गुजरात: सरकार की अनदेखी से 62 बौद्ध गुफाओं के अस्तित्व पर संकट!

पुरातत्व, पर्यटन व वन विभाग की अनदेखी, धार्मिक अतिक्रमण से बदल गया स्वरूप। विरासत को बचाने के लिए बौद्ध आए आगे, रैली निकाल लोगों को कर रहे जागरूक।
बौद्ध गुफाओं के अंदर व आस-पास बनाएँ गए पूजा स्थल
बौद्ध गुफाओं के अंदर व आस-पास बनाएँ गए पूजा स्थल
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गीर सोमनाथ। गुजरात का गिर राष्ट्रीय वन्यजीव अभयारण्य एशियाटिक लॉयन (बब्बर शेर) के लिए पूरी दुनिया में अपनी अलहदा पहचान रखता है, लेकिन यह बहुत कम लोग जानते हैं कि अभयारण्य क्षेत्र बौद्ध गुफाओं के लिए भी प्रसिद्ध है। सोमनाथ जिले की सानावांकियां की पहाड़ियाँ में 62 के करीब बौद्ध गुफाएं स्थित है। हालांकि संरक्षण व सार-संभाल नहीं होने से यह बेहतर स्थिति में नहीं है। पुरातत्व विभाग ने भी इन गुफाओं को बिसरा दिया है। पर्यटन विभाग भी बौद्ध गुफाओं को लेकर गम्भीर नहीं है। यही वजह है कि यह प्राकृतिक गुफाएं अपना मूलस्वरूप खोती जा रही है। वहीं धीरे धीरे मूलनिवासियों की नई पीढ़ी बौद्ध गुफाओं के इतिहास से अनभिज्ञ होती जा रही है।

बौद्ध गुफाओं के मूल स्वरूप से छेड़छाड़

गुजरात में बौद्ध धम्म के प्रचार-प्रसार के लिए काम कर रहे स्वयं सैनिक दल (एसएसडी) से जुड़े संजय शौर्यवंशी ने द मूकनायक से बात करते हुए बताया कि गुजरात के गिर सोमनाथ जिले में साना वांकियां गांव पहाड़ियों के बीच बनी ऐतिहासिक बौद्ध गुफाओं के मूल स्वरूप को बिगाड़ा जा रहा है। यहां बौद्ध धम्म से इतर अलग धर्म को मानने वाले लोगों ने अपने देवी-देवाताओं की प्रतिमाओं को स्थापित करना शुरू कर दिया है। इसके बावजूद पुरातत्व विभाग इन्हें रोक नहीं रहा है।

पुरातत्व विभाग का बोर्ड जिसे क्षतिग्रस्त कर गिरा दिया गया है
पुरातत्व विभाग का बोर्ड जिसे क्षतिग्रस्त कर गिरा दिया गया है

शैर्यवंशी कहते हैं कि ऐतिहासिक बौद्ध गुफाओं पर सुरक्षा व्यवस्था नहीं होने से कुछ लोग इन में तोड़-फोड़ कर ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को बिगाड़ने में लगे हैं, जबकि गिर सोमनाथ सानावांकियां पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। इन सभी गुफाओं की सार-संभाल करने में सरकार व जिम्मेदार विभागों की रूचि नहीं है। बौद्ध गुफाओं पर पुरातत्व विभाग ने नोटिस बोर्ड भी लगाया था, लेकिन कुछ जातिवादी मानसिकता वाले लोगों ने उसे भी तोड़ दिया है।

बौद्ध गुफाओं को संरक्षण की दरकार

शैर्यवंशी लेखक निलेश काथड़ के द्वारा लिखी गई सौराष्ट्र-कच्छ की बौद्ध गुफाएं पुस्तक के हवाले से बताते हैं कि यहां एक-दो नहीं बल्कि 62 गुफाएं हैं। समुद्र तट से 35 किलामीटर दूर उना से 25 किमी और वंकिया गांव से 3 किमी दूर यहां आमने-सामने दो पहाड़ियों पर गुफाएं बनी हैं। रूपेन नदी पहाड़ियों के पास से बहती है। नदी के तट पर एक विशाल बांध है।

कितबा के हवाले से आगे बताते हैं कि गिर जंगल की हरियाली आंखों को भाती है। दूर-दूर तक हरा-भरा परिदृश्य देखा जा सकता है। तलहटी से आरोही क्रम में गुफाएं हैं। यहां पांचों गुफाएं बहुत बड़ी हैं। लोगों ने सुविधा और लोक कथाओं के अनुसार गुफाओं के नाम रखे हैं। इन पांचों गुफाओं को लोगों ने अलग-अलग नाम दिए हैं। अभालमंडप, भीमचोरी, पांडव गुफा, माताजी की समाधि गुफा आदि। जिस पहाड़ी पर माताजी का मंदिर बना है, उस पर चढ़ने की सीढ़ियों के पास पुरातत्व विभाग ने बौद्ध गुफाओं की सुरक्षा के लिए एक बोर्ड लगा रखा है। इस पर गुजराती में लिखा बौद्ध शब्द बोर्ड से मिटा दिया गया है, जो गुजराती और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लगाया गया है।

सौराष्ट्र-कच्छ की बौद्ध गुफाएं में लेखक एक जगह लिखते है कि यहां पुरातत्व विभाग की सुस्ती कहे या लापरवाही, एक विशाल गुफा के ऊपर बनाई गई अवैध माता की समाधि। समय-समय पर जनभावना उठती रहती है कि सरकार को ऐसी ऐतिहासिक धरोहरों पर ध्यान देना चाहिए। क्योंकि यह कब्जा कई वर्षों से किया जा रहा है। पुरातत्व विभाग के संरक्षण मंडल की पर्याप्त सीमा और चुप्पी ऐतिहासिक विरासत को गुमनामी की ओर धकेल रही है।

बौद्ध गुफा परिसर में एकत्रित समाज के लोग।
बौद्ध गुफा परिसर में एकत्रित समाज के लोग।

गुफाओं की वर्ष 2009 आखिरी बार सफाई

पुरातत्व विभाग की घोर उदासीनता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इन गुफाओं की सफाई वर्ष 2009 में ही कर दी गई थी। टाइम्स ऑफ़ इण्डिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक विभाग ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत एक आवेदन के जवाब में यह बात कबूल की और कहा कि सफाई के लिए 61,000 रुपए खर्च किए गए। विभाग ने यह भी जवाब दिया कि इन गुफाओं के लिए कोई समर्पित कर्मचारी आवंटित नहीं किया गया है, भले ही वरिष्ठ अधिकारियों ने 2021 और 2022 में दौरा किया था। सौराष्ट्र की तत्कालीन रियासत ने 1950 और 1956 में अधिसूचनाओं के माध्यम से इन गुफाओं को संरक्षित स्मारक घोषित किया था।

प्राकृतिक गुफाओं की सार-संभाल जरूरी

यह बौद्ध गुफाएं प्राकृतिक हैं और उस समय दुश्मनों से बचने के लिए बनाई गई होंगी व बौद्ध अध्ययन का केंद्र रही होंगी। बड़ी संख्या में भिक्षु यहीं रहते होंगे। गुफाओं की नक्काशी और चट्टानी वास्तुशिल्प कार्य, विहार, स्तूप, चैत्य, विपश्यना केंद्र, धम्म देशना और कला का संगम एक साथ देखने को मिलता है। यहां नेपाल और सारनाथ में पाए जाने वाले चैत्य और स्तूप की प्रतिकृति है। कुछ कलाएं अजंता और एलोरा की गुफाओं में देखी जा सकती हैं। यहां ध्यान कुटिया भी हैं।

अभालमंडप गुफा

पहाड़ी के नीचे यह गुफा बहुत बड़ी है। गुफा 21 मीटर चौड़ी और 22 मीटर गहरी है और इसकी ऊंचाई 16 फीट है। सामने की ओर 6 गोल स्तम्भ थे। आज केवल 2 कॉलम हैं। बाकी खंभे रखरखाव के अभाव में समय के साथ ढह गए हैं। पीछे की दीवार बारिश के पानी में बह गई है। कोने के ऊपर से बारिश का पानी घुसने से उस स्थान पर दरारें पड़ गई है। अगले 4 पिलर पहले ही गिर चुके हैं, जिसके संकेत दिख रहे हैं। इस गुफा का आकार बताता है कि यहां बुद्ध धम्मचर्चा या धम्मदेशना के लिए समूह एकत्रित होते होंगे। सामने खुला मैदान है। पहाड़ी पर ऊपर जाने पर एक के बाद एक गुफाएं आरोही क्रम में आती हैं। जैसे-जैसे आप ऊपर जाते हैं, आपको आस-पास की हरियाली के खूबसूरत नजारे देखने को मिलते हैं। चारों ओर फैली हरियाली मन को मोह लेने वाली है।

भीमचोरी गुफा

यह गुफा भी बहुत बड़ी है। गुफा के अंदर चार गोल स्तंभ हैं। चारों खंभे किसी विवाह मंडप की तरह दिखते हैं। इसलिए, लोक कथाओं के अनुसार, इस मान्यता के आधार पर इस गुफा का नाम भीमचोरी रखा गया है कि भीम का विवाह यहीं हुआ था। हालांकि पांडवों का काल 5000 वर्ष पूर्व माना जाता है, लेकिन गुफाओं का काल पहली शताब्दी ईपू माना जाता है। इसके अलावा, पांडव गुफाओं से जुड़ा कोई अन्य ऐतिहासिक साक्ष्य भी नहीं है तो यह भीमचोरी गुफा भी नहीं है, बल्कि हथवागा कथा के पात्र के अनुरूप नाम देने की लोक प्रथा है।

निकटवर्ती गुफा अपेक्षाकृत बड़ी है। इसके चारों ओर दीवार बनाकर तख्तों की बैठने की व्यवस्था की गई है, जिस पर लोगों ने मंटा पत्थर के छोटे-छोटे ढेर बना दिए हैं। एक समय बौद्ध भिक्षु इन तख्तों पर बैठकर ध्यान करते होंगे। वह बुद्धम शरणम गच्छामि, धम्मम शरणम गच्छामि का पाठ करते होंगे।

यहां एक गुफा में एक स्तूप है। 8 फीट ऊंचा गोलाकार स्तूप ऊपर से सारनाथ के चंडिका स्तूप जैसा दिखता है। ऊपर चढना कठिन है, लेकिन कहा जाता है कि स्तूप के शीर्ष पर एक छेद है। परिनिर्वाण प्राप्त करने वाले भिक्षुुओं की अस्थियां यहां रखी गई थीं। ऊपर जाने के रास्ते में एक और गुफा में एक छोटा स्तूप है, जिसकी हालत जर्जर है। इस स्तूप में खांचे बने हुए हैं। पहाड़ी पर चढ़ने के लिए पहाड़ी को काटकर सीढि़यां बनाई गई हैं। यदि आप पहाड़ी की चोटी पर पहुंचते हैं तो आप विपरीत पहाड़ी पर सुंदर गुफाएं देख सकते हैं। आस-पास का प्राकृतिक सौंदर्य देखा जा सकता है। दूर-दूर तक खेतों में लहलहाती फसलें नजर आ रही हैं। कुछ ही दूरी पर गिर का घना जंगल है। शाम के समय, जंगल के शेर पानी पीने और शिकार करने के लिए बगल के बांध पर आते हैं। बगल की पहाड़ी पर एक विशाल गुफा में माताजी की समाधि बनाई गई है। यह गुफा सबसे बड़ी गुफा होगी। तलहटी से 200 फीट ऊपर इसमें भोजन क्षेत्र, रसोई, मंदिर, बड़ा पट्टगन आदि हैं। यहां लाल रंग से रंगी हुई तथागत बुद्ध की एक पुरानी छवि को दीवार में स्थापित देखा जा सकता है। मिट्टी की छत अन्य गुफाओं के समान ही है। शेष भाग को लादी से ढक दिया जाता है।

यहां एक विशाल बोधि वृक्ष देखा जा सकता है। हरबंद पानी के कुएं पहाड़ी के पीछे पाए जाते हैं। कुआं पानी से लबालब है। यह उस समय के बौद्ध भिक्षुओं के इंजीनियरिंग कार्य का उत्कृष्ट उदाहरण है। ऊपर से एक पायदान बनाया गया है ताकि बारिश का पानी कुएं में प्रवेश कर सके। आज भी कुएं में ताजा पानी है। कुएं ऊपर तक भर गए हैं। वहां से आप नीचे बांध देख सकते हैं। छोटी-छोटी पहाड़ियों के नाम रखे गए हैं। साना गुफाओं का नाम पहाड़ियों के नाम पर रखा गया है। इन गुफाओं के बाकी हिस्से कभी बौद्ध संस्कृति का भव्य स्थल रहे होंगे।

चीनी यात्री ने किया था उल्लेख

बताते हैं कि साना बौद्ध गुफाओं का दौरा चीनी यात्री ह्यु-एन-त्सांग ने किया था। वह 28 साल की उम्र में भारत आए और बौद्ध धम्म का अध्ययन करने के लिए चीन के बर्फीले पहाड़ों, घाटियों और दुर्गम जंगलों के माध्यम से हजारों मील की यात्रा करने के बाद 16 साल तक भारत में रहे। उस दौरान उन्होंने सना बौद्ध विद्यापीठ का दौरा किया। उन्होंने कहा कि यहां बौद्ध भिक्षुु बौद्ध धर्म, बौद्ध दर्शन, इतिहास, कला और बौद्ध संस्कृति का अध्ययन करते हैं। पढ़ाई कर रहे थे।

राष्ट्रीय कवि झवेरचंद मेघानी ने अपनी पुस्तक सौराष्ट्र के खंडहर में यह भी उल्लेख किया है कि उन्होंने 90 साल पहले ऊंट पर इस स्थान का दौरा किया था। चैत्य एवं स्तूप यहां के मुख्य आकर्षण हैं। आज सभी गुफाएं जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं। सरकार के पर्यटन एवं पुरातत्व विभाग की घोर उदासीनता के कारण यह ऐतिहासिक धरोहर खंडहर बन गयी है। गुजरात की समृद्ध मूर्तियाँ स्थापत्य विरासत में बौद्ध धर्म का योगदान महत्वपूर्ण है। साना की बौद्ध गुफाएं दुनिया में गुजरात की सबसे प्रमुख स्थापत्य विरासत मानी जाती हैं। बेजोड़ और बेमिसाल शिल्प कौशल देखने को मिलता है। गुजरात की गौरवशाली ऐतिहासिक विरासत के संरक्षण के अभाव में ये बौद्ध गुफाएं मूक होती जा रही हैं।

मूल निवासियों में जागरूकता के लिए निकाली संकल्प यात्रा

स्वयं सैनिक दल के नेतृत्व में गुजरात के गिर सोमनाथ जिले के उना तहसील से सानावांकिया गांव की बौध गुफाओं तक गत दिनों 22 किलोमीटर बुद्ध धम्म यात्रा निकाली गई। इस बुद्ध धम्म यात्रा का मकसद मूलनिवासियों को बुद्ध धम्म व यहां की बौद्ध गुफाओं तथा बुद्ध धम्म से परिचय कराना है। बुद्ध गुफाओं के भ्रमण के बाद आयोजित सभा में बौद्ध धम्म को मूल रूप में स्थापित करने के लिए सांस्कृतिक बदलाव की बात रखी गई।

बौद्ध गुफाओं के निकाली गई पैदल व वाहन यात्रा।
बौद्ध गुफाओं के निकाली गई पैदल व वाहन यात्रा।

कार्यक्रम के तहत लोग उना तहसील में बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर सर्कल पर जमा हुए। यहां संगठन के सभी सैनिकों ने बाबा साहब को सलामी देकर पंचशील के झंडे और स्वयं सैनिक दल (एसएसडी) के झंडे लेकर धम्मयात्रा की शुरुआत की। यह धम्म यात्रा नाथेज, सामतेर, गांगडा और टिंबी गांव से होकर दोपहर करीब एक बजे सानावांकीया गांव के करीब साना पहाड़ी पर स्थित बौद्ध गुफा पहुंची। धम्म यात्रा में पांच सौ लोग शामिल थे। यात्रा में सभी उपासक, उपासिकाएं और बच्चे बुद्धधम्म और स्वयं सैनिक दल (एसएसडी) संगठन के नारे लगाते चल रहे थे। इस धम्म यात्रा में सभी भीम सैनिक अपने-अपने गांव तहसील से दो पहिया व चार पहिया वाहनों से आए थे।

बुद्ध धम्म और संघ वदना का किया पठन

बुद्ध धम्म यात्रा के बौद्ध गुफा पहुंचने पर सभी उपासकों ने अनुशासन के साथ बौद्ध गुफा के अंदर बुद्ध धम्म और संघ वंदना का पठन किया। साथ में संगठन के कुछ सैनिकों ने खोए हुए बौद्ध धम्म की विरासतों को कैसे बचाया जाए, इस विषय पर भी बात रखी। जितनी भी बुद्ध धम्म की विरासत हैं। उसके बारे में संगठन के सैनिकों ने उपस्थित सभी लोगों को जानकारी दी। बुद्ध धम्म यात्रा संचालकों ने कहा कि इस तरह से हमारे मूलनिवासी लोग हमारी विरासत से अवगत होंगे। धम्म व संघ वंदना के बाद धम्म उपासकों ने एक साथ बैठ कर अपने साथ लाया भोजन ग्रहण किया।

बौद्ध सर्किट के तहत होगा संरक्षण- पर्यटन मंत्री मुलु भाई बेरा

द मूकनायक ने सना की बौद्ध गुफाओं की दुर्दशा पर राज्य के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री मुलुभाई बेरा से बात की। बेरा ने बताया कि राज्य सरकार बुद्धिस्ट सर्किट विकसित कर रही है जिसके लिए काफी बड़ा बजट रखा गया है। "केवल सना ही नहीं, गुजरात मे बौद्ध महत्व के जितने भी स्थल हैं, सभी का जीर्णोद्धार और संरक्षण किया जाएगा। मुझे गिर सोमनाथ स्थित गुफाओं की स्थिति की अभी जानकारी नहीं है लेकिन मैं पुरातत्व और पर्यटन विभाग के अधिकारियों से इस मसले को देखने को निर्देशित करूँगा", मुलु भाई बेरा ने कहा।

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