20 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय शैक्षणिक संघों, अनुसंधान केंद्रों, प्रवासी संगठनों और 350 स्कॉलर्स (विद्वानों) ने भारत के केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री, वीरेंद्र कुमार को एक खुला पत्र जारी किया है जिसमें नेशनल ओवरसीज स्कॉलरशिप (NOS) के दिशा-निर्देशों में हाल ही में लाये गए नीतिगत परिवर्तनों पर गहरी असहमति व्यक्त की है।
सामाजिक न्याय मंत्रालय (Ministry of Social Justice and Empowerment) की दी हुई अधिसूचना के अनुसार NOS के माध्यम से भारतीय संस्कृति और इतिहास को अंतरराष्ट्रीय विघालयों में पढ़ने पर पाबंदी लगाईं गयी है, जो भारत पर अंतर्राष्ट्रीय छात्रवृत्ति को प्रतिबंधित करने का एक अनुचित प्रयास है।
पत्र में कहा गया है कि, "यह समझना आवश्यक है की भारतीय भाषाओं, संस्कृतियों, इतिहास, और कला के रूपों को किसी एक संकीर्ण क्षेत्र में कभी नहीं बाँधा जा सकता। यह मान लेना कि भारत से जुड़े हुए विषयों पर अध्ययन करने के लिए किसी को विदेश जाने की आवश्यकता नहीं, कई कारणों से ग़लत है और यह प्रस्ताव केवल भारतीय विद्वता को बाकी दुनिया से अलग करने का काम करेगा। अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक नेटवर्क विश्व स्तर पर एक दूसरे के सहयोग में रहते हैं और एक दूसरे पर निर्भर हैं। दुनिया भर के विश्वविद्यालयों में दक्षिण एशिया पर फलते-फूलते विभाग और अनुसंधान केंद्र हैं, और भारत के निचले वर्ग के विद्वानों का इन अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क और अनुसंधान केंद्रों में योगदान देना और इसमें भाग लेना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।"
पत्र में आगे लिखा गया, "हम इस बात पर प्रकाश डालना चाहतें है कि नेशनल वर्सेस स्कालरशिप में लाये गए परिवर्तनों का दुष्प्रभाव ख़ास कर महिलाओं पर पड़ेगा। महिलाओं का पहले से ही वैज्ञानिक और तकनीकी विषयों में प्रतिनिधित्व कम रहा है, लेकिन उन्हें समाज शास्त्र और मानविकी विषयों में ज्यादा आसानी से पढ़ने का अवसर मिलता रहा है। लेकिन नेशनल ओवरसीज स्कॉलरशिप के नए कायदे के आने के पश्चात ये अवसर भी उनके हाथों से निकल जाएगा।"
इस पत्र के हस्ताक्षरकर्ताओं में, अमेरिकन एंथ्रोपोलॉजिकल एसोसिएशन और अमेरिकन सोशियोलॉजिकल एसोसिएशन, यूके के एडिनबर्ग विश्वविघालय में दक्षिण एशियाई अध्ययन केंद्र, जर्मनी के गौटिंगेन विश्वविघालय में आधुनिक भारतीय अध्ययन केंद्र, स्कॉटलैंड और आयरलैंड में अकादमिक संघ शामिल हैं। इसके अतिरिक्त लगभग 20 नागरिक समाज प्रवासी और राष्ट्रीय संगठन और संघ शामिल हैं। प्रमुख व्यक्तिगत हस्ताक्षरकर्ताओं में अंतर्राष्ट्रीय विद्वान जैसे डेविड हार्डीमैन, बारबरा हैरिस-व्हाइट और जेन्स लेर्चे और दुनिया भर के विश्वविघालयोंसेभारतीय शिक्षाविद शामिल हैं।
पत्र में बताया गया कि, यह अंतर्राष्ट्रीय निवेदन "भारत में अकादमिक स्वतंत्रता के लिए अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता" (InSAF India) की एक पहल है, जो दुनिया भर में बसे हुए भारतीय शिक्षाविदों और पेशेवरों का एक समूह है। इनके सहित नेशनल कैंपेन ऑन दलित ह्यूमन राइट्स – दलित आर्थिक अधिकार आंदोलन (NCDHR-DAAA), और DBAV Womxn* कलेक्टिव भी शामिल हैं।
पूर्ण खुला पत्र और समर्थन करने वाले संगठन और संस्था यहां इंसाफ इंडिया की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं: https://www.academicfreedomindia.com/open-letter-against-2022-2023-nos-restrictions
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