बाबा साहब के महापरिनिर्वाण दिवस पर वॉइस ऑफ अमेरिका में 'द मूकनायक' व मीना कोटवाल के संघर्ष की कहानी

बाबा साहब के महापरिनिर्वाण दिवस पर वॉइस ऑफ अमेरिका में 'द मूकनायक' व मीना कोटवाल के संघर्ष की कहानी
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नई दिल्ली। भारत रत्न डॉ. भीम राव आंबेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस पर 'वॉइस ऑफ अमेरिका' मीडिया संस्थान ने 'द मूकनायक' और फाउंडिंग एडिटर मीना कोटवाल के संघर्षों की दास्तां को दिखाया है।

वॉइस ऑफ अमेरिका की वीडियो रिपोर्ट में दलित पत्रकार मीना कोटवाल के संघर्ष और द मूकनायक की पत्रकारिता में सामाजिक न्याय, बन्धुता, समानता, समता के साथ ही अपनी बात कहने में झिझक रख रहे पिछड़े, वंचित शोषित समाज तक माइक पहुँचाने के लिए किस तरह से संघर्षरत है यह दिखाया गया है।

रिपोर्ट में द मूकनायक की कार्यप्रणाली, ख़बरों की चयन प्रक्रिया के साथ ग्राउंड रिपोर्ट पर पहुँची मूकनायक टीम के रिपोर्टिंग के तरीके को दिखाया गया है। वॉइस ऑफ अमेरिका की रिपोर्ट में कहाँ गया कि 'द मूकनायक' भारत में दलित समुदायों के समस्या और मुद्दों को प्राथमिकता से उठा रहा है। जिसके लिए द मूकनायक की वेबसाइट पिछले दो सालों से इस तरह की खबरों के प्रकाशन का काम कर रही है।

रिपोर्ट में कहा गया कि 'द मूकनायक' के शुरुआती संघर्ष में क्राउड फंडिंग और दान किए गए उपकरण मिले जिससे इस प्लेटफार्म की शुरुआत हो सकी। द मूकनायक दलित, आदिवासियों की आवाज को उठा रहा है और उनके लिए न्याय की लड़ाई लड़ रहा है।

वॉइस ऑफ अमेरिका से बातचीत में मीना कोटवाल ने कहा कि मुख्यधारा की मीडिया में दलित समुदाय की खबरों को जगह नहीं मिल पाती है। यदि कोई खबर आती भी है तो महज कुछ शब्दों में सीमित कर खत्म कर दी जाती है। मीना कोटवाल ने कहा कि हम ऐसी ही खबरों को उठाते है, जिनसे लोगों को न्याय मिल सके। बलिया के एक गाँव में जहां बिजली पिछले 75 सालों से नहीं थी। हमने उस खबर को प्रमुखता से कवर किया और दिखाया इसके बाद तीन महीनों के भीतर ही उस गाँव में बिजली पहुँच गई। इस तरह की खबरों से प्रभाव पड़ रहा है।

कोटवाल ने कहा कि जिस तरह से बीबीसी, अलजजीरा जैसे मीडिया संस्थानों की खबरें सत्यता में पक्की मानी जाती हैं। उसी तरह से हम द मूकनायक के प्लेटफार्म को बनाने के लिए काम कर रहे है। ताकि हमारी ख़बरों पर लोग भरोसा बनाए रख सकें।

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