बंगाल के इस टापू में गांधी जी से मिले सूत कातने के हुनर से अपने आप को आर्थिक रूप से मजबूत बना रही हैं महिलाएं
सुंदरवन (पश्चिम बंगाल) से लौटकर…
"आयला साइक्लोन (2009) आने के बाद से ही हमारी जिंदगी पूरी तरह से बदल गईं है। रोजगार कम हो गए हैं। मेरा एक बेटा और बेटी है। बेटी की शादी हो गई है और बेटा बाहर काम करता है" यह कहना है 50 वर्षीय मीना दास का जो सुंदरवन के एक टापू में रहती है। मीना आज गांधी जी के चरखे से सूत कातकर अपनी जिंदगी को आर्थिक मजबूती दे रही है। वह कहती हैं कि, यहां काम करने के कारण मेरी जिंदगी में कई बदलाव आए हैं। "अब मुझे पैसे के बारे में सोचना नहीं पड़ता है। मेरा पति बीमार रहता है। यहां से जो भी मैं कमाती हूं। उससे पति की दवाई आ जाती है। इसके लिए मुझे किसी से मांगना नहीं पड़ता है।"
बच्चों की पढ़ाई अच्छे से होती है
मीना की बगल में सूत कातती सुजाता द मूकनायक टीम को देखकर उम्मीद जताते हुए कहती हैं कि, कोई तो है जो हमारे इस छोटे से काम की सराहना कर रहा है। वो बताती है कि, "पहले मैं यहां सिलाई का काम करती थी। मुझे यहां काम करते हुए काफी समय हो गया है। इस काम से जो कमाई होती है। उससे मैं अपनी पति का हाथ बंटा देती हूं। मेरे पति फर्नीचर का काम करते हैं। कुछ मैं कमाती हूं। कुछ वो करते हैं। इससे बच्चों की पढ़ाई भी अच्छे से हो रही है। मेरा एक बच्चा 10वीं में है और एक 12वीं में है। संदेशखाली में ऐसी कई दलित महिलाएं है जो इस वक्त गांधी जी के चरखे जैसे मशीनी चरखा चलाकर खादी का काम कर रही हैं और अपना जीवनयापन कर रही हैं।"
संदेशखाली का जयगोपालपुर यूथ डवलपमेंट सेंटर ऐसी ही कुछ महिलाओं को कुटीर उद्योग से जोड़कर जीवन को बेहतर बना रहा है। जहां ज्यादातर महिलाएं ही कार्यरत हैं। जो तरह-तरह के काम कर अपनी जिंदगी को अच्छा बना रही हैं।
ज्यादातर महिलाएं दलित और गरीब हैं
यहां काम करने वाली ज्यादातर महिलाएं दलित और गरीब हैं। जिनका सेंटर में आने से जीवन में बदलाव हुआ है। इसी एनजीओ में काम करने वाली एक महिला का कहना है कि, "हमारी जिंदगी क्या है कुछ भी नहीं। किसी टाइम हमारा सबकुछ बर्बाद हो जाएगा, हमें कुछ नहीं पता। पानी के ऊपर हमलोग रह रहे हैं। हर साल हमारा घर टूटता है और फिर हर साल हमलोग बनाते हैं। जितना कमाते हैं उतना इन सारी चीजों में चला जाता है। ऐसे में बच्चों को अच्छी शिक्षा और अच्छा खाना कहां दे पाएंगे। यहां कुछ न कुछ नए प्रोजेक्ट पर काम होता ही है। यहां आने से हमारे हाथ में एक हुनर आ गया है। जिसके कारण मेरी जैसी महिलाएं कमा पा रही हैं। अपनी बच्चों को अच्छी जिंदगी दे पा रही हैं।"
पश्चिम बंगाल में साइक्लोन का कहर
जिस तरह से महिला ने बताया कि उनका घर हर साल टूट जाता है और फिर बनाते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है साइक्लोन। पिछले दो सालों में पश्चिम बंगाल के तटीय क्षेत्रों में इसका कहर लगातार देखने के मिल रहा है। बंगाल की खाड़ी में बनने वाले निम्न दाब के कारण पश्चिम बंगाल के साथ-साथ तटीय क्षेत्रों में फानी, गुलाब, आमफान जैसे साइक्लोन आए हैं। पिछले साल पश्चिम बंगाल में हर दूसरे महीने साइक्लोन आया। जिसका सीधा असर तटीय क्षेत्रों के साथ-साथ सुंदरवन में हुआ।
पश्चिम बंगाल के संदेशखाली विधानसभा क्षेत्र भी इस रेंज में आता है। जहां हर साल लोगों को इन सारी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। यह मुख्य रूप से दलित बहुल इलाका है। जहां दलित आदिवासियों की संख्या लगभग 70 से 80 प्रतिशत है। यह विधानसभा सीट भी एससी आरक्षित सीट है। इस क्षेत्र में रहने वाले ज्यादातर लोग कुटीर उद्योग से जुड़े हुए हैं, जिनके पास जमीन है वह मछली के पेश से जुड़े हैं। साथ ही महिलाएं कुछ छोटा-मोटा काम करती हैं। जिससे की अपना गुजर बसर कर सकें।
स्वाभिमानी महिला का जीवन जी रही हैं
इस एनजीओ में काम करने वाली ज्यादातर महिलाएं आज यहां काम करके एक स्वाभिमानी महिला वाला जीवन जी रही हैं। ऐसा कहना है मोलिका दास का, जो एक मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती हैं। वह बताती हैं कि, "मैंने 10वीं तक पढ़ाई की है। इस काम की बदौलत मेरी अपनी एक अलग पहचान है। पहले हमें घर से बाहर नहीं निकलने दिया जाता था। आज स्थिति ऐसी है कि मैं अपना सारा काम खुद कर लेती हूं। पहले मुझे कुछ भी नहीं आता था। लेकिन यहां काम करने के बाद, ना सिर्फ मैं आर्थिक तौर पर मजबूत हुई हूं। बल्कि कामकाज के मामले में भी अब मुझे किसी का सहारा नहीं लेना पड़ता है। बैंक के काम से लेकर घर के दूसरे कामों को करने की हिम्मत मुझे घर से बाहर निकलने के बाद मिली है। मैं खुश हूं कि मैं काम कर रही हूं।"
यहां काम करने वाली लगभग 21 वर्षीय रत्ना की शादीशुदा जिंदगी खादी के काम ने चार चांद लगा दिया है। वह बताती है कि, "मैं सिर्फ 9वीं तक पढ़ी हूं। 9 महीने पहले मेरी शादी हुई है। मैं हमेशा से कमाना चाहती थी। ताकि आर्थिक रूप से अपने आप को मजबूत कर पाऊं। मैं चाहती थी कि मैं अपने पैसे से कुछ करूं। मुझे हर काम के लिए अपने पति से पैसे मांगने नहीं पड़े। आज वो समय है। मैं अपने पैसों से अपनी जरूरतों को पूरा कर पाती हूं। मेरे लिए ये मायने नहीं रखता है कि मैं कितना कमाती हूं बल्कि मेरे लिए ये मायने रखता है कि मैं कमा रही हूं।" वह अपनी पहली सैलरी के बारे में बताते हुए बहुत खुश हो जाती है। वह बताती है कि, मेरी जब पहली सैलरी आई थी तो मुझे बहुत खुशी हुई थी। आखिरकार मैं भी कमा पा रही हूं। यह सब आने के बाद जय गोपालपुर यूथ डवलमेंट में आने के बाद संभव हो पाया है।
महिलाओं को दिया पहला स्थान
जय गोपालपुर यूथ डवलमेंट समन्वयक सोन्जीत मिस्त्री का कहना है कि हमारा संकल्प था कि हम महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूती दे पाएं और आज ये हो रहा है। महिलाओं को हमारे यहां सिलाई कढ़ाई के अलावा अन्य काम भी सिखाएं जाते हैं। उन्होंने बताया कि यहां ज्यादातर आबादी दलितों की है। उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। जिसके कारण उन्हें यहां से बाहर काम करने जाना पड़ता है। हर कोई बाहर नहीं जा सकता है, जिसके कारण हम यहां महिलाओं को काम सिखाकर आर्थिक रुप से मजबूत कर रहे हैं।
मिस्त्री कहती हैं कि, "महिलाओं की आर्थिक मजबूती के साथ सामाजिक स्थिति भी मजूबत हो रही है। यहां आने वाली महिलाएं पहले घर से बाहर नहीं निकलती थीं। उन्हें पता नहीं था कि बाहर का काम कैसा करना है। आज स्थिति यह है जो महिला पहले बाहर नहीं निकल पाती थी। आज वे बैंक में जाकर अपना सारा लेनदेन का काम स्वयं कर पा रही हैं। बाहर लोगों से मिलकर कुछ सीख रही हैं, लोगों के बीच महिलाओं की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने का संदेश दे रही हैं।"
"पश्चिम बंगाल के संदेशखाली ब्लॉक'-1 टापू की यह महिलाएं आज अच्छा सामजिक और आर्थिक जीवन जी पा रही हैं। साथ ही और लोगों को भी प्रेरित कर रही हैं। कम संसाधनों के बीच भी अपनी जीवन को मजबूती दे रही हैं।" उन्होने कहा।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.