भोपाल। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की पूनम श्रोती की लम्बाई महज 2 फिट 8 इंच है, लेकिन इनके इरादों और हौसले की लम्बाई नापना मुश्किल है। ओस्टियोजेनिसिस नामक बीमारी से जूझ रही पूनम ने चुनौतियों से लड़कर एक एनजीओ की शुरूआत की है जो अब तक सैकड़ों दिव्यांगों को मदद मुहैया करा चुका है। पढ़िए द मूकनायक पर उनके जीवन से जुड़ी खास रिपोर्ट:
द मूकनायक से बातचीत करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता पूनम श्रोति ने अपने संघर्ष चुनौतियों को साझा किया। पूनम ने बताया कि वह जिस ओस्टियोजेनिसिस बीमारी से पीड़ित है, यदि उन्हें हल्की सी ठोकर लग जाये तो उनकी हड्डियां टूट जाती हैं। उनका कद नहीं बढ़ा। हालांकि ये बीमारी लाखों में से एक या दो को होती है। इन सब परेशानियों के बावजूद उन्होंने सामान्य बच्चों के साथ अपनी पढाई पूरी की। 12वीं तक की पढ़ाई भोपाल के केन्द्रीय विद्यालय और फिर फाइनेंस विषय में एमबीए की पढाई की। एमबीए के बाद डिस्टेंस लर्निग से एचआर की भी पढ़ाई पूरी की। पूनम ने बताया कि स्कूल में सामान्यतः बच्चों के साथ पढ़ाई की, लेकिन कुछ समय बाद महसूस हुआ कि मैं सामान्य बच्चों से अलग हूं।
पूनम ने बताया कि जिन मुश्किलों का सामना उनको करना पड़ा वैसा दूसरे दिव्यांग जनों को ना करना पड़े। इसलिए उन्होंने साल 2014 में उद्दीप सोशल वेलफेयर सोसायटी की स्थापना की। ताकि दूसरे दिव्यांग लोग अपने मनमुताबिक काम कर समाज में अपनी अलग पहचान बना सकें। आज पूनम अपनी इस संस्था के जरिए ग्रामीण विकास पर जोर दे रही हैं तो दूसरी ओर वो महिलाओं के सशक्तिकरण के साथ दिव्यांग लोगों के लिए काम कर रही हैं। समाज में जागरूकता लाने की दिशा और बेहतरीन प्रदर्शन के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने देश की 100 सम्मानित महिलाओं को पुरस्कार प्रदान किया था। उनमें से एक पूनम भी थीं।
पूनम दिव्यांगों के सशक्तिकरण के लिए ‘कैन डू’ नाम से एक मुहिम चला रही हैं। इसके जरिए वे लोगों से कहती हैं कि वो दिव्यांग लोगों की जिम्मेदारी उठाने की बजाय उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने का हौसला दें। उन्हें समाज में बराबरी का दर्जा दिलाने के लिए कई ट्रेनिंग प्रोग्राम और जागरूकता से जुड़े कार्यक्रम चला रही हैं। महिलाओं के सशक्तिकरण से जुड़ा कार्यक्रम भोपाल के आस-पास के ग्रामीण इलाकों में चलाया जा रहा है। इसमें उनकी संस्था महिलाओं को शिक्षित करने के साथ-साथ वोकेशनल ट्रेनिंग तो दे ही रही है। इसके अलावा स्वच्छ भारत अभियान के तहत विभिन्न गांवों में सफाई अभियान से जुड़ी हैं।
पूनम ने कहा, सरकार ने जिस तरह से सफाई अभियान और सुगम अभियान की शुरुआत की है। ऐसे में सुगम अभियान की रैंकिंग होना भी जरूरी है। आज दिव्यांग रोजगार से दूर है। शिक्षा से दूर है। इसके लिए सरकार को विचार करना चाहिए। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार यह सब हमारे अधिकार हैं, जो लोग चल फिर नहीं सकते उन्हें कहीं भी जाने से पहले सोचना पड़ता है कि वहाँ व्हीलचेयर आने-जाने की व्यवस्था है की नहीं। जिस तरह शासकीय इमारतों में सुगम अभियान को लागू किया गया है। इसे निजी इमारतों पर भी लागू कर देना चाहिए और इसकी रैकिंग भी।
पूनम कहती है, जिस तरह स्वच्छता रैकिंग में शहर नम्बर 1 आने की दौड़ में काम करते है। उसी तरह सुगम अभियान के भी सकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि विकलांग से नाम परिवर्तित कर दिव्यांग कर देनेभर से कोई बदलाव नहीं आया है। इसके लिए एक सोच तैयार करने की जरूरत है। जो दिव्यंगों की पीड़ा को समझ सकें।
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