लेख- सौरव सिंह
आज राजद (राष्ट्रीय जनता दल) सुप्रीमो और भारत के पूर्व रेल मंत्री श्री लालू प्रसाद यादव का 75 वां जन्मदिन है। राष्ट्रीय जनता दल आज अपने इस खास दिन को सामाजिक न्याय और सद्भावना दिवस के रूप में माना रहा है। पार्टी की ओर से एक लेटर जारी की गई है जिसमे सभी नेताओ को अपने – अपने क्षेत्रों में अनाथ, कमजोर व गरीबों को भोजन कराने को कहा गया है।
लालू प्रसाद यादव को अपनी वास्तविक जन्मतिथि नहीं पता है। वह अपने शैक्षिक दस्तावेजों में दी गई तारीख का पालन करते है जिसमे उनका जन्म 11 जून, 1948 को लिखा हुआ है। लालू यादव समाज के उस तबके से आते हैं जो एक वक्त बहुत पिछड़ा हुआ था और जिसकी राजनीतिक भागीदारी बहुत कम थी।
6 भाई बहनों में लालू यादव सबसे ज्यादा पढ़े लिखे हैं, लालू यादव ने अपनी पढ़ाई पटना विश्विद्यालय से की है। यहां से उन्होंने राजनीति शास्त्र में मास्टर तथा कानून की पढ़ाई पूरी की है। अपने कॉलेज के दिनो से ही वे राजनीति में सक्रिय हो गए थे व छात्र संघ के चुनाव में उन्होंने ने दो बार जीत भी दर्ज की। 1970 में वे महासचिव व 1973 में वह छात्र संघ के अध्यक्ष बने।
लालू यादव युवा अवस्था से ही जनता की नब्ज पकड़ना जानते थे। संकर्षण ठाकुर ने अपनी किताब में जिक्र किया है, लोग कहते हैं कि एक बार कार्ल मार्क्स के बारे में न जानते हुए भी लालू यादव ने न सिर्फ फीता काटा बल्कि उनपे बोला भी। लालू यादव कॉलेज में थिएटर किया करते थे उन्होंने शेक्सपीयर के एक नाटक " द मर्चेंट ऑफ वेनिस " के भोजपुरी रूपांतरण में श्यालॉक की भूमिका निभाई थी।
छात्र राजनीति के दौरान ही लालू जेपी आंदोलन से जुड़ गए, आंदोलन के दौरान कई बार उन्हें जेल जाना पड़ा तब उनकी राबड़ी देवी से नई-नई शादी हुई थी। एक बार इस दौरान ये अफवाह भी फ़ैल गई थी की पुलिस गोली में लालू यादव मारे गए। जेल के दौरान लालू अपनी पत्नी को चिट्ठियां लिखा करते थे, वही राबड़ी देवी लालू के लिए जेल में उनके पसंद के खाने ले जाया करती थी।
बिहार की राजनीति में लालू!
1977 में आपातकाल के पश्चात् हुए लोक सभा चुनाव में लालू यादव जीते और पहली बार 29 साल की उम्र में लोकसभा पहुँचे। 1980 से 1989 तक वे दो बार विधानसभा के सदस्य रहे और विपक्ष के नेता पद पर भी रहे।
1990 में वे बिहार के मुख्यमंत्री बने, खास बात ये थी कि वो विधायक दल के नेता के रूप में सलेक्ट होकर नही आए थे बकायदा वो इलेक्ट होकर आए थे। यादव तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह के करीबी रामसुंदर दास को 3 वोट से पटकनी देकर विधायक दल के नेता चुने गए थे।
मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उनका अंदाज बिल्कुल ठेठ गंवई था जिससे की गांव के अंतिम पंक्ति का भी व्यक्ति खुद को लालू यादव से जुड़ा पता था। लालू बिहार के ऐसे पहले मुख्यमंत्री थे जिन्होंने अपने सरकार के चपरासी को दिए गए दो कमरे के सरकारी निवास से राज्य का शासन चलाया था।
वे मुख्यमंत्री होने के वाबजूद पटना मेडिकल कॉलेज में अपने बुखार में तप रहे बेटे का इलाज कराने के लिए आम लोगो के साथ इलाज के लिए कतार में खड़े हो जाते थे। कभी-कभी अस्पतालों में औचक निरीक्षण के लिए पहुंच जाते और वहा मरीजों के साथ आए लोगो के रहने के लिए रैन बसेरा बनवाने लगते।
संकर्षण ठाकुर लालू यादव की जीवनी में लिखते हैं, वे पटना के फ्रेजर रोड चौराहे पर पहुंचकर हाथ में मेगा फोन लेकर खुद ही ट्रैफिक नियंत्रण करने लगते थे। वे अक्सर सरकारी दफ्तरों और थानों का औचक निरीक्षण दौरा कर गलती करने वाले अधिकारियों को वहीं सजा दिलवाते थे। वे अक्सर बीच खेत में अपनी हेलीकॉप्टर उतरवाते थे और लोगो को अपने साथ उड़नखटोले में चक्कर लगवाते थे।
लालू यादव अक्सर पानी की टैंकर लेकर दलित -पिछड़े बस्तियों में चले जाते थे और लोगो को वहा नहलाने लगते थे उनके बाल दाढ़ी बनवाने लगते थे व उन्हें साफ सुथरा रहने को कहते थे।
लालू यादव की यादस्त बहुत गजब की है वो एक बार जिससे मिल लेते उसका नाम व चेहरा वे कभी नही भूलते। राजद के ही एक वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी उनके बारे में बताते हैं कि, एक बार वो लालू के साथ मीटिंग में गए थे, वहा तैयारियां चल ही रही थी। चूंकि नेता लोग अमूमन कार्यक्रमों में लेट जाते हैं। लेकिन, हमलोग वहा 10 मिनट पहले पहुंच गए थे। वहां एक मुसहर लोगो का टोला था। सबसे पहले उन लोग ने ही लालू यादव को देखा और दौड़े-दौड़े चले आए। जिनमें लड़के, औरत, मर्द सब शामिल थे। इसी भीड़ में एक जवान औरत जो लगभग 25-30 की उम्र की हाथ में बच्चा लिए दौड़ी आई और लालू यादव के करीब आने की कोशीश करने लगी। वो लालू यादव के पास पहुंचती उससे पहले ही लालू यादव की नजर उस पर चली गई। लालू ने जोर से बोला… अरे! सुखमनिया…। उसने हंसकर जवाब दी हां हां। लालू ने फिर भोजपुरी में पूछा " तोहार अहिजे बियाह भईल बा…" ई गोद में तोहार लाइका बा। कुछ मिनट तक यादव ने हाल चाल लिया फिर उसे अपने जेब से निकालकर 500 रुपए दिए और बोले बच्चे को मिठाई खिलाना।
"हमको बड़ा ताजुब हुआ, मैने पूछा कौन है ये तो लालू यादव ने बताया वेटनरी कॉलेज जहा लालू यादव रहते थे वहीं पास में मुसहर टोली है, ये महिला वहीं की थी। अब मुसहर टोली के परिवार से भी इस आदमी का कैसा कनेक्शन था आप खुद सोचिए, और यही इस आदमी की ताकत थी" शिवानंद तिवारी कहते हैं।
लालू यादव ने एक इंटरव्यू में बताया था, वो पहली बार जूता तब पहने थे जब वो एनसीसी ज्वाइन किए थे। जूता न पहनने की वजह से उनकी पैरो की उंगलियों के बीच खासा गैप हो गया था।
लालू यादव को खाना बनाने का बहुत शौक है। वेजिटेरियन और नॉन वेजिटेरियन दोनो। लेकिन एक बार कोई स्वप्न देखने के बाद उन्होंने कुछ दिनों तक नॉन वेजिटेरियन खाना बंद कर दिया था।
पुलिस का नहीं, बिहार का दरोगा बनो
हाल ही में लालू यादव पर आई जयंत जिज्ञासु की पुस्तक में एक प्रसंग का जिक्र है जब उन्होंने दरोगा की नौकरी के लिए पैरवी कराने आए एक सज्जन को कह दिया कि तुम थाने का दरोगा बनाना चाहते हो, बिहार का दरोगा बनो। और उन्हें चुनाव लड़ने की सलाह दी। उन सज्जन के पास पैसे नहीं थे तो उन्हें सवा लाख रुपए चुनाव लड़ने के लिए भी दिए। संयोग से वे चुनाव जीत गए। ये थे सुरेश पासवान।
उस चुनाव में खर्च के बाद 25 हजार बच गए तो वे लौटाने पहुंच गए। कहा कि ये आपकी अमानत थी। इस पर लालू प्रसाद ने कहा, इसे अपने पास रखो। तुम्हारे काम आएंगे। पासवान कहते हैं 1997 में राबड़ी सरकार बनी तो उन्हें मंत्री बनाया गया।
पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने लालू यादव के बारे में लिखा है, पाकिस्तान में भी जाकर लालू प्रसाद यादव होटल के बाहर कमजोर तबके के लोगो को पकड़कर जनता दरबार लगाकर बैठ गए थे, और उनकी समस्याएं सुन रहे थे। ऐसे नेताओं को सही-गलत, काले-सफेद के दायरे से बाहर निकल कर देखना होता है।
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