रिपोर्ट – Saurav Singh
मोदी सरकार द्वारा शिक्षण प्रक्रिया में किए जा रहे बदलाव लगातार विवादों में है। नई शिक्षा नीति 2020 व CUET के खिलाफ लगातार छात्रों और शिक्षको का विरोध जारी है। मोदी सरकार ने जुलाई 2020 में नई शिक्षा नीति घोषित की थी। ये सन् 1986 में जारी हुई शिक्षा नीति के बाद भारत की शिक्षा नीति में यह पहला नया परिवर्तन है।
दिल्ली। नई शिक्षा नीति 2020 के तहत शिक्षण प्रक्रिया में कई बड़े बदलाव किए गए है। जिसमे मुख्य रूप से स्नातक कोर्स को चार वर्ष का किया गया है, जो की पहले तीन वर्ष का हुआ करता था। MPHIL को खत्म कर दिया गया है। वही अब तक जो शिक्षण संस्थानों को संरचनात्मक विकास सहित अन्य शैक्षणिक कार्यों के लिए वित्तीय सहायता विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) से मिलता था, अब वह लोन (ऋण) के रूप में हेफ़ा से मिलेगा।
शिक्षकों व छात्रों का मानना है कि, नई शिक्षा नीति व CUET शिक्षा को प्राइवेट हाथो में देने तथा सम्पूर्ण भारतीय शिक्षा व्यवस्था को भगवाकरण करने की एक साजिश है। इन्हीं बातों को लेकर बीते शुक्रवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के आर्ट्स फैकल्टी में छात्रों-शिक्षकों के द्वारा एक सार्वजनिक चर्चा का आयोजन किया गया, जिसमे मुख्य रूप से नई शिक्षा नीति 2020 की कमियों पर बात की गई।
इस चर्चा में मुख्य वक्ता के रूप में आरजेडी सांसद व दिल्ली विश्विद्यालय के प्रोफ़ेसर डा. मनोज झा, CPIM नेत्री बृंदा करात, कांग्रेस नेता डा. उदित राज, प्रोफेसर अपूर्वानंद, DUTA की पूर्व अधक्ष्य प्रो. नंदिता नारायण, प्रो. आभा देव हबीब, डा. जितेंद्र मीना, आइसा अधक्ष्य एन साई बालाजी, एसएफआई नेत्री आइशी घोष सहित कई अकादमिक जगत से जुड़े लोग शामिल हुए। 'आइसा', 'एसएफआई', 'डीएसयू' सहित कई प्रगतिशील छात्र संगठन और शिक्षक संगठन 'डीटीएफ' के संयुक्त पहल पर 'एजुकेशन नोट फॉर सेल' के बैनर तले इस चर्चा का आयोजन किया गया।
सांसद मनोज झा ने फ्रेंच स्टूडेंट मूवमेंट को याद करते हुए अपनी बात शुरू की। उन्होंने कहा कि, वो बड़ी बेशबरी से इंतजार कर रहे थे की ये नई शिक्षा नीति 2020 संसद मे आएगी और इस पर चर्चाएं होंगी लेकिन, यह संसद में आई ही नहीं। प्रो. ने कहा ये बड़े दुर्भाग्य की बात है कि लोग जिस पर बड़े-बड़े लेख लिख रहे हैं, पोस्टर- बैनर बनवा रहे हैं, वो दस्तावेज संसद तक पहुंची ही नही।
आगे उन्होंने कहा कि, "ये उल्टे पाव की यात्रा पर ले जाने वाला दस्तावेज है। प्राचीन भारत में जिस तरीके की शिक्षा की व्यस्था थी वही तरीका इस नई शिक्षा नीति में भी है। जहां एक्लव्य को आज भी दूर से ही सीखना पड़ेगा।"
वही उन्होंने ऑनलाइन शिक्षा की कमियों पर बात करते हुए कहा कि, इस शिक्षण प्रक्रिया में छात्र – शिक्षक के बीच कोई संवाद नही हो पाता। छात्रों को क्लाइंट की तरह ट्रीट किया जाता है। लेकिन, हमे मायूस होने की जरूरत नही है। उन्होंने किसान आंदोलन की याद दिलाते हुए कहा, हमें सड़को पर संघर्ष करना होगा। ये लड़ाई सिर्फ किसी एक छात्र संगठन की नही है। अगर इसके खिलाफ आज संघर्ष नही किया गया तो आने वाली पीढ़ियों के लिए ये एक त्रासदी साबित होगी।
CPIM नेत्री बृंदा करात, बुलडोजर का जिक्र करते हुए कहती हैं, "भाजपा सरकार संपूर्ण पब्लिक एजुकेशन पर बुलडोजर चलाने का काम कर रही है। मोदी सरकार बस उन्ही लोगो को पढ़ने का अधिकार देना चाहती है, जो संघ के एजेंडे में खुद को फिट पाते हैं। भाजपा अपने एजेंडे को पूरे भारत पर थोपना चाहती है।"
"जिस यूजीसी का सहारा लेकर भाजपा सरकार ये सारी नीतियां लागू करवा रही है। कल वो नई शिक्षा नीति लागू हो जाने के बाद यूजीसी को भी खत्म कर देगी।" आगे वह कहती हैं कि, मोदी सरकार की सारी नीतियों एक ही आधार है जो की वो 3 सी को बताती है: सेंटरलाइजेशन, कमर्शियलाइजेशन तथा कम्युनलाइजेशन!
उन्होंने छात्रों व शिक्षको को आश्वासन देते हुए अपनी बात समाप्त की। वह कहती हैं कि, हताश होने की जरूरत नही है। हम सब लोग हर तरीके से आप लोग के साथ हैं। हमें सड़क पर संघर्ष करने की जरूरत है।
चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कांग्रेस नेता डा. उदित राज अपनी बात रखते हैं। वह भाजपा नेताओ पर कटाक्ष करते हुए कहते हैं कि, जिस पार्टी का प्रवक्ता गोबर को कोहिनूर बताता है, उन लोगो से हम क्या उम्मीद कर सकते हैं। यह गोबर और मूत्र की शिक्षा नीति है। यह देश को बर्बाद करने की नीति है। जिससे भारत के हर नागरिक को लड़ने की जरूरत है। जब तक इस सरकार को सत्ता से बाहर नही कर दिया जाता तब तक हर भारतीय को पॉलिटिकल होने की जरूरत है।
प्रो. अपूर्वानंद बताते हैं कि, "नई शिक्षा नीति लागू होने के बाद जो आपके पाठ्यक्रम व पाठ्यचर्या होंगे वो एक मजाक बनकर रह जाएंगे। आपकी डिग्रियां, आपके सर्टिफिकेट, आपके डिप्लोमा, जो आप लेकर अपने शिक्षण संस्थान से निकलेंगे, सब मजाक बनकर रह जायेगा। ये खुलेआम एक धोखाधड़ी है जो यह सरकार हमारे आपके साथ नई शिक्षा नीति के नाम पर कर रही है।"
चर्चा का समापन आइसा अधक्ष्य एन साई बालाजी करते हैं। जिसमे वह नई शिक्षा नीति की कमियों को विस्तार रूप से छात्रों के बीच रखते हैं। वह बताते हैं, नई शिक्षा नीति में आरक्षण शब्द का कही जिक्र तक नहीं है। पब्लिक फंडेड जैसे शब्द पूरे दस्तवेज में ढूढने पर भी नही मिलते। बस इसमें जिक्र है तो हेफा का ऑनलाइन एजुकेशन का।
आगे वह कहते हैं, आज दिल्ली विश्वविद्यालय तथा जेएनयू जैसे विश्वविद्याल में बीए तथा एमए पूरे पांच साल की पढ़ाई करने के लिए ज्यादा से ज्यादा 1 लाख रुपए खर्च करने पड़ते है। वही प्राइवेट यूनिवर्सिटी में इसके लिए छात्रों को 15 से 20 लाख तक की रकम देने पड़ती है। अगर नई शिक्षा नीति लागू होती है तो पब्लिक फंडेड यूनिवर्सिटी का भी हाल यही होगा। फीस में बड़ी मात्रा में वृद्धि होगी जिससे गरीब व वंचित समुदाय से आने वाले छात्र शिक्षा से बाहर हो जायेंगे।
"चार साल का स्नातक कोर्स ड्रॉपआउट की संख्या को बढ़ाएगा। वही CUET कोचिंग के व्यापार को बढ़ाएगा जिससे छात्रों से कोचिंग के नाम पर करोड़ों की कमाई पूंजीपतियों द्वारा की जाएगी।" एन साई बालाजी ने कहा।
इस परिचर्चा में मौजूद सभी छात्र संगठनों द्वारा भविष्य में इस आंदोलन को और बड़ा व मजबूत करने की बात कही गई। इस पूरे चर्चा में दिल्ली विश्वविद्याल के विभिन्न कॉलेज से लगभग 200 से ज्यादा छात्रा-शिक्षक शामिल हुए।
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