भोपाल- SC-ST के उप-वर्गीकरण को अनुमति देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चर्चा करने के लिए मध्य प्रदेश के समस्त आदिवासी/दलित संगठनों के अध्यक्ष प्रतिनिधियों ने एक संयुक्त बैठक की। राजधानी भोपाल के राहुल नगर स्थित बुद्ध विहार परिसर में यह बैठक शनिवार को आयोजित की गई।
बैठक में शामिल 32 अनुसूचित जाति और जनजाति सामाजिक संगठनों ने एक स्वर में सुप्रीम कोर्ट के एससी-एसटी उप-वर्गीकरण के फैसले से असहमति जाहिर की। बैठक में 21 अगस्त को भारत बंद आह्वान में सभी संगठनों ने शामिल होने का फैसला लिया है।
अखिल भारतीय अहिरवार महापरिषद के प्रदेश प्रभारी महेशप्रसाद अहिरवार ने द मूकनायक से बातचीत में कहा की, सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बाबा साहब अंबेडकर द्वारा दिए गए संविधान का अपमान करता है। हम इस फैसले का विरोध करते है। हमारी केंद्र सरकार से मांग है, की वह सदन का विशेष सत्र बुलाकर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को पलट दें।
उन्होंने आगे कहा, "सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला दोनों ही वर्गों में विभाजन की स्थिति पैदा करता है। ऐसा प्रतीत होता है, यह हमें फायदा देने के लिए नहीं बल्कि हमें आपस में बांटने और लड़ाने के लिए यह लाया जारहा हो। आरक्षण आर्थिक आधार पर नहीं, सामाजिक आधार पर दिया गया है।"
अनुसूचित जाति, एवं जनजाति संगठन प्रतिनिधियों की संयुक्त बैठक में आगामी 21 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में मध्यप्रदेश बन्द का आह्वान किया गया। द मूकनायक से बातचीत करते हुए बैठक के संयोजक सुरेश नंदमेहर ने बताया, की दोनों ही वर्ग लोग कोर्ट के फैसले से आहात हुए है। समाज में आक्रोश पैदा हुआ है। हमने मिलकर बैठक में प्रस्ताव पारित किया है, की हम 21 अगस्त को भारत बंद का समर्थन करते हुए, मध्यप्रदेश में भी इसे सफल बनाकर केंद्र सरकार तक अपनी बात पहुचायेंगे। ताकि सरकार इस फैसले को पलट दे।
सुरेश नंदमेहर आगे कहते है, "बाबा साहब के संविधान में छेड़छाड़ हम कभी बर्दाश्त नहीं कर सकते उन्होंने पिछड़े वंचित शोषित समाज को एकाग्रता के साथ राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक प्रतिनिधित्व देने पर जोर दिया लेकिन, सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला क्रमिलियर ढूंढ रहा है। यहाँ आज भी दोनों ही वर्ग के लोगों को समुचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल पा रहा है। चाहें वह राजनीति की बात ही या फिर शासकीय नौकरियों में भर्ती हो।"
अनुसूचित जाति एवं जनजाति सगठनों के प्रतिनिधि बैठक में करीब 32 सगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए, बैठक के आयोजक के मुताबिक बैठक में मध्यप्रदेश अनुसूचित जाति/जनजाति अधिकारी कर्मचारी संघ, राष्ट्रीय रविदास फाउण्डेशन , रविदासियां धर्म संगठन मध्यप्रदेश, जयस संगठन, अनुसूचित जाति जनजाति परिसंघ, रविदासियां गुजराती समाज संघ, अहिरवार समाज संघ भारत, राष्ट्रीय मेघवाल परिषद-भारत, सर्व मेघवंश महासभा इण्डिया, जाटव समाज संघ, जन्मस्थल एवं परिनिर्माण भूमि संघ, जांगड़ा महासभा मध्य प्रदेश, बलाई समाज संघ, मेघवाल समाज संघ, वाल्मीकि समाज संघ, सफाई कामगार मजदूर संघ, भीम आर्मी, वंशकार समाज संघ, बहुजन अधिकार संघ, राष्ट्रीय मेघवाल परिषद, राष्ट्रीय रविदास फाउण्डेशन, युवा बलाई समाज संघ मप्र, बौद्धिक शैक्षिक समिति, नारायण सिंह केसरी जन्म शताब्दी समारोह मध्यप्रदेश, अमर शहीद वीर मनीराम अहिरवार संघर्ष समिति मध्यप्रदेश, धानुक विकास संघ, मांझी अन्तर्राष्ट्रीय आदिवासी किसान सैनिक संस्था, अहिरवार समाज संघ मध्यप्रदेश, भारतीय संविधान अभियान मंच मध्यप्रदेश, मेहरा/डेहरिया समाज संघ, भारतीय बसोर समाज विकास समिति एवं अखिल भारतीय कोरी /कोली समाज संगठन के प्रतिनिधि शामिल हुए।
SC/ST श्रेणियों के भीतर उप-वर्गीकरण (कोटे के अंदर कोटा) की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को फैसला सुनाया है। कोर्ट ने राज्यों को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में उप-वर्गीकरण की अनुमति दे दी है। सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की पीठ ने यह फैसला सुनाया है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड की अध्यक्षता वाली 7 जजों की संविधान पीठ ने तय किया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के लिए उप-वर्गीकरण किया जा सकता है।
सात जजों की संविधान पीठ में CJI डी वाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस बी आर गवई, विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा शामिल हैं। CJI ने कहा कि 6 राय एकमत हैं, जबकि जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने असहमति जताई है।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में साक्ष्यों का हवाला दिया उन्होंने कहा कि अनुसूचित जातियां एक सजातीय वर्ग नहीं हैं, उप-वर्गीकरण संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत निहित समानता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करता है। साथ ही उप-वर्गीकरण संविधान के अनुच्छेद 341(2) का उल्लंघन नहीं करता है, अनुच्छेद 15 और 16 में ऐसा कुछ भी नहीं है जो राज्य को किसी जाति को उप-वर्गीकृत करने से रोकता हो।
कोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जातियां एक समरूप समूह नहीं हैं और सरकार पीड़ित लोगों को 15% आरक्षण में अधिक महत्व देने के लिए उन्हें उप-वर्गीकृत कर सकती है। अनुसूचित जाति के बीच अधिक भेदभाव है, SC ने चिन्नैया मामले में 2004 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें अनुसूचित जाति के उप-वर्गीकरण के खिलाफ फैसला सुनाया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एससी के बीच जातियों का उप-वर्गीकरण उनके भेदभाव की डिग्री के आधार पर किया जाना चाहिए। राज्यों द्वारा सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में उनके प्रतिनिधित्व के अनुभवजन्य डेटा के संग्रह के माध्यम से किया जा सकता है। यह सरकारों की इच्छा पर आधारित नहीं हो सकता।
दरअसल, पंजाब सरकार ने अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित सीटों में से 50 फीसद ‘वाल्मिकी’ एवं ‘मजहबी सिख’ को देने का प्रावधान किया था। 2004 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी।
इस फैसले के खिलाफ पंजाब सरकार व अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। 2020 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा था कि वंचित तक लाभ पहुंचाने के लिए यह जरूरी है। मामला दो पीठों के अलग-अलग फैसलों के बाद 7 जजों की पीठ को भेजा गया था।
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