अंधविश्वास खत्म कर लोगों में वैज्ञानिक सोच विकसित करने का निर्देश देने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

सर्वोच्च न्यायालय ने अश्विनी कुमार उपाध्याय की उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें अंधविश्वास को मिटाने ओर भारतीयों से वैज्ञानिक सोच विकसित करने का आग्रह किया गया था।
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सुप्रीम कोर्ट फोटो साभार- इंटरनेट
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नई दिल्ली। अंधविश्वास को खत्म कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे भारतीय जनता पार्टी के नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय को शुक्रवार को प्रधान न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने खूब नसीहत दी। भाजपा नेता की याचिका पर सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि वह अंधविश्वास को समाप्त करने के लिए कोई दिशा-निर्देश जारी नहीं कर सकती। सर्वोच्च न्यायालय ने अश्विनी कुमार उपाध्याय की उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया जिसमें अंधविश्वास को मिटाने ओर भारतीयों से वैज्ञानिक सोच विकसित करने का आग्रह किया गया था।

प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, "उपाध्याय जी आप सिर्फ अदालत का दरवाजा खटखटाने से समाज सुधारक नहीं बन जाते। कई समाज सुधारकों ने कभी अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाया। हमें कानून के दायरे में रहकर काम करना होगा।"

अश्विनी उपाध्याय ने अंधविश्वास, जादू-टोने व इस तरह की अन्य कुप्रथाओं को समाप्त करने के लिए अदालत से उचित कदम उठाने के लिए केंद्र व राज्यों को निर्देश देने का अनुरोध किया था। फर्जी संतों पर भी लगाम की मांग की थी। उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि अंधविश्वास व जादू-टोने की आड़ में धर्मांतरण कराया जा रहा है।

याचिका पर सुनवाई के दौरान न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत वैज्ञानिक सोच के विकास पर जोर देते हैं। इस तरह के निर्देश जारी करने में न्यायपालिका की भूमिका पर भी न्यायालय ने सवाल उठाया। उपाध्याय ने भाटिया परिवार के 11 सदस्यों की सामूहिक आत्महत्या और हाथरस में हाल ही में हुई मौतों का हवाला देते हुए इस मामले में नरमी बरतने का आग्रह किया।

न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि वह वैज्ञानिक सोच को बढ़ाने के लिए निर्देश जारी नहीं कर सकता। इसके अलावा, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि संसद हस्तक्षेप कर सकती है और व्यापक हितधारकों के परामर्श के बाद वैज्ञानिक सोच विकसित करने के लिए कानून बना सकती है।

लेकिन न्यायालय इस मामले को संभालने में पूरी तरह से अक्षम है। वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के लिए नागरिकों को शिक्षित करने पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है। जिसे केवल याचिका दायर करके हासिल नहीं किया जा सकता है।

पीठ ने टिप्पणी की कि प्रार्थना का दायरा कानून बनाने के लिए विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है। यह किस तरह की जनहित याचिका है? कोई अदालत इस तरह के रिट कैसे जारी कर सकती है? जितना अधिक आप शिक्षित होते हैं, उतना ही अधिक आप तर्कसंगत बनते हैं।

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