नई दिल्ली: EVM जिसका पूरा नाम इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन है, सन 1982 में भारतीय चुनाव आयोग ने पहली बार इस्तेमाल किया था। अब बैलेट पेपर की जगह EVM का ही इस्तेमाल किया जाता है। यह चुनावी प्रक्रिया को तेज और साफ-सुथरा बनाए रखने में मदद करती है। इसके बाद से समय-समय पर इस मशीन को लेकर तरह-तरह की बातें कही गईं और आरोप लगाए गए। ईवीएम को लेकर कुछ जगह दावे किए गए हैं कि देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने इस मशीन में गड़बड़ी पाए जाने पर चुनाव में इसके इस्तेमाल पर बैन लगा दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने वोटर-वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) से निकलने वाली सभी पर्चियों का मिलान इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) से पड़े वोटों के साथ कराने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्शन कमीशन को एलसीडी एसोसिएट्स पर ध्यान देने का आदेश दिया है। केरल के कासरगोड में मॉक टेस्ट किया गया। कोर्ट में दाखिल दस्तावेज़ में आरोप लगाया गया कि वहां हर वोट बीजेपी को मिल रहा है। इस मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपांकर के सहयोगियों और जस्टिस संजीव खन्ना ने चुनाव आयोग में मंगलवार को आदेश दिया कि उन्होंने इस मामले में जो रिपोर्ट दी है, वह उनकी जांच है।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश किए गए वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने एक मीडिया रिपोर्ट का ज़िक्र किया। इस रिपोर्ट के मुताबिक, कासरगोड में मॉक टेस्ट के दौरान भारतीय जनता पार्टी को चार नोट और वीवीपैट में एक अतिरिक्त वोट मिला। जिसके बाद मामले में चुनाव आयोग के वकील मनिंदर सिंह को पूरे मामले की जांच करने का निर्देश दिया गया। अदालत में कई अर्जियों की पेशी भी हुई। मांग की गई है कि इसमें सभी सीटों के मिलान का वीवीपैट की पर्चियां डाल दी जाएं।
गुरुवार को चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के सामने ऐसी रिपोर्ट्स को निराधार और पूरी तरह से गलत बताया। चुनाव आयोग ने सु्प्रीम कोर्ट से कहा कि जिन न्यूज रिपोर्ट में ऐसा दावा किया जा रहा है कि केरल के कासरगोड में मॉक पोल के दौरान चार वोटिंग मशीनों में एक एक्स्ट्रा वोट बीजेपी को गया, वे गलत हैं।
द मूकनायक ने राजस्थान के पवन से बात की जो की खुद EVM हटाने के लिए अभियान चला रहे हैं। उनकी मुहिम का नाम है 'EVM हटाओ सैना'। वह वह बताते हैं कि, "सुप्रीम कोर्ट ने कुछ सोच समझ कर ही यह सवाल चुनाव आयोग से पूछा होगा। क्योंकि यह EVM मशीन को लेकर हम लोग पहले ही अभियान चला रहे हैं। तो यह एक अच्छी बात है कि सुप्रीम कोर्ट भी इसके बारे में सोच रही है। देखिए चुनाव आयोग को ही कुछ चीज बदलनी होगी। सुप्रीम कोर्ट सिर्फ आदेश दे सकता है। धोखेबाजी तो दोनों जगह पर हो सकती है। चाहे वह बैलट पेपर हो या ईवीएम मशीन। लेकिन यह वैलेट पेपर में धोखाधड़ी होने के कम चांसेस होते हैं."
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मंगलवार को भी भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) से पूछा गया कि क्या इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) में हेरफेर करने वाले प्राधिकारों और अधिकारियों को सजा देने का कोई कानून है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने कहा कि जब तक कड़ी सजा का डर नहीं होगा, हेरफेर की संभावना हमेशा बनी रहेगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मान लीजिए कि जो सजा तय की गई है उसमें कुछ हेरफेर किया गया है। यह गंभीर बात है। यह डर होना चाहिए कि अगर कुछ गलत किया है तो सजा मिलेगी।
कोर्ट के सवाल पर भारतीय चुनाव आयोग के वकील ने जवाब में कहा कि नियम का उल्लंघन दंडनीय है। इस पर जस्टिस खन्ना ने कहा कि हम प्रक्रिया पर नहीं, बल्कि हेरफेर पर बात कर रहे हैं। कोर्ट ने साथ ही यह भी कहा कि सिस्टम पर संदेह नहीं किया जाना चाहिए।
जस्टिस दत्ता ने याचिकाकर्ताओं की दलीलों पर कहा, मेरे गृह राज्य पश्चिम बंगाल की जनसंख्या जर्मनी से भी अधिक है। हमें किसी पर भरोसा करने की जरूरत है। इस तरह व्यवस्था को गिराने की कोशिश न करें। जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि आप जर्मनी की बात कर रहे हैं। यहां 98 करोड़ वोटर हैं। हमारी उम्र 60 से ऊपर है। हमें याद है कि पहले के मतदान में क्या होता था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बैलट पेपर पर लौटने से भी कई नुकसान हैं। एडीआर (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) की ओर से वकील प्रशांत भूषण पेश हुए। उन्होंने कहा, या तो बैलेट पेपर से चुनाव हों या वोटर को वीवीपैट पर्ची बॉक्स में डालने दी जाए। जिसे बाद में गिना जाए।
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