आरोप लगाया कि चकबंदी, प्रशासन व पुलिस के लोग आते तो हैं लेकिन पैसा लेकर चले जाते हैं। भूमि विवाद को लेकर कई बार झगड़े भी हुए पर पुलिस ने उन्हें या तो रफा-दफा कर दिया या फिर निरोधात्मक कर पल्ला झाड़ लिया।

पीड़ित परिजनों ने द मूकनायक को बताया, 'शिवसरन की पत्नी 7 माह के गर्भ से थी। शिवसरन तथा उसकी पत्नी बृजकली घर आने वाले नन्हें मेहमान को लेकर तमाम तरह के सपने बुन रही थी।'

घरों में तोड़-फोड़ आगजनी के बाद गाँव में पसरा सन्नाटा

इस घटना के बाद भड़की हिंसा में 50 मकानों में जमकर तोड़-फोड़ की गई थी। लोगों के घरों में घुसकर आगजनी की गई थी। उनके घर के बाहर खड़े मकानों के वाहन जले हुए पड़े थे। इस घटना में लगभग एक दर्जन वाहन फूंक दिए गए थे। कारखाने और दुकानें जला दी गईं। कई घर खुले पड़े हैं। इनमें रहने वाले सभी लोग फरार हो गए थे।

इस मामले में द मूकनायक के पास एफआईआर की कॉपी मौजूद है। एफआईआर के मुताबिक इस घटना में गुड्डू यादव, अमर सिंह, अमित सिंह, अरविंद सिंह, अनुज सिंह, राजेन्द्र सिंह, सुरेश व अजीत शामिल हैं। पुलिस ने कार्रवाई करते हुए अमर सिंह और अमित सिंह को गिरफ्तार कर लिया है। जबकि अन्य 6 की गिरफ्तारी में जुटी है।

प्रशासन ने गिराया अवैध निर्माण

बीते 22 सितंबर को जिला प्रशासन और पुलिस की टीम ने पहुंचकर अवैध निर्माण गिराया। जबकि पीड़ित परिजन अभी इस कार्रवाई से असंतुष्ट नजर आए। पीड़ित परिवार का आरोप है कि प्रशासन ने अवैध निर्माण के नाम पर सिर्फ दीवार की गिराई है। प्रशासन पूरा मकान गिराने का वादा किया था।

प्रशासन का पक्ष

इस मामले में एसडीएम चायल दीपेंद्र यादव नेद मूकनायक को बताया, 'प्रशासन का कार्य जान-माल का नुकसान न हो यह भी सुनिश्चित करना है। अतः इस मामले में आरोपियों के अवैध निर्माण को कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद ही गिराया जा सकेगा।'

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