दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने ऊबर, ओला, रैपीडो टैक्सी संचालन पर दिल्ली में क्यों लगाई रोक? जानिए वजह...

दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने ऊबर, ओला, रैपीडो टैक्सी संचालन पर दिल्ली में क्यों लगाई रोक? जानिए वजह...
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने रैपिडो और उबर जैसी कंपनियों को झटका देते हुए दिल्ली में बाइक टैक्सी सेवा पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने गत दिनों दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए इस संबंध में पॉलिसी बनने तक यह रोक लगाई है। दिल्‍ली में बाइक-टैक्‍सी पर रोक जारी रहेगी। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के स्‍टे ऑर्डर को रद्द कर दिया। SC ने हाई कोर्ट से तेजी के साथ मामला सुनने को कहा है। दोनों पक्षों को जल्‍द सुनवाई की अप्लिकेशन दायर करने की छूट दी गई है। दिल्‍ली सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील दायर की थी।

पूरा मामला क्या है?

दिल्ली परिवहन विभाग ने इस साल फरवरी में ऐप बेस्ड कंपनियों को अपनी बाइक सर्विस को बंद करने का नोटिस जारी किया था। दिल्ली सरकार ने कहा था कि ऐप आधारित कैब कंपनियां बिना जरूरी लाइसेंस के धड़ल्ले से बाइक सर्विस चला रही हैं। सरकार के मुताबिक कामर्शियल वाहन चलाने के लिए मंजूरी लेना जरूरी है।

ये भी कहा गया था कि ये इसलिए जरूरी है कि कस्टमर और खुद दोपहिया वाहन चालकों की सुरक्षा के मद्देनजर पुलिस वेरिफिकेशन, लाइसेंस, वाहन में GPS, पैनिक बटन जैसी बुनियादी सुरक्षा व्यवस्था हो। इसके बाद ही बाइक सर्विस का लाइसेंस दिया जा सकता है। दिल्ली सरकार की ओर से कहा गया था कि जब तक दोपहिया वाहनों के ऑपरेशन को लेकर पॉलिसी फाइनल नहीं हो जाती, तब तक बाइक सर्विस ना चलाई जाए।

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इसके खिलाफ रैपिडो और उबर जैसी कंपनियों ने दिल्ली हाई कोर्ट में अपील दायर की थी। हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार के उस नोटिस पर स्टे लगा दिया था। साथ ही पॉलिसी फाइनल होने तक बाइक-टैक्सी एग्रीगेटर्स को अपनी बाइक सेवाएं जारी रखने का आदेश दिया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि जब तक इस संबंध में पॉलिसी नहीं बन जाती, तब तक रैपिडो और दूसरी कंपनियों पर किसी तरह की सख्त कार्रवाई ना हो।

बाइक टैक्सी से क्या है दिक्कत?

दिल्ली सरकार का कहना है कि उसकी दिल्ली मोटर व्हीकल एग्रीगेटर स्कीम 2023 को अभी तक मंजूरी नहीं मिली है। उसका तर्क यह है कि बिना जरूरी शर्तें पूरी किए बाइक टैक्सी चलाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। इन जरूरी शर्तों में सभी बाइक का पुलिस वेरिफिकेशन, उसमें GPS डिवाइस, पैनिक बटन और सुरक्षा से जुड़े अन्य इंतजाम शामिल हों।

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दूसरी समस्या यह है कि ज्यादातर बाइक राइडर प्राइवेट नंबर की बाइक का इस्तेमाल करते हैं। दिल्ली सरकार का कहना है कि यह पूरी तरह से कमर्शियल काम है और प्राइवेट नंबर की बाइक का कामर्शियल इस्तेमाल करना मोटर व्हीकल ऐक्ट, 1988 का उल्लंघन है। दिल्ली सरकार ने इसी कानून की धारा 93 का हवाला देते हुए नोटिस जारी किया था कि नियमों का उल्लंघन करने पर एक लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा।

फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा केस

इसके बाद दिल्ली सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इस पर जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस राजेश बिंदल की वेकेशन बेंच ने सुनवाई की है। सुप्रीम कोर्ट ने अब दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया है। उसने हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि पॉलिसी तैयार होने तक कैब कंपनियों की बाइक्स दिल्ली की सड़कों पर नहीं चल सकती हैं।

दिल्‍ली में बाइक-टैक्‍सी: दोनों तरफ से क्‍या दी गईं दलीलें

दिल्‍ली सरकार की मुख्‍य दलील थी कि एग्रीगेटर्स की तरफ से दोपहिया वाहनों का इस्‍तेमाल बिना प्रॉपर लाइसेंस और परमिट के हो रहा है। एग्रीगेटर के लिए लाइसेंस की जरूरत का प्रावधान मोटर वीइकल एक्‍ट की धारा 93 में है। दिल्‍ली सरकार की दलील थी कि ये गाइडलाइंस चार पहिया और दो पहिया, दोनों तरह के वाहनों के लिए है। ऐसे में बिना पॉलिसी लाए नॉन ट्रांसपोर्ट टी-वीलर्स का यूज एग्रीगेटर्स नहीं कर सकते। दिल्‍ली सरकार एक पॉलिसी बना रही है। जब तक यह लागू नहीं होती, टू वीलर वाहन के बाइक टैक्‍सी के रूप में इस्‍तेमाल पर रोक जारी रहेगी।

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