कर्नाटक: "हम भारत के लोग, भारत को एक..."

स्कूल और कॉलजों में संविधान की प्रस्तावना पढ़ाना अनिवार्य।
कर्नाटक: "हम भारत के लोग, भारत को एक..."
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बेंगलुरु। कर्नाटक की सिद्धारमैया कैबिनेट ने गत गुरुवार को स्कूलों और कॉलेजों में संविधान की प्रस्तावना पढ़ाने को अनिवार्य कर दिया। इसी के साथ सभी सरकारी और अर्ध-सरकारी कार्यालयों में संविधान की प्रस्तावना का चित्र लगाना भी जरूरी करने का फैसला लिया गया है।

निर्णय पर समाज कल्याण मंत्री एचसी महादेवप्पा ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम को ध्यान में रखते हुए और संविधान तैयार करने के पीछे के विचार को लोगों खासकर युवाओं को संविधान की प्रस्तावना को अनिवार्य रूप से पढ़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह युवाओं को राष्ट्र निर्माण में योगदान करने और सभी समुदायों के बीच भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करेगा।

क्या कहती है भारतीय संविधान की प्रस्तावना?

भारतीय संविधान की जो प्रस्तावना लिखी गई हे वो इसके उद्देश्यों और सिद्धांतों के बारे में बताती है। भारतीय संविधान 26 नवंबर, 1949 को अपनाया गया और 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ। संविधान बनने के बाद प्रस्तावना को लिखा गया। भारतीय संविधान की प्रस्तावना सभी देशवासियों को स्वतंत्रता प्रदान करती है। अपनी अभिव्यक्ति को व्यक्त करने और अपने ईश्वर की उपासना करने का अधिकार देती है। इसके साथ ही राष्ट्र की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने के लिए जरूरी कदम उठाने की बात भी प्रस्तावना में की गई है।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना इसके सिद्धांतों और भारत की परिकल्पना को बताती है। आसान भाषा में समझा जाए तो यह प्रस्तावना ही भारतीय संविधान की आत्मा है जो देशवासियों को भाईचारे के साथ एक-दूसरे का सम्मान और उनकी स्वतंत्रता का सम्मान करना सिखाती है।

प्रस्तावना में साफ तौर पर यह संकेत दिया गया है कि भारतीय संविधान के अधिकार सभी भारतीयों के पास हैं। जिसका उद्देश्य भारत में स्वतंत्रता और समानता को सुरक्षित रखने के साथ देश की एकता और अखंडता को बरकरार रखना है। प्रस्तावना ही देश को एक समाजवादी, लोकतांत्रित गणराज्य, संप्रभु और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित करती है।

जैसे- संप्रभु, धर्मनिरपेक्ष और गणतंत्र, संप्रभु का मतलब होता है भारत में किसी भी बाहरी शक्ति का प्रभुत्व नहीं है। हालांकि, इसे 42वें संशोधन 1976 के तहत प्रस्तावना में जोड़ा गया।

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कैबिनेट में क्या-क्या फैसले हुए?

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कर्नाटक मंत्रिमंडल ने धर्मांतरण रोधी कानून को निरस्त करने, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार और वी. डी. सावरकर सहित अन्य लोगों पर केंद्रित अध्यायों को हटाने का फैसला लिया है।

कर्नाटक कैबिनेट ने वर्तमान शैक्षणिक वर्ष के लिए राज्य में कक्षा छह से दस तक की कन्नड़ और सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों के पाठ्यक्रम में संशोधन को मंजूरी दे दी। मंत्रिमंडल की बैठक में यह भी फैसला किया गया कि समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले, इंदिरा गांधी को लिखे गए नेहरू के पत्रों और डॉ. बीआर आंबेडकर पर कविता को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा।

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कानून और संसदीय कार्य मंत्री एच. के. पाटिल ने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद बताया कि कैबिनेट ने धर्मांतरण विरोधी विधेयक पर चर्चा की। हमने 2022 में तत्कालीन बीजेपी सरकार के किए गए परिवर्तनों को रद्द करने के लिए विधेयक को मंजूरी दे दी है. इसे तीन जुलाई से शुरू होने वाले सत्र में पेश किया जाएगा।

कांग्रेस ने क्या वादा किया था?

बता दें कि कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणापत्र में वादा किया था कि वह स्कूली पाठ्यपुस्तकों में बीजेपी सरकार के किए गए बदलावों को हटा देगी। कांग्रेस ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) को भी खत्म करने का वादा किया था

धर्मांतरण के कानून पर क्‍या थी बीजेपी की दलील?

बीते साल सितंबर में बसवराज बोम्मई के नेतृत्‍व वाली कर्नाटक की बीजेपी सरकार ने धर्मांतरण के खिलाफ कानून पास किया था. उस वक्‍त कांग्रेस पार्टी और राज्‍य की जेडीएस के ने भाजपा द्वारा बनाए गए कानून का विरोध किया गया था. कर्नाटक की विधान परिषद में बीजेपी के संख्‍या बल की कमी के कारण यह विधेयक पारित होने के लिए लंबित था. जिसके बाद मई में बीजेपी ने बिल को अध्यादेश के माध्‍यम से पास कर दिया था. इसपर बीजेपी का कहना था कि इन दिनों राज्‍य में धर्म परिवर्तन काफी आम हो गया है. तत्‍कालीन गृह मंत्री का कहना था कि राज्‍य में प्रलोभन देकर और जबरन धर्म परिवर्तन की घटनाएं आम हो गई हैं।

प्रस्तावना को लेकर द मूकनायक ने एक शिक्षिका से बात की। यह शिक्षिका दिल्ली के प्राइवेट स्कूल में अध्यापिका हैं और सामाजिक विज्ञान और हिंदी पढ़ाती हैं। वह बताती हैं कि प्रस्तावना एनसीईआरटी की सभी किताबों में है, किताबों के पहले ही पेज पर प्रस्तावना लिखी होती है। अगर हम बच्चों को समझाएं कि आप इसे पढ़े केवल देखने के लिए नहीं बल्कि इसकी भी अपनी एक महत्व है। कर्नाटक सरकार ने जैसा बोला है कि किताबों में उसको पढ़ाया जाए, ये बहुत ही अच्छी बात है। क्योंकि हमें अपने संविधान और संविधान से जुड़ी सभी चीजों के बारे में पता होना चाहिए। बच्चों को पहले से प्रस्तावना के बारे में बताया जाए यह सब सरकार के ऊपर ना रहकर स्कूलों और इसके नागरिकों को भी बच्चों को सिखाना चाहिए। उनको खुद को भी इसकी जानकारी होनी चाहिए।

वह कहती है कि "प्रस्तावना को पढ़ाए जाने पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। यह छोटे-छोटे कदम एक अलार्म के तौर पर ले, जिससे बच्चे अच्छे से अपने देश और संविधान के बारे में समझेंगे। कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है तो इसको राजनीतिक तौर पर नहीं लिया जाए। बच्चों को ही नहीं सभी को इस बारे में जानकारी होनी चाहिए कि प्रस्तावना का क्या महत्व है।"

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