SC-ST के उप-वर्गीकरण की अनुमति देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर एमपी के आदिवासी संगठन और राजनीतिक दलों की क्या है राय?

मध्यप्रदेश में अलग-अलग है नेताओं की राय। एससी कांग्रेस के अध्यक्ष ने कहा फैसले से असहमत है, बाप पार्टी के आदिवासी विधायक बोले सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी फैसले के विरोध में।
SC-ST के उप-वर्गीकरण की अनुमति देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर एमपी के आदिवासी संगठन और राजनीतिक दलों की क्या है राय?
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भोपाल। मध्य प्रदेश के विभिन्न दलित/आदिवासी संगठनों और समुदाय के नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट के हाल ही में दिए गए उस फैसले पर मिली-जुली प्रतिक्रिया व्यक्त की है, जिसमें राज्यों को अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) को उप-वर्गीकृत करने की अनुमति दी गई है, ताकि इन समूहों के भीतर अधिक पिछड़ी उप-जातियों के बीच कोटा का समान वितरण सुनिश्चित किया जा सके।

मध्य प्रदेश अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग के संगठन और राजनीतिक दलों ने इस संबंध में अपनी राय रखी है। द मूकनायक से बातचीत में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (GGP) के राष्ट्रीय महासचिव श्याम सिंह मरकाम ने कहा, "दोनों ही वर्ग पिछड़े हुए है। यदि अब कोटे में कोटा दिया जाएगा तो निश्चित ही यह आपस में लड़ाने की बात है। यह तो फूट डालो और राज करो कि तरह दिखाई देता है। हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सहमत नहीं है। केंद्र सरकार इसमें हस्तक्षेप करें, पुरानी व्यवस्था ही लागू रहे।"

मध्य प्रदेश आदिवासी विकास परिषद (छात्र विभाग) प्रदेश अध्यक्ष नीरज बारिवा ने द मूकनायक को कहा, "हम न्यायालय का सम्मान करते है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आदिवासी/दलितों के हित में नहीं है। और न ही यह संविधान के अनुरूप है। पूर्व की व्यवस्था ही लागू रहे। सामाजिक रूप से दोनों ही वर्ग पिछड़े हुए है।"

SC-ST वर्ग को नहीं होगा लाभ: कांग्रेस

मध्यप्रदेश कांग्रेस के अनुसूचित जाति विभाग के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप अहिरवार ने द मूकनायक प्रतिनिधि से बातचीत में कहा, "हम सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हुए इस फैसले पर असहमति जाहिर करते है। कोर्ट के इस फ़ैसले से अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग को कोई विशेष लाभ नहीं मिलने वाला है। पहले ही दोनों वर्गों के हकमारी होती रही है। यह फैसला आरएसएस से प्रभावित दिखाई देता है। अनुसूचित वर्गो में इससे फूट बढ़ेगी। जिसका फायदा भाजपा लेना चाहती है। कोर्ट संसद के अधिकारों का अतिक्रमण कर रही है। हमारी मांग भी है केंद्र सरकार इसमें हस्तक्षेप करते हुए, अध्यादेश लाकर इस फ़ैसले को पलट दे।"

बीएपी के विधायक डोडियार ने किया समर्थन

मध्य प्रदेश में इकलौते भारत आदिवासी पार्टी (BAP) के विधायक कमलेश्वर डोडियार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन किया है। उन्होंने कहा, "हम सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले का बहुत स्वागत करते है, इस फ़ैसले से अत्यंत ग़रीब मज़दूर वर्ग के बच्चों को अधिकार मिलेगा वहीं आदिवासी दलित अधिकारियों कर्मचारियों के बच्चों के अधिकारों को भी कोई नुक़सान नहीं होगा।"

डोडियार ने आगे कहा, "सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से अब आदिवासी और दलित वर्गों में बेघर मज़दूर लोगों के बच्चों को भी शिक्षा और नौकरी में आरक्षण का लाभ मिलेगा।"

इधर, द मूकनायक से बातचीत करते हुए मध्यप्रदेश राज्य सफाई कामगार आयोग के अध्यक्ष ने प्रताप कारोसिया (राज्य मंत्री दर्जा) ने फैसले का समर्थन करते हुए कहा, "फैसला स्वागत योग्य है, इससे अनुसूचित जाति/जनजाति की उन उप जातियों को प्रतिनिधित्व मिलेगा। जो मुख्यधारा से काफी दूर रहे है।"

उन्होंने आगे कहा, "एससी वर्ग के सफाई कर्मी यानी वाल्मिकी समाज आदिवासियों में बैगा, सहरिया आदि जनजातियों राजनीति, शिक्षा और शासकीय नौकरियों में प्रतिनिधित्व मिल सकेगा।"

जानिए क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?

SC/ST श्रेणियों के भीतर उप-वर्गीकरण (कोटे के अंदर कोटा) की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को फैसला सुनाया है। कोर्ट ने राज्यों को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में उप-वर्गीकरण की अनुमति दे दी है। सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की पीठ ने यह फैसला सुनाया है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड की अध्यक्षता वाली 7 जजों की संविधान पीठ ने तय किया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के लिए उप-वर्गीकरण किया जा सकता है।

सात जजों की संविधान पीठ में CJI डी वाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस बी आर गवई, विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा शामिल हैं। CJI ने कहा कि 6 राय एकमत हैं, जबकि जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने असहमति जताई है।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में साक्ष्यों का हवाला दिया उन्होंने कहा कि अनुसूचित जातियां एक सजातीय वर्ग नहीं हैं, उप-वर्गीकरण संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत निहित समानता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करता है। साथ ही उप-वर्गीकरण संविधान के अनुच्छेद 341(2) का उल्लंघन नहीं करता है, अनुच्छेद 15 और 16 में ऐसा कुछ भी नहीं है जो राज्य को किसी जाति को उप-वर्गीकृत करने से रोकता हो।

कोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जातियां एक समरूप समूह नहीं हैं और सरकार पीड़ित लोगों को 15% आरक्षण में अधिक महत्व देने के लिए उन्हें उप-वर्गीकृत कर सकती है। अनुसूचित जाति के बीच अधिक भेदभाव है, SC ने चिन्नैया मामले में 2004 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें अनुसूचित जाति के उप-वर्गीकरण के खिलाफ फैसला सुनाया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एससी के बीच जातियों का उप-वर्गीकरण उनके भेदभाव की डिग्री के आधार पर किया जाना चाहिए। राज्यों द्वारा सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में उनके प्रतिनिधित्व के अनुभवजन्य डेटा के संग्रह के माध्यम से किया जा सकता है। यह सरकारों की इच्छा पर आधारित नहीं हो सकता।

दरअसल, पंजाब सरकार ने अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित सीटों में से 50 फीसद ‘वाल्मिकी’ एवं ‘मजहबी सिख’ को देने का प्रावधान किया था। 2004 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी।

इस फैसले के खिलाफ पंजाब सरकार व अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। 2020 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा था कि वंचित तक लाभ पहुंचाने के लिए यह जरूरी है। मामला दो पीठों के अलग-अलग फैसलों के बाद 7 जजों की पीठ को भेजा गया था।

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