नई दिल्ली। आरक्षण मसले पर एक वीडियो क्लिप में बोलते हुए अजीत भारती (Ajeet Bharti) नाम के युवक ने भारत रत्न डॉ. अंबेडकर के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी की है। यह वीडियो क्लिप कुछ ही देर में सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसके बाद बहुजन संगठनों से जुड़े लोगों और अन्य सोशल मीडिया यूजर्स ने अजीत भारती के खिलाफ कार्रवाई की मांग शुरू कर दी।
एक्टिविस्ट सूरज कुमार बौद्ध ने अजीत भारती के एक वीडियो को पोस्ट करते हुए पुलिस कार्रवाई की मांग की है। सूरज ने लिखा कि, "मनुरोग से कुंठित अजीत भारती डॉ बाबासाहेब पर अपशब्द बोलकर समाज में दंगा कराने की कोशिश कर रहा है। इस दंगाई इंसान पर कार्रवाई होनी चाहिए। बहुजन समाज के लोग अगर यही बात राम और कृष्ण पर बोलेंगे तो हिंदुओं को कैसा लगेगा? जवाब दो।"
एक अन्य सोशल मीडिया पोस्ट में सूरज ने लिखा कि, "हमारे गांव में हिंदू एक दूसरे को नमस्कारी के रूप में "जय राम, जय कृष्ण" कहते हैं। वहीं दलित अभिवादन हेतु एक दूसरे को "नमो बुद्धाय, जय भीम" कहते हैं। अजीत भारती जो शब्द "जय भीम" के लिए यूज कर रहा है। क्या वही शब्द वह "जय राम" के लिए भी बोलता है?"
यूट्यूबर श्याम मीरा सिंह ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा कि, "इस आदमी के चेहरे से ही काइयाँपन छलकता है। डॉक्टर अंबेडकर के लिए इसकी भाषा बताती है कि अंदर ही अंदर इस आदमी के अंदर दलितों और डॉक्टर आम्बेडकर के लिए कितनी घृणा है। जलन बरकरार रहे। वंचितों और शोषितों के बच्चे इसी तरह आगे बढ़ते रहें।"
खुद को पत्रकार और लेखक बताने वाला अजीत भारती नाम का सोशल मीडिया यूजर अपने उक्त मूल वीडियो में "आरक्षण और जातिगत भेदभाव" के मामले पर कटाक्ष करते हुए देखा जा सकता है। वीडियो के आखिरी में उसने डॉ. अंबेडकर के लिए आपत्तिजनक नारे की टिप्पणी की, जिसके बाद सोशल मीडिया पर लोगों में नाराजगी फैल गई।
संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (A) के तहत देश के सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति की आजादी दी गई है. इंटरनेट और सोशल मीडिया ने इसे प्रोत्साहित करने में अहम रोल निभाया है. हालांकि अभिव्यक्ति की यह आजादी उसी सीमा तक है, जहां तक आप किसी कानून का उल्लंघन नहीं करते हैं और दूसरे को आहत या नुकसान नहीं पहुंचाते हैं.
अगर आपके किसी पोस्ट पर या फिर किसी पोस्ट को शेयर करने से किसी की भावना आहत होती है या दो समुदायों के बीच नफरत पैदा होती है, तो आपको जेल की हवा खानी पड़ सकती है. भारतीय संसद ने साइबर क्राइम को रोकने के लिए साल 2000 में इनफॉर्मेशन एक्ट यानी आईटी एक्ट बनाया था.
इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी यानी आईटी एक्ट 2000 की धारा 67 में प्रावधान किया गया है कि अगर कोई इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से आपत्तिजनक पोस्ट करता है या फिर शेयर करता है, तो उसके खिलाफ मामला दर्ज किया जा सकता है. इसका मतलब यह है कि यदि कोई टिक टॉक, शेयर चैट, फेसबुक, ट्विटर समेत किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट करके अलग-अलग समुदायों के बीच नफरत फैलाने की कोशिश करता है, तो उसके खिलाफ आईटी की धारा 67 के तहत कार्रवाई की जाती है.
आईटी एक्ट की धारा 67 में कहा गया है कि अगर कोई पहली बार सोशल मीडिया पर ऐसा करने का दोषी पाया जाता है, तो उसे तीन साल की जेल हो सकती है. साथ ही 5 लाख रुपये का जुर्माना भी देना पड़ सकता है. इतना ही नहीं, अगर ऐसा अपराध फिर दोहराया जाता है, तो मामले के दोषी को 5 साल की जेल हो सकती है और 10 लाख रुपये तक का जुर्माना देना पड़ सकता है.
इसके अलावा, उक्त मामलों में भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धारा 153A के तहत भी सोशल मीडिया यूजर के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। यह धारा उनके खिलाफ लगाई जाती है, जो धर्म, नस्ल, भाषा, निवास स्थान या फिर जन्म स्थान के आधार पर अलग-अलग समुदायों के बीच नफरत फैलाने और सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश करते हैं. इस धारा के तहत तीन साल की जेल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है.
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