उत्तरकाशी में सुरंग बना रही कंपनी को हादसे की जवाबदेही से कौन बचा रहा?

आरोप है कि जिस दिन से यह घटना हुई उसी दिन से कंपनी का नाम गायब है। कहीं भी इस कंपनी का नाम आया ही नहीं है।
उत्तरकाशी में सुरंग बना रही कंपनी को हादसे की जवाबदेही से कौन बचा रहा?
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उत्तराखंड: लगभग 17 दिनों तक टनल में फंसे मजदूर आखिरकार बाहर निकल आए। 17 दिन तक उन्होंने अंदर कैसे अपने दिन काटे इसका अंदाजा वही लोग लगा सकते हैं। ऐसे ही कितने मजदूर उत्तराखंड की और परियोजनाओं में कार्य कर रहे हैं। क्या वह सभी परियोजनाएं सुरक्षित हैं। अब इस टनल को बनाने वाली कंपनी को लेकर सवाल उठ रहे हैं। आखिर वह कंपनी कहां है। इस पूरे रेस्क्यू के दौरान इस कंपनी का नाम तक किसी को पता नहीं होगा।

राजीव लोचना (72), जो नैनीताल पत्रिका में पत्रकार हैं, और चिपको आंदोलन से लेकर अब तक उत्तराखंड के सभी आंदोलनों में भाग ले चुके हैं, द मूकनायक को बताते हैं कि, "उत्तराखंड में किसी ने भी नहीं चाहा था कि यह चार धाम यात्रा सड़क बने। सड़क की मांग कभी उत्तराखंड की जनता ने नहीं की थी। वैसे भी कुछ ही समय बाद चार धाम के कपाट बंद हो जाते हैं। तो इन सड़कों की ज्यादा जरूरत नहीं थी। तीर्थ यात्रियों की संख्या पहले से ज्यादा अधिक होने लगी है। जिसका दुष्परिणाम हम 2013 में भी देख चुके हैं। इस चारधाम रोड की जरूरत किसी को भी नहीं थी। यह हमारे प्रधानमंत्री जी की ज़िद का परिणाम है।"

उन्होंने आगे कहा, "जब यह सड़क बननी शुरू हुई थी तब एक राधा बहन थी, जो गांधीवादी थी और अब लगभग 90 साल की होने चली हैं। वह तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र राय से मिलीं। उन्होंने मुख्यमंत्री से कहा था कि इस परियोजना को रोक दीजिए। इसका बहुत नुकसान हो रहा है। पेड़ काटे जा रहे हैं। इसका दुष्प्रभाव पर्यावरण पर पड़ रहा है। पर्यावरण को बहुत क्षति पहुंच रही है। उनकी बात पर मुख्यमंत्री ने कहा था कि मैं कुछ नहीं कर सकता। क्योंकि यह प्रधानमंत्री जी का ड्रीम प्रोजेक्ट है। यह ड्रीम प्रोजेक्ट चार धाम यात्रा को लगातार परेशान करता आया है। कभी वहां लैंडस्लाइड होती है। तो कहीं भी और कहीं पर भी सड़क टूटती रहती है। और इसके कारण पता नहीं कितने लोग भी मारे जाते हैं।"

"इन्होंने जो यह परियोजना बनाई है, जिसका नाम चार धाम परियोजना रखा गया है। वह 800 किलोमीटर से ज्यादा लंबी है। एनवायरमेंट इंपैक्ट से बचने के लिए इन्होंने छोटे हिस्से में इस परियोजना को बांट दिया है। क्योंकि जो 100 किलोमीटर के टुकड़े होते हैं। उनमें एनवायरमेंट इंपैक्ट नहीं करवाना पड़ता है। एनवायरमेंट इंपैक्ट न दिखाते हुए, इन्होंने एक बड़ी परियोजना को छोटी-छोटी प्ररियोजनाओं का रूप दे दिया। आप इतनी बड़ी सुरंग बना रहे हैं। जबकि आपने एनवायरमेंट इंपैक्ट नहीं दिया। तो आप कैसे यहां सुरंग बना सकते हैं। स्लाइंग के बारे में कहा जाता है, कि यह बहुत संवेदनशील जगह है। यह जगह बहुत ही नाजुक है। तब भी आप यहां काम करवा रहे हैं," राजीव ने द मूकनायक से कहा.

सुरंग बनाने वाली नवयुग कम्पनी के खिलाफ कोई एक्शन नहीं

राजीव जी आगे बताते हैं कि जिस कंपनी नवयुग को इसे बनाने का काम दिया गया है उसे कंपनी पर पहले ही काफी दाग लग चुके हैं तो आप कैसे ऐसी कंपनी को परियोजना का भार दे सकते हैं जो पहले किसी दुर्घटना के लिए जिम्मेदार है. मजदूरों के अंदर या बाहर आने तक अभी तक इस कंपनी के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया गया है. जबकि, इस कंपनी के सभी कार्यों को रोक देना चाहिए. इस कंपनी को ब्लैक लिस्ट में डाल देना चाहिए और रिस्क में जो भी पैसा लगा है उसे पैसे को भी इस कंपनी से वसूलना चाहिए. दोबारा से इस कंपनी का एनवायरमेंट इंपैक्ट होना चाहिए तभी इसे आगे के प्रोजेक्ट देने चाहिए।

खतरे की घंटी

उत्तराखंड में लगभग हर मौसम में सड़कें और पहाड़ टूटे रहते हैं। कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसी कमेटी बनाई थी। जो एनवायरनमेंट के लिए कम करें। इसमें एक व्यक्ति रवि चोपड़ा फॉरेस्ट और एनवायरमेंट कमेटी ने उनको जांच एजेंसी का सदस्य बनाया था। उन्होंने भी बार- बार कहा कि सड़कों को इतनी चौड़ी नहीं बनना चाहिए। सब जगह उन्होंने यह बात कही। बाद में सरकार ने यह मुद्दा लाया की सड़के चौड़ी नहीं बनेगी।

कंपनी को बचा रहा है प्रशासन

जन समुदाय और पर्यावरण के मुद्दों को उठाने वाले सोशल एक्टिविट त्रिलोकचंद भट्ट द मूकनायक को बताते हैं कि, "हम उत्तरकाशी में हुई इस घटना के दिन से ही यह मांग कर रहे हैं कि जो नवयुग इंजीनियर कंपनी है, उसके खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए। इसके सारे प्रोजेक्ट छीन लेने चाहिए। इस टनल में काम कर रहे अधिकारियों को गिरफ्तार किया जाना चाहिए। जिस दिन से यह घटना हुई उसी दिन से कंपनी का नाम गायब है। कहीं भी इस कंपनी का नाम आया ही नहीं है। मुख्यमंत्री जब मजदूर बाहर निकलते हैं तो उन्हें एक-एक लाख का मुआवजा देने का ऐलान कर देते हैं। क्यों भाई आप क्यों देंगे मुआवजा। हमें तो यह भी लगता है कि इस रेस्क्यू पर खर्च हुए पैसे भी सरकार ही देगी। क्योंकि अभी तक किसी को यह नहीं बताया गया, की रेस्क्यू में लगे पैसे की जिम्मेदारी किसने ली है। सरकार ने ली है या कंपनी ने। प्रशासन लगातार कंपनी को बचा रहा है।"

आगे वह कहते हैं कि "कंपनी को बचाने के लिए सरकार ने पहले ही रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू नहीं किया। प्रशासन ने सोचा था कि पहले हल्के प्रयास से ही मजदूरों को निकलवा लिया जाएगा। जब लगा कि अब यह संभव नहीं हो पा रहा है। तब दूसरे कदम उठाए गए। कुल मिलाकर कंपनी को बचाया जा रहा है। हमें लगता है कि इसके पीछे किसी बड़े आदमी का नाम है। तभी सरकार ऐसा कर रही है। हम तो यह भी मांग कर रहे हैं, कि जितने भी प्रोजेक्ट इस कंपनी के पास है। उनको रोक देना चाहिए। ऋषिकेश कर्णप्रयाग एक रेलवे लाइन जो यह कंपनी बना रही हैं। जो सुरंग में चलेगी। इस कंपनी से यह सब वापस लिया जाए। सिलक्यारा में कहीं भी इस कंपनी का कोई बोर्ड आपको देखने को नहीं मिलेगा। जैसे सरकार कह रही है कि हम और परियोजना की जांच करेंगे। तो ऐसी जांच होती रहती हैं। जो साधारण जांच होती है।"

कहानी नवयुग कंपनी की

नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड, नवयुग ग्रुप (Navayuga Group) का हेडक्‍वार्टर विशाखापत्‍तनम में है. उत्‍तराखंड में इसके अलावा 2020 में इसको ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्‍ट का 2072 करोड़ का प्रोजेक्‍ट भी हासिल हुआ था। NECL, सी वी राव (CV Rao) द्वारा प्रमोट की जाने वाली कंपनी नवयुग ग्रुप (Navayuga Group) का ही एक हिस्सा है और इसकी शुरुआत आज से लगभग 30 सालों पहले हुई थी। नवयुग ग्रुप का हेडक्वार्टर हैदराबाद में मौजूद है। और इसके पोर्टफोलियो बहुत ही विविधताओं से भरा हुआ है। नवयुग ग्रुप की मौजूदगी सिविल कंस्ट्रक्शन, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, सूचना एवं तकनीक एवं स्पाशल तकनीक जैसे विभिन्न क्षेत्रों में है। नवयुग इंजीनियरिंग (Navyuga Engineering) ने पिछले कुछ समय में अच्छा खासा इक्विपमेंट बेस तैयार और इंजीनियरिंग की विभिन्न क्षमताएं तैयार कर ली हैं ताकि कंपनी विशेष एवं तकनीकी रूप से कॉम्प्लेक्स प्रोजेक्टों की जरूरतों को पूरा कर सके। विशाल इक्विपमेंट बेस की बदौलत NECL खुद ही प्रोजेक्ट्स को पूरा कर सकती है और इसे सब-कॉन्ट्रैक्टिंग पर निर्भर भी नहीं होना पड़ेगा। साथ ही इस कंपनी को इंफ्रास्ट्रक्चर और सिविल इंजीनियरिंग कंस्ट्रक्शन के क्षेत्र में प्रमुख खिलाड़ी के रूप में भी जाना जाता है।

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