औरंगाबाद : ‘मंदिर के पास है बिल्डिंग इसलिए दलित को घर देना मना है’

बिल्डर ने दलित वकील को घर बेचने से किया इनकार, कहा- “शहर से बाहर मकान दिला सकते हैं”
बिल्डर ने दलित वकील को घर बेचने से किया इनकार, कहा- “शहर से बाहर मकान दिला सकते हैं”
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तनु सिंह की रिपोर्ट-

औरंगाबाद। देश में आए दिन जाति के नाम पर भेदभाव किया जा रहा है। जातिवाद की जड़े हमारे समाज में इतनी गहरी हो चुकी है कि उसका खामियाजा कभी-कभी पढ़े लिखे बुद्धिजीवी लोगों को भी भुगतना पड़ता है। ताजा मामला महाराष्ट्र के औरंगाबाद का है। यहां एक वकील को उसकी जाति के कारण मकान नहीं मिल सका।

क्या है पूरा मामला

महाराष्ट्र के औरंगाबाद में एक वकील को उसकी जाति के कारण मकान देने से मना करने का मामला सामने आया है। मामला औरंगाबाद के चिकलथाना इलाके का है। थाने में दर्ज़ की गई शिकायत के अनुसार 39 वर्षीय महेंद्र गंडले एक घर खरीदना चाहते थे।

दरअसल, महेंद्र गंडले के दोस्त ने आवास परियोजना का सुझाव दिया था। उसके अनुसार, गंडले 7 जनवरी को अपने परिवार के साथ अंडर कंस्ट्रक्शन अपार्टमेंट सोसाइटी में फ्लैट खरीदने पहुंचे थे। और उनके परिवार को वहां मौजूद सेल्स एग्जिक्यूटिव्स ने पहले बड़े प्यार से डील किया। उन्हें फ्लैट दिखाए, रेट बताया, डील की बात की लेकिन फिर अचानक उसकी जाति पूछ ली।

गैंडले ने कहा कि जब उन्होंने घर खरीदने में रुचि दिखाई, तो कर्मचारी ने उनकी जाति के बारे में पूछा और जब उन्होंने खुले तौर पर उन्हें अपनी जाति बताई तो कर्मचारी ने कहा कि परियोजना के मालिकों ने उन्हें किसी भी दलित व्यक्ति को संपत्ति नहीं बेचने के लिए कहा है।

"दलित को नहीं दे सकते फ्लैट"

पहले तो महेंद्र गंडले और उनके परिवार को घर दिखाया गया और उनके साथ अच्छा बर्ताव का गया। अंत में जब सेल्स एग्जिक्यूटिव्स को पता चला कि महेंद्र गंडले दलित हैं तो उनके भाव बदल गए।

उन्होंने कहा कि "आप यहां घर नहीं खरीद सकते क्योंकि आपकी जाति के लोगों को घर बेचने से बिल्डर ने मना किया है।"

शहर से बाहर दिला सकते हैं मकान

सेल्स एग्जिक्यूटिव्स ने न सिर्फ जाति के नाम पर महेंद्र गंडले को फ्लैट देने से मना किया बल्कि, उनसे गलत बर्ताव भी किया। दलित परिवार से यह भी कहा गया की यदि वह हमसे ही फ्लैट खरीदना चाहते है तो हम उन्हें शहर से बहार एक मकान दिला सकते हैं।

जी हां! बिल्डर की पॉलिसी के तहत मंदिर के करीब होने के कारण दलितों को वहाँ मकान देने के लिए मना किया गया है। वहां केवल ब्राह्मण समाज के लोगो को ही मकान खरीदने की इज़ाज़त दी गई है।

सपनों का घर चाहते हैं महेंद्र गंडले

महेंद्र गंडले पिछले लगभग 10 साल से किराए के मकान व दुकान पर रह रहे है। बड़ी मेहनत के बाद उन्होंने मकान खरीदने के लिए पैसे इकठ्ठा किए थे। लेकिन उनकी जाति के कारण मनुवादी बिल्डर ने उन्हें मकान देने से मना कर दिया।

महेंद्र ने "द मूकनायक" से बात करते हुए बताया उनके साथ ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, पहले भी कई लोगो ने उन्हें जाति के कारण मकान किराए पर देने से मना कर दिया था। महेंद्र गंडले का कहना है की इन सब चीज़ो के कारण उनके परिवार की भावनाओ को ठेस भी पहुँची है।

अगले दिन महेंद्र जब अपने दोस्त के साथ बिल्डर के ऑफिस पहुंचते हैं तो वहाँ भी बार-बार उनसे उनकी जाति पूछी जाती है, और खुले तौर पर मकान देने से मना किया जता है। इतना ही नहीं उन्हें यह राय देते हैं, की यदि वह उनसे ही घर खरीदना चाहते है तो वह उन्हें शहर के बहार एक मकान दिला सकते है जहाँ उन्ही की जाति के कई अन्य लोगो ने घर ख़रीदा है।

जबकि महेंद्र का यह कहना है कि, जिस इलाके में सेल्स एक्सक्यूटिव उन्हें घर दिलाने की बात कर रहा है वह इलाका शहर के बाहर है व उसके आसपास कोई स्कूल, सड़क व दुकाने भी नहीं है।

मुकदमा दर्ज और गिरफ्तारी

महेंद्र ने स्थानीय थाने में मुकदमा दर्ज़ करा दिया है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 और धारा 4 (अस्पृश्यता के उपदेश और अभ्यास के लिए सजा), धारा 6 ("अस्पृश्यता" के आधार पर) अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955 के तहत किसी भी सेवा को बेचने से इंकार करना) और 7(1-ए) (प्रतिशोध के रूप में अस्पृश्यता का अपराध) आदि धाराओं में उन्होंने मुकदमा दर्ज कराया है।

अबतक इस मामले मे 2 कर्मचारियों की गिरफ़्तारी भी की गई है।

बिल्डर को गिरफ्तार करने की मांग

जातिवाद के इस खेल में महेंद्र गंडले को अपने सपनों का घर नहीं मिल पाया। पैसे होने के बाद भी उन्हें दलित होने का खामियाजा भुगतना पड़ा। इसके साथ ही उन्हें और उनके परिवार को जिस तरह से नीचा दिखाने का प्रयास किया गया है उससे वह काफी आहत हैं। दो लोगों की गिरफ्तारी के बाद भी महेंद्र की मांगे जारी हैं।

महेंद्र का यह कहना है कि, जब तक मुख्य आरोपी की गिरफ़्तारी नहीं हो जाती तब तक वह चुप नहीं बैठेंगे। बिल्डर की गिरफ़्तारी होना आवश्यक है क्योकि उसी के कहने पर इन कर्मचारियों ने उन्हें मकान देने से मना किया है।

जातिवाद हमारे देश और समाज की रगो में दौड़ता है और इसी का उदाहरण है कि महेंद्र गंडले को उनके सपनों का घर नहीं मिल सका। पेशे से वकील होने के बाद भी उनके साथ इस तरह का बर्ताव कहा तक जायज है!

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