“हमसे तो लोग भी घृणा करते हैं। यहां तक की हमें पीने के लिए पानी भी दूर से देते हैं” — सेप्टिक टैंक की सफाई करने वाले सफाई कर्मचारियों का दर्द

“हमसे तो लोग भी घृणा करते हैं। यहां तक की हमें पीने के लिए पानी भी दूर से देते हैं” — सेप्टिक टैंक की सफाई करने वाले सफाई कर्मचारियों का दर्द
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सरकार अगर हमारी मांग को नहीं मानती है तो 75 दिनों बाद राजधानी में बड़ा आंदोलन किया जाएगा- विजवाड़ा विल्सन।

देश की आजादी को 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में "अमृत महोत्सव" मनाया जा रहा है लेकिन देश की एक आबादी ऐसी है जिसके जीवन में आजादी के इतने सालों बाद भी कोई बदलाव नहीं है। वह 'मैनुएल स्केवेंजिग' (मैला ढोना) वाले लोग हैं, जिनकी हर दिन सीवर सेप्टिक टैंक साफ करते वक्त मौत हो जा रही है। लेकिन इस बात पर न तो सरकार ध्यान दे रही है न ही प्रशासन। हर तीसरे दिन सीवर सफाई के दौरान जहरीली गैस से एक सफाई कर्मचारी की मौत हो रही है। लगातार बढ़ती ऐसी घटनाओं को बंद कम करने के लिए "सफाई कर्मचारी आंदोलन" संगठन द्वारा आजादी के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में देश के अलग-अलग राज्यों में 75 दिनों तक "एक्शन 2022 सीवर-सेप्टिक टैंक में हमें मारना बंद करो" नाम से एक विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। जिसमें 21 राज्यों में  सफाई कर्मचारी आंदोलन के साथ जुड़े हुए हैं। जो लोगों को जागरुक करने के साथ-साथ सरकार तक अपनी बात पहुंचाने के कोशिश कर रहे हैं।

सरकार हमारी मांग को सुने

इस विरोध प्रदर्शन की शुरुआत देश की राजधानी दिल्ली से की गई। लगभग पांच दिनों तक राजधानी के अलग-अलग हिस्सों में शांति पूर्वक विरोध प्रदर्शने किया गया। जिसमें कई लोगों ने हिस्सा लिया। विरोध प्रदर्शन के संचालक और सफाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजवाड़ा विल्सन ने द मूकनायक से बात करते हुए कहा कि, हमारी सरकार से मांग है कि सरकार जिस तरह से बाकी कामों के लिए मशीनों का प्रयोग करवा रही है। वैसे ही मैला ढोने के लिए मशीनें लागू करें। ताकि, सेप्टिक टैंक की जहरीली गैस से किसी भी व्यक्ति की मौत न हो।

उन्होंने बताया कि, 75 दिनों तक चलने वाले इस आंदोलन से सरकार के लिए हमारी तरफ से एक साफ संदेश है कि एक समुदाय के लोगों को मारना बंद करें। "अगर सरकार इन 75 दिनों में हमारी बात को नहीं सुनती है तो, हमारा संगठन देश की राजधानी में बड़ा प्रदर्शन करेगा। जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसके बारे में जागरुक किया जाए।" वह बताते हैं, जब भी किसी सफाई कर्मचारी की मौत होती है तो वह स्वयं पीएमओ, गृहमंत्रलाय, राष्ट्रीय मानवाधिकार को पत्र लिखते हैं लेकिन उनके पत्र का कोई जवाब नहीं आता है।

आखिरी दिन प्रदर्शन दिल्ली के तिलक मार्ग पर किया गया

दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों में लगभग 5 दिन तक चले इस अभियान में कई लोगों ने हिस्सा लिया। आखिरी दिन यह प्रदर्शन इंडिया गेट के पास होना था। लेकिन पुलिस की अनुमति नहीं मिलने के कारण यह प्रदर्शन तिलक मार्ग पर किया गया। जिसमें अलग-अलग हिस्सों से आए लोगों में अपना विरोध दर्ज किया। दीप्ति सुकुमार भी इनमें से एक हैं जो सफाई कर्मचारी आंदोलन की उपाध्यक्ष हैं। उनका कहना है कि, एक तरफ सरकार आजादी की 75 साल की खुशियां मानी रही है। रॉकेट और फाइटर जेट प्लेन खरीद रही है। लेकिन कितनी शर्म की बात है कि, इतने सालों में सेप्टिक टैंक की सफाई करने वाले लोगों की मौत को रोक नहीं पाई है। सफाई कर्मचारियों की लगातार मौत हो रही है।

दीप्ति के साथ और भी अन्य महिलाएं क्लिपबोर्ड लेकर वहां पहुंची। जिसमें कुछ ऐसी महिलाएं ऐसी भी थी जिनके परिवार वाले पूर्व में मैनुएल स्केविंजिग से जुड़ी थे। कुछ पुरुष भी थे जो आज भी इस काम से जुड़े हुए है। दिलबाग उनमें से एक है। जो आज भी इस काम को करते हैं। वह कहते हैं कि, "बहुत गंदगी वाला काम है। हमसे तो लोग भी घृणा करते हैं। यहां तक की लोग हमें पीने के लिए पानी भी दूर से देते हैं। अब मेरे बच्चे इस काम को करने के लिए मना करते हैं। वह स्कूल में पढ़ते हैं तो इन सारी चीजों के लेकर जागरुक हैं, इसलिए मुझे भी इस काम को करने से मनाकर रहे हैं।"

कानून तो बना लेकिन मौतें नहीं रुकी

भारत में आज भी ज्यादातर काम वर्ण व्यवस्था के अनुसार ही किया जाता है। जिसका असर यह है कि सड़क में झाड़ू लगाना, नाली साफ करना, सेप्टिक टैंक की सफाई आदि कामों को दलित समुदाय के लोगों द्वारा ही की जाती है। इस कुप्रथा के खिलाफ भारत की संसद में 1993 में "द एम्पलॉयमेंट ऑफ मैन्युएल स्कैवेंजर्स एंड कंस्ट्रक्शन ऑफ ड्राय लैट्रिन्स (प्रोहिबिन्स) एक्ट" पास किया गया। इस कानून के बाद सिर पर मल ठोने की प्रथा के बंद कर दिया गया। हालांकि, ड्राय लैट्रिन्स की ढुलाई को तो बंद कर दिया गया। लेकिन सेप्टिक टैंक की सफाई के लिए मशीनों का प्रयोग नहीं किया जा सका, जिससे लोगों को जान बचाई जा सके। आए दिन सेप्टिक टैंक में सफाई के दौरान सफाई कर्मचारी की मौत खबरें आती है। सफाई कर्मचारी को किसी तरह की सुरक्षा नहीं दी जाती है जैसे दस्ताने, पोशाक, जूते, जहरीली गैस बचने के लिए मास्क और ताजी हवा की सप्लाई भी। इतना कुछ होने के बाद भी इन सफाई कर्मचारियों को पक्की नौकरी नहीं होती। ठेके पर काम करने वाले इन सफाई कर्मचारियों की मौत के बाद इनके परिवार की कोई सुध भी नहीं लेता है।

तमिलनाडू में सबसे ज्यादा मौतें

साल 1993 में बने कानून के बाद भी मौतों को सिलसिला थमने के नाम नहीं ले रहा है। इसी सप्ताह दिल्ली के मूलचंद में सैप्टिक टैंक की सफाई के दौरान दो लोगों की मौत हो गई। जबकि केंद्र सरकार यह दावा करती है कि मैनुएल स्कैवेन्जिंग से किसी की मौत नहीं हुई है। 4 अगस्त, 2021 को दोनों सदनों में सरकार ने बताया कि 1993 के बाद से सीवर साफ करते वक्त 941 लोगों की मौत हुई है और सबसे ज्यादा मौतों तमिलनाडू राज्य में हुई है। अफसोस की बात तो यह है कि, एक तरफ हम स्वच्छ भारत अभियान के नारा लगाते हैं दूसरी तरफ सेप्टिंक टैंक में लोगों की जान ले रहे हैं। 

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