नई दिल्ली। बहुजन डाइवर्सिटी मिशन (बीडीएम) व संविधान बचाओ संघर्ष समिति की ओर से गत रविवार को कांस्टीट्यूशन क्लब में डाइवर्सिटी डे कार्यक्रम के तहत विचार संगोष्ठी आयोजित की गई। इस अवसर पर द मूकनायक की संस्थापक व एडिटर-इन-चीफ मीना कोटवाल को ‘डाइवर्सिटी वुमन ऑफ द इयर’, प्रख्यात एडवोकेट और पॉलिटिकल-सोशल एक्टिविस्ट आरआर बागय व स्त्री- काल के सम्पादक और लेखक संजीव चन्दन को ‘डाइवर्सिटी मैन ऑफ द इयर’ अलंकरण से सम्मानित किया गया।
अगस्त 27, इस दिन को बहुजन डाइवर्सिटी डे के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का असल मकसद यह है, बहुजन समाज के हर उसे तबके के प्रतिनिधित्व पर बात की जाए जो आज भी हाशिए पर हैं या फिर सामाजिक व्यवस्थाओं के कारण हाशिए पर धकेल दिए गए हैं।
इसी प्रतिनिधित्व के सवाल को केंद्र में रखते हुए दिल्ली की कांस्टीट्यूशन क्लब में परिचर्चा की गई, जिसका विषय था लोकसभा चुनाव 2024 को सामाजिक न्याय पर केंद्रित करना क्यों है जरूरी? सामाजिक न्याय इसका अर्थ किसी भी नजरिए से निकाला जा सकता है। लेकिन असल अर्थ तब समझ में आएगा जब हम उसे व्यक्ति के नजरिए से देखेंगे जिसके साथ सदियों से अन्याय होता आया है। इस विषय पर चर्चा करने के लिए बहुजन समाज के कई चिंतक विचारक और नेता कांस्टीट्यूशन क्लब पहुंचे। आम आदमी पार्टी नेता राजेंद्र पाल गौतम, पूर्व सांसद के. सी त्यागी, कांग्रेस नेता कैप्टन अजय सिंह यादव, लेखक एच एल दूसाध, प्रोफेसर रतनलाल, प्रोफेसर सूरज मंडल और भी तमाम लोग इस कार्यक्रम में शामिल हुए।
हर साल इस कार्यक्रम में कई किताबों का विमोचन किया जाता है, इस बार भी ऐसा ही हुआ। लेखक और बहुजन चिंतक एच एल दुसाध की सात किताबों का विमोचन किया गया। इस बार इन किताबों में एक किताब को शामिल थी जो कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर लिखी गई थी। दुसाध ने अपने भाषण में कहा कि शोध और साहित्य समाज के लिए सबसे जरूरी है क्योंकि जिस तरह खाना पेट भरता है इस तरह किताबें दिमाग को पोषण देती हैं। दुसाध अपनी बात के मध्य में अमेरिका का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि 1967 में अमेरिका में करनाल आयोग बनाया, आयोग के बनाने का कारण था कि अमेरिका में दंगों की घटनाएं बहुत ज्यादा बढ़ गई थीं। इस आयोग के बनने के 10 महीने बाद एक रिपोर्ट सामने आई जो कहती थी कि अगर अमेरिका को एक विकसित देश बनाना है तो उसकी सबसे पहली जरूरत है शांति। जिस देश में शांति नहीं है। बराबरी नहीं है। वह कभी भी विकसित नहीं बन सकता। इसी रिपोर्ट से प्रभावित होकर अमेरिका की डाइवर्सिटी पॉलिसी आई। यह एक रिजर्वेशन का स्वरूप था, जहां पर न सिर्फ सरकारी नौकरियों में बल्कि ट्रेड और व्यापार में भी गैर श्वेत लोगों को कुछ प्रतिशत प्राथमिकता दी जाएगी।
भारत की स्थिति भी बहुत ज्यादा अलग नहीं थी यहां पर भी बहुत बड़े हिस्से को जानबूझकर पिछड़ा रखा गया और उसे ह्यूमन रिसोर्स को बर्बाद कर दिया गया। 27 अगस्त 2002 वह तारीख थी जब भोपाल कॉन्फ्रेंस में सप्लाई में डाइवर्सिटी का आईडिया पेश किया गया था। पहला दलित करोड़पति मध्य प्रदेश से निकलेगा। इस ऐलान के बाद अलग-अलग दलित संगठन बहुजन संगठनों ने अपने-अपने स्तर पर डाइवर्सिटी की मांग करना शुरू किया और अच्छी लड़ाई लड़ी भी, लेकिन दुसाध कहते हैं कि अपने लोगों में एक कमी है कि वह अंत तक लड़ाई नहीं लड़ते। सफलता जल्दी नहीं मिलती। तुम निराश हो जाते हैं और लड़ाई छोड़ देते हो।
इसी बात को आगे बढ़ते हुए प्रोफेसर रतनलाल अपने वक्तव्य में कहते हैं कि केवल हुक्मरान बनने का सपना मत देखिए, हुक्मरान बनने के लिए नेता बनने के लिए बहुत सी चीजों की जरूरत पड़ती है जो कि हमारे पास नहीं है। हर तरीके के पावर सेंटर में पहुंचना जरूरी है। वह कहते हैं कि मैं केवल दलित समाज की बात करता हूं क्योंकि मैं अपने समाज को ही समझ सकता हूं। एक उदाहरण से समझते हैं। अगर एक दलित व्यक्ति से पूछा जाए कि तुम 1000 करोड़ लोगे या फिर एक लोकसभा का टिकट तो जवाब होगा लोकसभा का टिकट। अगर नेता बन जाने से समस्याओं का समाधान हो जाता तो 137 सांसद पहले ही लोकसभा में बैठे हैं। अभी तक तो कोई समस्या बचनी ही नहीं चाहिए थी। लेकिन हमसे सबसे बड़ी गलती यह हुई कि हमने केवल नेता बनने पर ध्यान लगाया ना की और पावर सेंटर में पहुंचने की कोशिश की। केवल सरकारी नौकरियां ही आपको ताकत नहीं दे सकती हैं। जिस तरह सवर्ण समाज हर सेक्टर में बैठा है। हर जगह उनके लोग हैं क्यों हमारे लोग हर जगह नहीं है। ऐसा नहीं है कि हमारे पास काबिलियत की कमी है। कमी है सोच की कि हम केवल सरकारी नौकरियों और नेता बनने पर ध्यान देते हैं। कोई बिजनेसमैन बनने की बात नहीं करता कोई सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनने की बात नहीं करता। कोई कलाकार बनने की बात नहीं करता। कोई साहित्यकार बनने की बात नहीं करता। अभी हम बात कर रहे थे कि ट्रेड और कॉमर्स में डाइवर्सिटी होनी चाहिए अरे भाई ट्रेड और कॉमर्स करने वाले लोग भी तो होने चाहिए।
राजनीति पर चर्चा करते हुए जदयू प्रवक्ता और पूर्व राज्यसभा सांसद केसी त्यागी कहते हैं, क्यों आज तक सामाजिक न्याय राजनीति के केंद्र में नहीं आ पाया? क्यों आज भी हम सामाजिक न्याय की बातें सिर्फ कर रहे हैं और आज भी सरकार का डाटा कहता है कि एक तिहाई ऐसी जगह हैं जहां पर आज भी दलित समाज के लोग हाथ से मिला साफ करने को मजबूर हैं। आजादी के 76 साल बाद भी यह शर्मनाक है कि देश की इतनी बड़ी आबादी यह काम कर रही है। यह इसीलिए है क्योंकि हम जानते ही नहीं हैं कि इस देश में किस समाज के कितने लोग रहते हैं और उनकी क्या स्थिति है।
इसी बात को आगे बाढ़ते हुए वह कहते हैं, क्योंकि उनकी पार्टी विपक्ष के इंडिया एलियांज का हिस्सा है तो इस बार इंडिया एलायंस के मेनिफेस्टो में जातीय जनगणना का मुद्दा प्रमुख होगा। इसके साथ ही कैसी त्यागी कहते हैं कि राजनीति में जब तक सामाजिक न्याय की बात नहीं होगी तब तक न्याय मिलना संभव होगा। बहुजन समाज का प्रतिनिधित्व केवल सरकारी नौकरियों में सुनिश्चित किया गया है जो ठीक से मिलने भी नहीं है, लेकिन एक बहुत बड़ा तबका ऐसा है, जहां आज भी कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। केसी त्यागी प्राइवेट सेक्टर में भी रिजर्वेशन लागू करने की बात करते हैं।
आम आदमी पार्टी नेता राजेंद्र पाल गौतम, उनकी पार्टी आम आदमी पार्टी भी विपक्ष के इंडिया एलियांज का हिस्सा है। वे कहते हैं कि उनको फर्क नहीं पड़ता कि देश का अगला प्रधानमंत्री कौन बनेगा, लेकिन जो भी बने उसे सामाजिक न्याय के मुद्दे पर काम करना पड़ेगा। चाहे सरकार बदले या ना बदले हमारा काम सामाजिक न्याय के लिए लड़ना था है और रहेगा। बाबासाहब भीमराव अंबेडकर के संविधान को बदलने की जो बात कर रहे हैं हम उसके खिलाफ हमेशा खड़ा रहेंगे। वे आगे यह भी कहते हैं कि मैं किस पार्टी का हिस्सा हूं कि एलियांज का हिस्सा हूं। इससे फर्क नहीं पड़ता। सबसे पहले अपने समाज का हिस्सा हूं।
इस कार्यक्रम में कई लोगों को सम्मानित भी किया गया। इनमें द मूकनायक की संस्थापक मीना कोतवाल भी थी। सामाजिक न्याय और बराबरी को लेकर उनके काम के लिए उनकी खास सराहना होती रहती है। जब से द मूकनायक की स्थापना हुई है तभी से संस्था का उद्देश्य रहा है देश के दबे कुचले लोगों की आवाज बन सरकार से उनके हिस्से के सवाल पूछना। सवाल यह है कि क्यों आज भी गरीबों की एक जाति है। क्यों आज भी यूनिवर्सिटी और कॉलेज में एक ही समाज के लोगों को आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ता है? क्यों आज भी एकलव्य का ही अंगूठा मांगा जाता। संगोष्ठी में अरुण कुमार, नितिशा खलको, राजन अग्रवाल, राजाबाबू अग्निहोत्री सहित अन्य गणमान्य जन उपस्थित रहे।
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