भोपाल। इलेक्टोरल बॉन्ड घोटाले की गहन जांच के लिए कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें कोर्ट की निगरानी में एसआईटी गठित कर जांच किए जाने की मांग की गई। आरोप है कि इलेक्टॉरल बॉन्ड से सत्तारूढ़ दलों को विभिन्न व्यवसायिक प्रोजेक्ट के लिए घूस दी जा रही थी, इसके साथ ही बांड्स का उपयोग मनीलांड्रिंग के लिए किया जा रहा था।
राजधानी भोपाल में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर इलेक्टोरल बॉन्ड याचिकाकर्ता अंजली भारद्वाज और सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट प्रशांत भूषण ने आरोप लगाते हुए बताया कि सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद इलेक्टॉरल बॉन्ड का डाटा जो सार्वजनिक किया गया, उस से यह पता चलता है कि बॉन्ड्स के माध्यम से बड़े पैमाने पर संभावित लेन-देन कंपनियों और राजनीतक दलों द्वारा किया गया है। डेटा से पता चलता है कि जिन कंपनियों को बड़े प्रोजेक्ट मिले उन्होंने प्रोजेक्ट लेने के लिए सत्तारूढ़ दलों को बांड के माध्यम से बड़ी रकम दान की।
संभावित रिश्वत के अलावा, डेटा यह बताता है कि चुनावी बांड के माध्यम से राजनीतिक दलों को दान देने वाली कंपनियां पैसा दान करने वाली शेल कंपनियों के साथ संभावित मनी लॉन्ड्रिंग का खुलासा करता है। इसके अलावा ऐसी भी संभावना है कि यह डेटा जबरन वसूली के मामलों को उजागर करता है, उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) सीबीआई और आईटी विभाग जैसी एजेंसियां शामिल हो सकती हैं। चुनावी बांड संभवतः देश का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार घोटाला है, जिसकी एक स्वतंत्र संस्था द्वारा गहन जांच की आवश्यकता है।
याचिकाकर्ता अंजली भारद्वाज ने बताया कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में इस पूरे मामले की जांच के लिए एसआईटी गठित करने की मांग की है। अंजली का कहना है कि- "इलेक्टॉरल बॉन्ड देश का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार घोटाला है, इसका इस्तेमाल घूस देने के लिए किया गया है, इसमें सत्तारूढ़ दल की मिली भगत है। इसलिए जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में की जानी चाहिए।"
15 फरवरी, 2024 को ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टॉरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार दिया और चुनावी बॉन्ड की आगे की बिक्री पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि इलेक्टॉरल बॉन्ड संविधान के अनुच्छेद 19(1) (ए) के तहत मतदाता के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करता है।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने चुनावी बॉन्ड लाने के लिए विभिन्न कानूनों में किए गए संशोधनों को भी रद्द कर दिया। चुनावी बॉन्ड के माध्यम से पार्टियों द्वारा प्राप्त दान को रिपोर्टिंग आवश्यकताओं से छूट देकर दानकर्ता को पूर्ण गुमनामी में रहने की अनुमति देने के लिए जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, कंपनी अधिनियम और आयकर अधिनियम में बदलाव किए गए।
कंपनी अधिनियम में संशोधन ने उस खंड को भी हटा दिया जो कंपनियों को पिछले तीन वित्तीय वर्ष में औसतन पूर्ण लाभ का केवल 7.5% दान करने की अनुमति देता था। आरबीआई और चुनाव आयोग सहित विभिन्न प्राधिकरणों ने इस योजना के खतरों को उजागर करते हुए कहा कि इससे पारदर्शिता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, सिस्टम में मनी लॉन्ड्रिंग और काले धन में वृद्धि होगी और शेल कंपनियों के माध्यम से फंडिंग को भी बढ़ावा मिलेगा।
आरटीआई अधिनियम के तहत इलेक्टॉरल बॉन्ड पर प्राप्त जानकारी में पत्राचार और विचार-विमर्श से पता चला कि सरकार ने इन चिंताओं को नजर अंदाज कर दिया और यह दावा करते हुए योजना को आगे बढ़ाया कि दानदाता की गुमनामी सुनिश्चित करने और बैंकिंग चैनलों के माध्यम से बॉन्ड की खरीद से राजनीतिक दलों के वित्तपोषण में काले धन पर अंकुश लगेगा। अदालत ने इन तर्कों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि चुनावी बॉन्ड ट्रेड किया जा सकता है और मूल खरीदार अंतिम योगदानकर्ता न होने की आशंका है क्योंकि इस प्रक्रिया में इस तरह के ट्रेड को रोकने के लिए कोई उपाय नहीं है।
अपने ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने बेचे और भुनाए गए सभी बॉन्ड के विवरण का खुलासा करने का निर्देश दिया। जनता से महत्वपूर्ण जानकारी का खुलासा करने में देरी करने की एसबीआई की कोशिश को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। आखिरकार 12 अप्रैल, 2019 के बाद से खरीदे और दान किए गए सभी चुनावी बॉन्ड का विवरण सार्वजनिक कर दिया गया, जिसमें ऐसा बॉन्ड नंबर भी शामिल था, जो बॉन्ड इस दान को लेने वाले दलों के दानदाताओं की ट्रैकिंग और मिलान को सक्षम बनाता है।
सामने आए आंकड़ों से पता चलता है कि कॉर्पोरेट समूहों, कंपनियों और व्यक्तियों द्वारा ₹12,155.1 करोड़ मूल्य के चुनावी बॉन्ड खरीदे गए और इसी अवधि के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा कुल ₹12,769.08 करोड़ मूल्य के चुनावी बॉन्ड भुनाए कैश कराए गए। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) चुनावी बॉन्ड की सबसे बड़ी लाभार्थी थी, जिसका मूल्य ₹6,060 करोड़ था, जो चुनावी बॉन्ड के द्वारा प्राप्त की गई कुल राशि का 47% से अधिक है।
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