नई दिल्ली: भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में चुनाव हमेशा ही एक जटल प्रक्रिया रहा है। 1990 के दशक तक भारतीय चुनावों में बैलेट पेपर का इस्तेमाल होता था। पांच लाख लोगों द्वारा मैनुअल वोटिंग पद्धति का इस्तेमाल करने के कारण, चुनाव संबंधी आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देना भी संभव हो गया। इसने उच्च न्यायालयों और भारतीय चुनाव अधिकारियों को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का उपयोग करने के लिए मजबूर किया।
EVM का सरल भाषा में मतलब होता है 'इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन'। यह मशीन साधारण बैटरी से चलती है। EVM मतदान के दौरान डाले गए वोटों को दर्ज करती है, और वोटों की गिनती भी करती है। ईवीएम के दो पार्ट होते हैं। इसमें पहला हिस्सा बैलिटिंग यूनिट है, जो मतदाताओं के द्वारा संचालित किया जाता है। वहीं, दूसरा हिस्सा कंट्रोल यूनिट पोलिंग अफसरों की निगरानी में रहता है। ईवीएम के दोनों हिस्से पांच मीटर लंबे तार से जुड़े हुए होते हैं। एक ईवीएम में 64 उम्मीदवारों के नाम दर्ज हो सकते हैं। वोटों को दर्ज करने की क्षमता की बात की जाए तो एक ईवीएम में 3840 वोटों को दर्ज किया जा सकता है। भारत के दो पब्लिक सेक्टर कंपनियां भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) बेंगलोर और इलेक्ट्रॉनिक्स कारपोरेशन ऑफ इंडिया (ECIL) हैदराबाद, चुनाव आयोग के लिए ईवीएम बनाते हैं।
EVM को लेकर द मूकनायक ने भीलवाड़ा, राजस्थान के पवन कुमार से बात की, जो EVM हटाने के लिए अभियान चला रहे हैं। उनकी मुहिम का नाम है 'EVM हटाओ सैना'. वह भीलवाड़ा से लोकसभा के चुनाव भी लड़ने वाले हैं। पवन बताते हैं कि, "इलेक्ट्रॉनिक मशीन भारत में जब आई थी तब उसका कांच पारदर्शी होता था। 2017 तक ऐसा ही रहा। 2017 में पारदर्शी कांच को हटाकर, काले रंग कांच लगाया गया। लाइट जलने की अवधि में भी बदलाव किए गए, लाइट जलने की अवधि 15 सेकंड की थी। अब 7 सेकंड कर दी गई है। यह दो बदलाव 2017 में किए गए थे।"
उन्होंने कहा, "बदलाव के बाद गुजरात के सोशल एक्टिविटी, IIT से कंप्यूटर साइंस में स्नातक, राहुल मेहता, इन दो बदलाव को 2018 में समझा था। फिर वह इसके पीछे लग गए। उन्होंने इसको अंदर की जानकारी ली। 2011 में यह पता चल गया था कि EVM में से वोट चोरी हो सकती हैं। यह सुप्रीम कोर्ट में भी साबित हो चुका था।"
आगे पवन बताते हैं कि, "हैदराबाद के एक इंजीनियर थे। जिन्होंने एक EVM की चोरी की थी। उन्होंने डैमो देकर सबको समझाया था कि इलेक्ट्रॉनिक वोट चोरी हो सकता है। यह मामला जब 2011 में सुप्रीम कोर्ट में गया था, तब सुप्रीम कोर्ट के आदेश से 2012 में वीं पी प्रिंट लाए थे। अब इलेक्ट्रॉनिक मशीन के साथ उसमें कागज का वोट भी रहेगा। जब मतदाता वोट देगा तो इलेक्ट्रॉनिक वोट भी दर्ज होगा। जिसको उसने वोट दिया है उसके चिन्ह कागज पर भी छपा हुआ देखेगा। बाद में इन दोनों को मिलाकर देखा जाएगा।"
आगे वह बताते हैं कि, 2011 तक वीवी प्रिंट होता ही नहीं था, जो पर्ची छापता है। 2012 में बीपी प्रिंट आया था। उसका कांच काला था। 2017 में चुनाव आयोग ने 12 लाख EVM मशीन के कार्यों को बदल दिया। उसको काला कर दिया। अहमदाबाद के राहुल को पता लग गया था कि इस काले शीशे के पीछे से कागज का वोट भी चोरी हो सकता है। अगर कागज का बोर्ड चोरी होगा तो EVM वोट और कागज के वोट दोनों की मैचिंग कोई नहीं पकड़ सकता। इसके बाद उन्होंने एक डिवाइस बनाया। डिवाइस को 2018 में डेमोंस्ट किया। `EVM हटाओ' हमारा संगठन है। तो हम पिछले 10 सालों से साथ ही काम कर रहे हैं। बाद में हम सब मिलकर 2019 से पार्कों में या पॉलिटिकल पार्टियों के पास जाकर डेमो देते हैं। नागरिकों को भी इस डेमो के जरिए इस EVM मशीन की खामी के बारे में बताते हैं।
आगे वह बताते हैं कि, "6 अप्रैल को प्रेस क्लब, लखनऊ में मैंने EVM इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का प्रदर्शन कर यह दिखाया था कि दो बार लगातार केला चिन्ह पर बटन दबाने पर दोनों बार काले शीशे वाली वी.वी.पी.ए.टी. मशीन में दिखा तो केला ही, लेकिन प्रिंटर के अंदर एक पर्ची केला की छपी और दूसरी सेब की। यह मशीन भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली के इंजीनियर और अमरीका से स्नातकोत्तर डिग्री हासिल किए हुए अहमदाबाद के रहने वाले राहुल चिमनभाई मेहता ने बनाई है। जो खुद EVM हटाओ सेना व राइट टू रिकाल पार्टी से भी जुड़ हुए हैं। यह मशीन दिखाती है कि यदि कोई चाहे तो EVM से आसानी से वोट लूटे जा सकते हैं। यदि दूसरा मतदाता भी केला को ही वोट देता है। तो उसे भी 7 सेकेंड के लिए वी.वी.पी.ए.टी. में पहले वाले ही मतदाता की केला की पर्ची दिखाई पड़ेगी। किंतु रोशनी बुझने पर तीसरे मतदाता के आने से पहले ही प्रिंटर सेब छाप देगा। यह न तो मतदाता को पता चलेगा न ही किसी वहां मौजूद अधिकारी को."
"इस प्रदर्शन का उद्देश्य मात्र इतना है कि EVM के बारे में भारत का निर्वाचन आयोग जो दावे कर रहा है कि EVM में कोई गड़बडी नहीं हो, सकती हम उसको गलत साबित कर रहे हैं। जो लोग वीवीपीएटी की 100 प्रतिशत पर्चियां गिनने की बात कर रहे हैं। वे भी समझ लें कि उसमें भी गड़बड़ी की सम्भावना है। पर्चियां तो वीवीपीएटी की उतनी ही गिनी जाएंगी, जितने ईवीएम पर बटन दबे."
आगे पवन अपनी मांगों को लेकर कहते हैं कि, "हमारी मांग है जो EVM मशीन का कांच है उसे पहले की तरह पारदर्शी रखा जाए। पहले की तरह 15 सेकंड का समय रखा जाए। इसके लिए 18 लाख EVM है। तो 18 लाख EVM को खोलना पड़ेगा। उनका कांच खोलना पड़ेगा। एक नया प्रोग्राम डालना पड़ेगा। इसमें कम से कम 2 साल लगेंगे। हमारी मांग सिर्फ इतनी है कि आगामी चुनाव जो होने वाले हैं। उसके अंदर पोलिंग बूथ में EVM मशीन के साथ बैलेट पेपर भी रखा जाए। ताकि मतदाता के पास ऑप्शन आ जाए। चाहे वह EVM से वोट करें, या प्राइवेट पेपर से वोट करें।"
"भारत में जो सरपंच, पंचायत के चुनाव होते हैं। उनमें आज भी कई जगह पर बैलेंट पेपर उपयोग होते हैं। इसमें चुनाव के नतीजे देना बहुत आसान काम है। केवल चुनाव आयोग को एक आदेश देना है कि वह अपनी आवश्यकता अनुसार 20 लाख बैलेट पेपर छपवा ले। जो कि दो से तीन साल का काम है। इसके लिए किसी ट्रेनिंग की जरूरत नहीं होती है। क्योंकि भारत के पास पहले से ही गिनती आदि करने का स्टाफ है। यह एक मैनुअल काम है। बस फर्क इतना पड़ेगा कि जो नतीजे 10 तारीख को आने वाले हैं। वह 12 या 13 तारीख को आएंगे। थोड़ा सा समय बढ़ जाएगा। उससे कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। 5 साल के बाद हम सरकार चुन रहे हैं, तो तीन-चार दिन से कोई फर्क नहीं पढ़ना चाहिए।"
उन्होंने कहा, "अगर किसी ने गलत पेपर फाड़ दिया या स्याही गिरा दी, जो कि गलत है। जब EVM से वोट चोरी होगा, तो उस चोरी कोई नहीं देख सकता। यह पकड़ में नहीं आती है। चंडीगढ़ में अभी ऐसा ही हुआ था जब बैलेट पेपर में वोटिंग हुई थी, तो वहां धाधली हुई थी। जिसको पकड़ लिया गया था। अगर वहां EVM वोटिंग होती तो कुछ पता नहीं चलता। धोखाधड़ी हर जगह मौजूद है। उसको पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सकता। EVM में तो बड़े पैमाने पर वोटों चोरी हो सकती है। बैलेट पेपर में ऐसा मुमकिन नहीं है। चोरी यहां भी हो सकती हैं। लेकिन बहुत वोट की होगी, और वह भी पकड़ी जाती है।"
आगे पवन बताते हैं कि, "हम राजनीतिक पार्टियों को डेमो दे चुके हैं। चुनाव आयोग को पता नहीं कितने खत लिख चुके हैं। हमने उनसे सारी मांगे रखी है। लेकिन अभी तक उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आ रहा। हमारी कोशिश जारी रहेगी। हमारा लक्ष्य है कि 90 करोड़ भारतीय तक ये बात पहुंचाने की कोशिश करेंगे."
EVM पर सत्ता से बाहर होने वाले राजनीतिक दल सवाल खड़े करते रहे हैं। 2009 के लोकसभा चुनाव में पहली बार EVM मशीन पर सवाल खड़े किए गए। इस दौरान भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी और तत्कालीन जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी ने EVM के जरिए चुनावों में धांधली के आरोप लगाए थे। वहीं, 2010 में बीजेपी नेता जीवीएल नरसिम्हा राव ने भी मशीन पर सवाल खड़े किए। इस दौरान सुब्रमण्यम स्वामी सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंच गए थे। ईवीएम पर उठ रहे सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने वीवीपैट के उपयोग का भी निर्देश दिया था।
मार्च 2017 में 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद 10 अप्रैल 2017 को 13 राजनीतिक दल चुनाव आयोग गए और EVM पर सवाल उठाए। हालांकि, यह चलन अभी भी जारी है. कई राजनीतिक दल और उनके नेता EVM मशीन की जगह बैलेट पेपर से चुनाव कराने का मांग कर रहे हैं। चुनाव आयोग ने कहा है कि देश के कई हाई कोर्ट ने भी EVM को भरोसेमंद ही माना है। साथ ही, EVM के पक्ष में हाई कोर्टों द्वारा दिए गए कुछ फैसलों को जब सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, तब सुप्रीम कोर्ट ने उन अपीलों को खारिज कर दिया।
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