बंगलुरु- बंगलुरु की निवासी , एक दलित महिला चेतना कुमारी पी. पिछले 22 दिनों से कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस समिति (KPCC) के ऑफिस के बाहर धरना दे रही हैं। चेतना के मुताबिक यह धरना उनके और उनके बच्चों के साथ "उच्च जाति" के गुंडों द्वारा किये जा रहे कथित उत्पीड़न के खिलाफ है, जो "गौड़ा" समुदाय से हैं।
हर दिन कार्यालय के बाहर बैठकर, वह एक प्रेरणादायक वीडियो बनाती हैं, जिसमें वह सरकार का ध्यान आकर्षित कर न्याय की मांग करने और अपने समुदाय को अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित करती हैं, जिससे समानता को वास्तविकता बनाना संभव हो सके।
चेतना का कहना है कि उन्होंने बार-बार पुलिस, अदालतों, नौकरशाहों और राजनीतिक नेताओं से मदद मांगी है, लेकिन इन गुंडों का प्रभाव हर सरकारी प्रणाली में है। उनका आरोप है कि कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार, उनके खिलाफ हैं और गुंडों का बचाव कर रहे हैं क्योंकि वो उनके समुदाय के हैं।
चेतना कहती हैं, वे शिव कुमार से हाल ही में मिली, " वे कैमरे के सामने बहुत मित्रवत रूख दिखाते हैं लेकिन असलियत में वे दलितों के विरुद्ध हैं. जब मैंने उनसे बात की तो उन्होंने आश्वासन दिया कि वे होम मिनिस्टर से बात करेंगे लेकिन यदि उन्हें वास्तव में मदद करनी होती तो मेरे सामने फोन करना चाहिए" एक विडियो में चेतना कहती हैं.
चेतना ने बताया कि ये गुंडे कोठवाल रामचंद्र के साथ जुड़े हुए हैं, जो बंगलुरु के एक पूर्व डॉन थे। "इस नेटवर्क के साथ डीके शिवकुमार का नाम भी जुड़ा हुआ था. चेतना कहती हैं यदि उनके साथ कुछ भी गलत होता है, तो वे 100% डीके शिवकुमार को इस अपराध में शामिल मानती हैं।
चेतना ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिए तीन सप्ताह से अपना संघर्ष जारी रखा है। वो कहती हैं , "मैं न तो अपने अधिकारों को छोड़ूंगी और न ही अपनी ज़मीन को, चाहे मुझे डीके शिवकुमार द्वारा धमकाया जाए। मैं एक दलित हूं, लेकिन बेवकूफ नहीं। मैं अपने अधिकारों को जानती हूं— और यह समय है कि संविधान को जीया जाए, न कि इसे केवल शब्दों के रूप में देखा जाए जो गुंडों को न्याय के हाथों से बचने में मदद करते हैं।"
चेतना ने यह भी कहा कि 5000 साल की ऊंची जातियों की जिद्दी मानसिकता इतनी जल्दी नहीं जाएगी। "हमारा दुश्मन बहुत जिद्दी है, और इससे लड़ने के लिए मुझे दोगुनी जिद्दी बनना होगा।" उन्होंने अपने संघर्ष के दौरान यह स्पष्ट किया कि समाज के दबाव को नजरअंदाज करते हुए, वे अपनी लड़ाई जारी रखेंगी और अपनी आवाज को बुलंद रखेंगी।
उनका यह धरना केवल व्यक्तिगत संघर्ष नहीं है, बल्कि यह एक बड़ी सामाजिक बदलाव की दिशा में उठाया गया कदम है।
चेतना ने अपने समुदाय से एकजुट होकर अपने अधिकारों के लिए लड़ने का आह्वान किया है, "यह समय है कि आपसी मतभेदों को छोड़कर अपने अधिकारों को सुनिश्चित किया जाए। " चेतना का कहना है कि समाज unrealistic expectations लाद देता है , लेकिन उन्हें इसकी परवाह नहीं है। "मैं अपना समाधान स्वयं खोजूंगी, कोई और मेरी समस्या का समाधान नहीं करेगा।"
उन्होंने यह भी कहा कि वो सबसे गौरवमयी क्षण था जब अनुसूचित जातियों और जनजातियों ने ब्रिटिशों के खिलाफ विद्रोह किया और भारतीय वस्तुओं को ले जाने वाली ट्रेन को रोक दिया। "शायद यही दलित थे जिन्होंने ऊंची जातियों को ब्रिटिशों के खिलाफ विद्रोह करने के लिए प्रेरित किया".
चेतना ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि जब बुनियादी जरूरतें जैसे भोजन, कपड़ा और आश्रय पूरी हो जाती हैं, तो हर व्यक्ति स्वतंत्रता चाहता है। वे पूछती हैं "लेकिन दलित अपनी स्वतंत्रता के लिए कब लड़ेंगे?"।
आगे चेतना कहती हैं कि आज देश में कई राजनीतिक दल अपने पैर जमाने की कोशिश कर रहे हैं और कई चुनाव हो रहे हैं। "इस समय दलित समुदाय को अपने बच्चों और पोते-पोतियों के भविष्य के लिए आपसी झगड़ों को छोड़कर एकजुट होना चाहिए। वरना उन्हें भी वही अपमान और हालात का सामना करना पड़ेगा, जिसका सामना हम आज कर रहे हैं।"
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