श्रीनगर। बीते 500 दिनों से फहाद शाह जेल में बंदी हैं। वे डाउन टाउन श्रीनगर , कश्मीर के रहने वाले एक पत्रकार हैं। 4 फरवरी 2022 वह तारीख जब फहाद को गिरफ्तार किया गया था। आज एक साल चार महीने बीत चुके हैं। बेल मिलने के बाद भी फहाद अभी जेल में हैं। आखिर क्यों इस पत्रकार को जमानत के बावजूद रिहा नहीं किया जा रहा, पढ़िए द मूकनायक की यह रिपोर्ट-
फहाद की छवि सरकार और प्रशासन के प्रति बेहद आलोचनात्मक रवैया रखने वाले पत्रकारों में से एक की हैं। उनका इतने लंबे समय से जेल में रहना कई सवाल खड़े करता है। फहाद पर "देश द्रोही" और "भड़काऊ" आर्टिकल पब्लिश करने के इलज़ाम लगे हैं। प्रशासन के मुताबिक फहाद के तार पाकिस्तान से जुड़े हैं।
फहाद शाह पर इलज़ाम है कि उन्होंने नवंबर 2011 में "गुलामी की बेड़ियाँ टूटेंगी (The shackles of slavery will break)" नाम से अपने न्यूज वेब पोर्टल 'कश्मीर वाला' में एक आर्टिकल पब्लिश किया था। जिस आर्टिकल के कारण उन्हें अरेस्ट किया गया वह एक दशक से भी पुराना है और वह फहाद के द्वारा नहीं लिखा गया है। इस आर्टिकल को लिखने वाले शख़्स का नाम है अब्दुल अल फ़ाज़ली। अब्दुल उस समय कश्मीर यूनिवर्सिटी में शोध छात्र थे। वे कश्मीर यूनिवर्सिटी में ही औषधि विज्ञान डिपार्टमेंट में Phd स्कॉलर हैं। प्रशासन अब्दुल के भी तार पकिस्तान से जुड़े होना बताता है।
चार्जशीट में इस बात की कम चर्चा है कि अब्दुल और फहाद ने कैसे और कब भारत की सरकार के खिलाफ असंतोष और समाज में अशांति फैलाने की कोशिश की और उनके तार पाकिस्तान से कैसे जुड़े हैं? चार्जशीट के मुताबिक फहाद पर आतंकवादी घटना की साज़िश करना, गैर क़ानूनी गतिविधियों में शामिल होना, भारत सरकार के खिलाफ विद्रोह भड़काने की कोशिश करना, साबुत मिटाने की कोशिश करना, राष्ट्रीय एकता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने की कोशिश करना और विदेशी मुद्रा को गैरकानूनी ढंग से स्वीकार करने के आरोप हैं। इसके कारण उन पर UAPA के तरह मुकदमा दर्ज किया गया है।
फसाद को 4 फरवरी 2022 को अरेस्ट किया गया था और उन्हें 26 फरवरी 2022 ज़मानत मिल गई थी। लेकिन इस से पहले की फहाद जेल से बाहर आते , प्रशासन के पास उनके नाम की आरोपों की एक नई लिस्ट थी। उन्हें बेल तो मिली पर आज़ादी नहीं। तीन नए मामलों के तहत फिर अरेस्ट कर लिया गया जिन में से दो IPC के मामले थे और एक UAPA था। इतना भी काफ़ी नहीं था तो उनके ऊपर प्रिवेंशन एण्ड डिटेंशन आर्डर भी लगा दिया गया जो के जम्मू कश्मीर नागरिक सुरक्षा कानून 1978 के तहत आता है।
लगभग एक साल का समय बीत जाने के बाद फहाद को इन तीन मामलों में भी बेल मिल जाती है, सिवाय एक के जो कि अप्रैल 2022 में जम्मू में दर्ज किया गया था। इस मामले की जाँच राज्य जांच एजेंसी (SIA) कर रही है। एसआईए का गठन 2021 में आतंकवाद से जुड़े मामलों की जाँच करने के लिए किया गया था। इस जांच में राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी NIA भी शामिल है।
अश्विनी कुमार शर्मा की अध्यक्षता वाली NIA कोर्ट ने कहा कि "संपादक के अलावा किसी अन्य को आर्टिकल की ब्लू पेन्सिलिंग का अधिकार नहीं है। यह एक संपादक की ज़िम्मेदारी है कि वे जो भी पब्लिश करें उसकी विश्वसनीयता बनी रहे। यह एक व्यक्ति और देश के जीवन में दूरगामी असर पैदा कर सकता है। क्योंकि समाचार किसी व्यक्ति के लिए कयामत लाने की ताकत रखता है।" अश्विनी आगे कहते हैं की UAPA के अंतर्गत "जेल अनिवार्य और बेल अपवाद" हो जाती है।
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