अंबेडकराइट सोशल कैफे; ताकि पढ़ सकें दलित बेटियां, आगे बढ़ सकें बेटियां

दिल्ली की एक दलित महिला ने समाज की बच्चियों के पढ़ाई के लिए खोला सोशल कैफे।
कैफे में आई महिलाएं
कैफे में आई महिलाएंPhoto- Poonam Masih, The Mooknayak
Published on

नई दिल्ली। शहर की गोद में बसे गांवों और कच्ची बस्तियों में अभावों में जी रहे लोग अपने सपनों को साकार करने में दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। इनमें से कइयों के सपने पूरे हो जाते हैं तो कइयों के नहीं। ऐसे ही एक सपना दक्षिण दिल्ली की लाडो सराय की दलित बस्ती की अंजू ने देखा था, जिसे वह आज पूरा करते हुए काफी उत्साहित हैं।

लाडो सराय गांव के दलित मोहल्ले में रहने वाली अंजू का सपना था कि वह अपनी समुदाय की लड़कियों को शिक्षित करेंगी, उन्हें दलित साहित्य और इतिहास के बारे में बताएंगी। अपने इस सपने को पूरा करने के लिए अंजू ने एक कैफे खोला है। जिसका नाम अंबेडकराइट सोशल कैफे है। यह कैफे उन्होंने अपने घर में ही खोला है, जिसमें दलित लड़कियां आकर पढ़ सकती हैं। अंजू के इस कैफे के बारे में द मूकनायक ने उनसे बात की।

महानगरों में भी जातिवाद का दंश आज भी जिंदा है

अंजू कहती है कि, "भले ही हम महानगर में रहते हैं, लेकिन आज भी जातिवाद का दंश हमारे साथ ही है। हम लोग कितना भी पढ़ लिख जाएं, लेकिन भेदभाव न कभी खत्म हुआ और कभी होने वाला है। बस तरीका बदल गया है।"

अंजू कहती है कि, "स्कूल के दिनों से हमारी लड़किंयों को जाति के नाम पर अपमान का सामना करना पड़ता है। यहां तक की टीचर्स भी उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते हैं, जिसके कारण कई बच्चियां स्कूल छोड़ देती हैं। ये चीजें लंबे समय से चली आ रही हैं। बच्चियां शिक्षा से वंचित नहीं रह जाएं। इसलिए यह कैफे खोला है ताकि यहां आकर लड़कियां पढ़ सकें। अपनी परेशानियों को बता सकें ताकि उन्हें मानसिक रूप से भी मजबूत किया जाए।"

कैफे की शुरूआत के बारे में अंजू बताती हैं कि, "इसे शुरू करने से पहले मैंने दस साल तक एनजीओ में रहते हुए दलित महिलाओं के लिए काम किया है, जिसमें मैंने दलित महिलाओं की ऐसी स्थिति को देखा है। जहां उन्हें घर और समाज दोनों से प्रताड़ित होना पड़ता है। इसका सबसे बड़ा कारण — उनके पास शिक्षा नहीं थी। अगर वह शिक्षित होती तो शायद उन्हें यह प्रताड़ना नहीं झेलनी पड़ती। इसके लिए मैंने प्लॉन किया कि एक ऐसा स्पेस बनाऊंगी जहां लड़कियां आकर पढ़ सकें। अपनी बात को रख सकें।"

यह कैफे सिर्फ दलित महिलाओं के लिए है

क्या यह कैफे सभी महिलाओं के लिए है, और यहां आने की कितनी फीस है? के सवाल पर उन्होंने बताया कि, यह कैफे सिर्फ दलित लड़कियों के लिए है क्योंकि उन्हें ही शिक्षा से दूर रखा गया है। आज भी बहुत जगह ऐसी हैं, जहां उन्हें आगे आने नहीं दिया जा रहा है। फिलहाल यह दिल्ली में खुला है। कुछ समय के बाद यह देश के अन्य जगहों में खोला जाएगा। ताकि लड़कियां शिक्षा से वंचित न रह सकें। इस कैफे की कोई फीस नहीं है। यहां लड़कियों को हर तरह की सुविधा दी जाएगी। कैफे में दलित इतिहास की किताबों से लेकर प्रतियोगी परीक्षा की किताबें रखी जाएंगी, जिससे बच्चियां नौकरी के लिए भी तैयारी कर सकें। फिलहाल यहां आठवीं क्लास की बच्चियों से लेकर ग्रेजुएशन तक स्टूडेंट्स हैं जो यहां पढ़ने आती हैं। कुछ महिलाएं भी हैं जो अपने नॉलेज को बढ़ाने के लिए पढ़ने के लिए आती हैं।

अंजू बताती है कि, इस कैफे को खोलने का एक कारण यह भी है कि हमारे समुदाय के लोगों के घर छोटे होते हैं, जिसके कारण पढ़ने के लिए कमरा नहीं होता है, उन्हें पढ़ने का समय नहीं मिलता है। यह कैफे उन लड़कियों के लिए भी है जो यहां आकर पढ़ सकें।

"इसकी शुरुआत करने से पहले हमें जगह को लेकर भी कंफ्यूजन था। हमें ऐसी जगह की तलाश थी जहां सुरक्षा को लेकर हमें कोई चिंता न हो। बहुत जगह खोजा। अंत में अपने घर का एक फ्लोर ही कैफे में तब्दील कर दिया। अभी इस कैफे को शुरू हुए कुछ ही दिन हुए हैं। उम्मीद है आगे और भी लड़कियां इसका हिस्सा बनेंगी", अंजू ने कहा।

कैफे में आई महिलाएं
उत्तराखंड: मन्दिर में प्रवेश करने पर दलित युवक की पिटाई, हाथ-पीठ और कूल्हे को दागा

द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.

The Mooknayak - आवाज़ आपकी
www.themooknayak.com