नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट का 2 जनवरी को सुनाया गया फैसला हालांकि 4ः1 के बहुमत से सरकार और आरबीआई के फैसले को सही ठहराता है लेकिन वो एक जज जिन्होंने बाकियों से अलग अपनी असहमति जताई, उनके विचार जानना बहुत जरूरी हैं। लाइव लॉ के मुताबिक जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने नोटबंदी के फैसले को सही नहीं ठहाराया और उनकी सबसे ज्यादा चिन्ता इस बात पर झलकती है कि नोटबंदी को लागू करते समय कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।
अगर एक लाइन में जस्टिस बी. वी. नागरत्ना के फैसले को जानना हो तो इस टिप्पणी से समझ सकते हैं। आरबीआई ने नोटबंदी की सिफारिश में स्वतंत्र रूप से दिमाग नहीं लगाया, 24 घंटे में पूरी कवायद कर दी गई।
आइए जानते हैं कि जस्टिस नागरत्ना ने किन-किन प्वाइंट्स को बहुत महत्वपूर्ण तरीके से रखा।
एक सवाल नोटबंदी के समय उठा था कि क्या ऐसी घोषणा में संसद की भी कोई भूमिका होना चाहिए। इसका जवाब आज जस्टिस नागरत्ना के आदेश से मिला। लाइव लॉ के मुताबिक उन्होंने कहाः
संसद देश का लघु रूप है। संसद भारतीय लोकतंत्र का केंद्र है। ऐसे महत्वपूर्ण मामले में उसे अलग नहीं छोड़ा जा सकता है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा पेश दस्तावेजों को देखने पर लिखा मिलता है- केंद्र सरकार द्वारा वांछित… यह बताता है कि आरबीआई ने कोई स्वतंत्र आवेदन सरकार के पास नहीं किया था। उसने खुद इस पर कोई विचार नहीं किया था। पूरी कवायद 24 घंटे में की गई। मेरे विचार में 8 नवंबर 2016 की अधिसूचना के जरिए हुई। नोटबंदी की घोषणा गैरकानूनी थी। लेकिन 2016 की स्थिति को अब बहाल नहीं किया जा सकता है। लेकिन जिस तरीके से इसे लागू किया गया वह कानून के अनुरूप नहीं था।
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना
इस मामले में तमाम याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि आरबीआई अधिनियम के अनुसार नोटबंदी की सिफारिश भारतीय रिजर्व बैंक के बोर्ड से आनी चाहिए। लेकिन इस मामले में केंद्र सरकार के 7 नवंबर को आरबीआई को लिखे पत्र का हवाला दिया गया है कि उसमें ऐसी सिफारिश की गई थी।
यहां देखिए जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने लाइव लॉ के मुताबिक क्या कहा, “जब नोटबंदी का प्रस्ताव केंद्र सरकार से आता है, तो यह भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा 26 (2) के तहत नहीं आता है। यह कानून बनाकर ही लाया जा सकता है और अगर गोपनीयता की जरूरत है, तो फिर अध्यादेश ही सिर्फ रास्ता बचता है। धारा 26(2) के अनुसार नोटबंदी का प्रस्ताव आरबीआई का केंद्रीय बोर्ड ही ला सकता है।"
उन्होंने इसे और साफ करते हुए कहा कि केंद्र सरकार के इशारे पर 500 और 1000 रुपये के नोटों की सभी सीरीज की नोटबंदी आरबीआई द्वारा विशेष सीरीज के नोटबंदी की तुलना में कहीं अधिक गंभीर मुद्दा है। इसलिए, इसे कानून के जरिए किया जाना चाहिए था।
लाइव लॉ के मुताबिक जस्टिस नागरत्ना ने एक और महत्वपूर्ण बात कही..
"अगर यह मान लिया जाए कि आरबीआई के पास ऐसी पावर है। लेकिन इस पावर का कोई महत्व नहीं है, क्योंकि धारा 26(2) के तहत उसे पावर सिर्फ करेंसी नोटों की किसी विशेष सीरीज के लिए मिली है। सारे करेंसी नोटों की पूरी सीरीज के लिए नहीं।"
यहां पर जस्टिस नागरत्ना ने यह बताने की कोशिश की है कि आरबीआई किसी नोट की खास सीरीज पर नोटबंदी लागू कर सकता है, उस पूरी सीरीज के नोटों पर नोटबंदी लागू नहीं हो सकती है। आरबीआई को धारा 26(2) के तहत यह पावर है कि वो किसी नोट की किसी खास नंबर की सीरीज पर नोटबंद लागू कर सकता है, पूरी सीरीज पर नहीं। धारा 26 (2) में लिखे गए शब्द कोई भी सीरीज का मतलब सारी सीरीज नहीं है।
लाइव लॉ के मुताबिक जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने कहा कि, इस मामले में अब कोई राहत इसलिए नहीं दी जा सकती, क्योंकि नोटबंदी 2016 में लागू हो चुकी है। उन्होंने कहा कि 500 रुपये और 1000 रुपये के सभी नोटों की नोटबंदी गैरकानूनी और गलत है। हालांकि, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि अधिसूचना पर नोटबंदी की गई है, कानून की यह घोषणा केवल भावी प्रभाव से कार्य करेगी और पहले से की गई कार्रवाइयों को प्रभावित नहीं करेगी। इसलिए याचिकाओं में कोई राहत नहीं दी जा रही
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