देश मे लगातार बदलते आधुनिक परिवेश और जीवन के जद्दोजहद की व्यस्तता के बीच माता-पिता अपने बच्चों पर ध्यान रख पाने में चूक रहे हैं। इसके कारण बच्चे में अकेलापन, तनाव और चिड़चिड़ापन बढ़ता जा रहा है। आधुनिकीकरण इसके लिए पूर्ण रुप से जिम्मेदार है। देश के विभिन्न्न राज्यों से लगातार ऐसी हिंसा की खबरे आ रही है, जिसमे नाबालिग बच्चे और युवा अपने ही माता-पिता की हत्या के कारण बन रहे हैं। इसकी मुख्य वजह बच्चों की दिनचर्या, खानपान और उनकी कार्यशैली है।
हाल ही में नाबालिग बच्चों द्वारा की गई ऐसी घटनाओं को लेकर द मूकनायक ने केजीएमसी के मनोविज्ञान के विभागाध्यक्ष डॉक्टर विवेक अग्रवाल से उनकी राय जानी। डॉ. अग्रवाल द्वारा बताए गए सुझावों पर ध्यान देकर आप भी अपने बच्चे को इस आधुनिकीकरण के भयावह जाल से बचा सकते हैं साथ ही उन्हें अपने ही माता-पिता के मौत का कारण बनने से रोक सकते हैं।
बच्चे के स्वभाव पर उसके चतुर्दिक परिवेश का खासा असर पड़ता है
केजीएमसी के मनोवैज्ञानिक विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. विवेक अग्रवाल ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया, "इसमें कई बातें महत्त्वपूर्ण होती हैं। परिवार का वातावरण कैसा है? परिवार के लोगों के बीच कम्युनिकेशन (सम्पर्क) कैसा है? इसके साथ ही माता-पिता बच्चों पर ध्यान कितना दे रहे हैं? आजकल का माहौल ऐसा है कि माता-पिता खुद ही कम उम्र में ही बच्चों को मोबाईल दे देते हैं। माता-पिता सोचते हैं कि बच्चा इसमें व्यस्त हो जाएगा, तो वह अपने सभी काम आसानी से कर लेंगे। इसी के साथ बच्चों को बचपन से मोबाइल फोन की आदत पड़ जाती है। माता-पिता काम मे व्यस्त रहते हैं। बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है, समय के साथ ही उम्र भी बढ़ती जाती है और यह एडिक्शन का रुप ले लेती है। बाद में जब इसे कंट्रोल करने की कोशिश की जाती है, तो वह असामान्य हो जाता है। एक लंबे समय के दौरान हुए एडिक्शन के बाद जब बच्चों से यह चीजें ले ली जाती हैं, तब बच्चे परेशान होने लगते हैं और उग्र हो जाते हैं।"
"जैसे एक नशा करने वाला व्यक्ति होता है और जब उसे नशा करने के लिए नहीं मिलता और वह परेशान हो जाता है। यह बिल्कुल ठीक उसी तरीके से होता है," डॉक्टर अग्रवाल ने बताया।
बच्चों की परवरिश में ज्यादा ख्याल रखने की आवश्यकता होती है। डॉ. अग्रवाल आगे बताते हैं, "आज के समय मे बच्चों को बचपन से ही हाथ में मोबाईल पकड़ा दिया जाता है। इसके साथ ही पूरा दिन टेलीविजन देखना, कम्प्यूटर-लैपटॉप और वीडियो गेम का आवश्यकता से अधिक इस्तेमाल करने से बच्चों की दिमागी संरचना पर बड़ा प्रभाव डालता है।" इसके भी कई मानक तय किये गए हैं। यदि इसका पालन किया जाता है, तो ऐसी अप्रीय घटनाओं को रोका जा सकता है।
मोबाईल एडिक्शन बड़ी समस्या
"आधुनिक समय मे नाबालिगों द्वारा मोबाईल का आवश्यकता से अधिक प्रयोग करने के कारण उन्हें बुरी लत लग जाती है। माता-पिता व्यस्त होने के कारण नाबालिगों के द्वारा मोबाईल इस्तेमाल करने की समयावधि पर ध्यान नहीं देते हैं। जिसके कारण यह समस्या आगे जाकर बीमारी का रुप ले लेती है," मनोवैज्ञानिक डॉक्टर विवेक अग्रवाल ने द मूकनायक को बताया।
क्या हैं मानक?
-मात्र दो साल तक के बच्चों को मोबाईल बिलकुल नही दिया जाना चाहिए।
-दो साल से पांच साल तक के बच्चों को आधा घन्टा।
-पांच से बारह वर्ष की उम्र के बच्चों को एक घन्टा या छुट्टियों में दो घण्टे।
-बारह साल की उम्र से ऊपर के बच्चों को उन्हें तीन घण्टे तक इस्तेमाल कर सकते हैं।
डॉक्टर अग्रवाल के अनुसार, उक्त इस बात का विशेष ध्यान रखना होता है। इसमें मोबाईल, कम्प्यूटर, टेलीविजन सब शामिल है।
लक्षण
-बच्चे का घर के लोगों से बातचीत कम कर देना।
-ज्यादातर समय अकेले में ही बिताना।
-किसी भी बात को लेकर तुरन्त गुस्सा आ जाना।
-छोटी – छोटी बातों को लेकर चिढ़ जाना।
-खाना खाने में आनाकानी करना।
-अपने से बड़ो का आदर न करना या उन्हें इग्नोर करना।
-ऊंची आवाज में चिल्लाना या बोलना।
इस पर रखना चाहिए विशेष ध्यान
डॉक्टर अग्रवाल बताते है, "माता-पिता को बच्चो को दूसरी चीजों में भी लगाना चाहिए। जिसमें आउटडोर गेम, स्विमिंग, साइकलिंग, ड्राइंग (चित्रकला) आदि शामिल है। बच्चों को पार्क में खेलने के लिए भेजना चाहिए। अगर घर मे बच्चे खाली हैं तो उनके खेलने के लिए चीजे होनी चाहिए, जिससे उनमें क्रिएटिविटी पैदा हो सके, इससे दिमागी विकास तेजी से होता है। इसके साथ ही बच्चों को म्यूजिक सुनने के साथ ही म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट प्ले करना जैसी क्रियाए भी सीखानी चाहिए। स्टोरी किताबो को पढ़ना चाहिए।"
अगर बच्चा मोबाईल का एडिक्टेटड है तो यह करें
डॉक्टर अग्रवाल बताते हैं कि, अगर बच्चा मोबाईल की लत का शिकार हो चुका है तो उसे डॉक्टरों की परामर्श लेना चाहिए। इसके लिए केजीएमयू में हर शुक्रवार क्लीनिक चलता है।"
कई मामलों में बच्चों में मोबाईल एडिक्शन के साथ ही दिमागी बीमारी भी जुड़ जाती है। डॉक्टर अग्रवाल के अनुसार, "ADHD नामक बीमारी ऐसी बीमारी है जिसे चंचलता की बीमारी के नाम से भी जाना जाता है, जिसके कारण बच्चे में डिप्रेशन, एंकजाईटी शुरू होती है। ऐसी बीमारी के इलाज के लिए शुरुआत में काउंसलिंग की जाती है। जरूरत पड़ने पर बच्चों को कुछ दवाइयां भी दी जाती हैं।"
ऐसी घटनाएं जब बच्चों ने माता -पिता को उतार दिया मौत के घाट
5 जून, 2022 को यूपी के लखनऊ की यमुनापुरम कॉलोनी में 16 साल के एक नाबालिग लड़के ने अपनी मां साधना सिंह को देर रात 3 बजे गहरी नींद में सोते समय गोली मारकर मौत के घात उतार दिया। यही नहीं वह नाबालिग मां के शव के साथ दो दिन व तीन रात तक घर में रहा। छोटी बहन को धमकी दी कि अगर पुलिस या किसी को बताया तो उसे भी मार देगा। मंगलवार को बदबू फैलने लगी तो कहानी गढ़ी और पिता को सूचना दी। पुलिस के मुताबिक, पति सेना में सुबेदार मेजर (जेसीओ) के पद पर आसनसोल में तैनात हैं। पुलिस के मुताबिक नवीन का नाबालिग बेटा तेलीबाग स्थित एपीएस स्कूल में 10वीं का छात्र है। वह पबजी गेम का आदी है। इस बात की जानकारी होने पर मां अक्सर उस पर नाराज होती थी। लेकिन नाबालिग बेटे को मां के नाराजगी का कोई फर्क नहीं पड़ता। ज्यादा नाराज होने पर उसकी पिटाई कर दी जाती थी। वहीं वह इंस्ट्राग्राम का भी आदी था। उसने अपना प्रोफाइल बना रखा था। इन बातों की पुष्टि उसके मोबाइल से हुई है।
रेलवे अधिकारी की बेटी ने मां और भाई को मारी गोली
29 अगस्त 2020, रेलवे बोर्ड में प्रवक्ता पद पर तैनात आरडी बाजपेई का बर्थडे था, लेकिन वह घर पर नहीं बल्कि दिल्ली में ड्यूटी पर थे। उन्हें लखनऊ के गौतमपल्ली थाना क्षेत्र के विवेकानंद मार्ग पर रेलवे ने सरकारी बंगला दे रखा था। बंगला नंबर-9 में आरडी बाजपेई की पत्नी मालिनी दत्त बाजपेई, बेटा सर्वत्त बाजपेई और 15 साल की उनकी नेशनल शूटर बेटी रहती थी। पत्नी मालिनी और बेटे सर्वदत्त ने शाम को आरडी बाजपेई का बथर्ड वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मनाने का फैसला किया था। दिन में सारी तैयारियां हो गई और मां-बेटे एक ही बेड पर सो गए। दूसरे कमरे में 9वीं क्लास में पढ़ने वाली 15 साल की नेशनल शूटर बेटी 22 बोर की पिस्टल लेकर बैठी थी। दोपहर के तीन बजे कमरे से बाहर निकली। पिस्टल तानी और सोते हुए मां को गोली मार दी। 20 साल का भाई सर्वत्त उठ पाता इसके पहले ही उसे भी गोली मार दी। दोनों की मौके पर ही मौत हो गई।
छत्तीसगढ़ में नाबालिग ने माता-पिता को उतरा मौत के घाट
1 मार्च 2022, छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के उदयपुर थाना के ग्राम खोधला में नाबालिक पुत्र ने ही अपने माता फुलसुंदरी बाई (45) और पिता जयराम सिंह (50) की हत्या कर घर में ही शव को दफना दिया था। लगभग 5 दिन बाद मृतक के भाई ने उदयपुर थाना को सूचना दी थी कि उनके भाई नजर नहीं आ रहे हैं जिसके बाद उदयपुर पुलिस मौके पर पहुंची और जांच में जुट गई। जिसके बाद घर के अंदर का नजारा हैरान करने वाला था।
बच्चे का आरोप था कि उसे उसके माता-पिता प्यार नहीं करते थे इसलिए मारा। इस हत्याकांड के मामले में नाबालिक पुत्र को उदयपुर पुलिस ने हिरासत में ले लिया। पूछताछ में नाबालिक ने बताया कि परिवार के सदस्य उसे प्यार नहीं करते थे। जिससे नाबालिक अपने माता-पिता से काफी चिड़ाचिड़ा रहता था और इसी वजह से नाबालिक ने इस घटना को अंजाम दिया।
डिजिटाइजेशन ने संकीर्ण कर दिया स्पेश
चाइल्ड लाईन गौतमबुद्धनगर और FXB इंडिया सुरक्षा के COO (Chief operating officer) सत्य प्रकाश बताते हैं, "जब हम छोटे हुआ करते थे तब इतना आधुनिकीकरण नहीं था। हम सब खेलने के लिए घर के बाहर जाते थे। दोस्तो और परिवार के बीच समय बिताना पसन्द करते थे। लेकिन अब इसमें काफी बदलाव देखा गया है जो एक नकारात्मक परिणाम भी साथ लाया है। बच्चों का इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स पर निर्भरता बढ़ गई है। इसके कारण परिवार और दोस्तों से दूरी बढ़ी है, जो कि एक चिंता का विषय है।"
बच्चों पर FXB इंडिया सुरक्षा संस्था कर रही 13 राज्यों में कर रही काम
सत्य प्रकाश बताते हैं कि, बच्चों को लेकर हमारी संस्था 13 राज्यों में काम कर रही है। सरकारी संस्थाए भी लगातार इस पर काम कर रही है। इसे लेकर एक एडवाईजरी भी जारी करने की बात चल रही है। "सबसे पहले तो हम उन मामलों पर फोकस कर रहे हैं जहां बच्चों की मोबाईल पर निर्भरता बढ़ रही है। कोविड के दौरान इसमें तेजी देखी गई है। यह चिंता का विषय है। माता-पिता को इसपर ध्यान देना चाहिए।"
35 एजुकेशन सेंटर में किया जा रहा काम
"हमारी संस्था के 13 राज्यों में लगभग 35 सेंटर हैं। इन सेंटरों पर बच्चों के साथ मिलकर काम किया जा रहा है। नोएडा में 4 सेंटर है। बच्चों को डिजिटल कैसे सुरक्षित रखा जा सकता है, इस पर भी काम किया जा रहा है। यह एक राज्य का मामला नहीं है पूरे देश मे कहीं न कहीं ऐसी घटनाएं घटती हैं", सत्य प्रकाश ने बताया।
संस्कारो और नैतिक मूल्यों की जरूरत
उम्मीद संस्था के बलबीर सिंह मान बताते हैं, "लगातार बढ़ते इस आधुनिकीकरण ने संस्कारों और नैतिक मूल्यों को खत्म कर दिया है। हमें बच्चों को हमारी संस्कृति और सभ्यता के बारे में बताना चाहिए। उन्हें बड़ो का सम्मान करने के साथ ही आदर्श महापुरुषों के बारे में भी बताना चाहिए, जिससे उनमें सकरात्मक सोच बढ़े।"
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