नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं को इसके प्रभाव और पहुंच के बारे में सावधान रहना चाहिए। कोर्ट ने कहा आपत्तिजनक पोस्ट करने पर माफी मांगना काफी नहीं होगा बल्कि ऐसा करने वालों को इसकी सज़ा मिलनी जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट ने अभिनेता और तमिलनाडु के पूर्व विधायक एसवी शेखर की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। दरअसल, पूर्व विधायक की ओर से याचिका दाखिल कर उनके खिलाफ दर्ज मामले को निरस्त करने की मांग की गई थी जिसे कोर्ट ने खारिज कर दी।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सोशल मीडिया पर अभद्र पोस्ट को लेकर दायर एक याचिका पर जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस प्रशांत कुमार की बेंच ने सुनवाई करते हुए ये बातें कही। कोर्ट ने तमिल फिल्मों के अभिनेता और भाजपा के पूर्व विधायक 72 साल एसवी शेखर (72) ने महिला पत्रकारों को लेकर सोशल मीडिया पर अभद्र पोस्ट लिखा था। इसके बाद उनके खिलाफ मामला दर्ज कराया गया था। पूर्व विधायक की ओर से याचिका दाखिल कर उनके खिलाफ दर्ज मामले को निरस्त करने की मांग की गई थी।
तमिल एक्टर से जुड़ा ये मामला 2018 का है। महिला पत्रकार ने उस दौरान के तमिलनाडु के राज्यपाल पर अभद्रता का आरोप लगाया था। बाद में तमिल एक्टर ने इस मामले को लेकर सोशल मीडिया पोस्ट में महिला पत्रकार को निशाना बनाया था। उनके पोस्ट को लेकर काफी विवाद भी हुआ था। हालांकि बाद में उन्होंने माफी मांगते हुए सोशल मीडिया पोस्ट को हटा दिया था।
कोर्ट में सुनवाई के दौरान शेखर के वकील ने जोर देते हुए कहा कि गलती का एहसास होने पर उनके मुवक्किल ने माफी मांग ली थी और पोस्ट को डिलीट कर दिया था। वकील की ओर से ये भी तर्क दिया गया कि पोस्ट करने के दौरान शेखर को धुंधला दिख रहा था, क्योंकि उन्होंने आंखों में दवाई डाली थी।
शेखर के वकील की ओर से दिए गए तर्क के बाद सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि बिना पढ़े आखिर शेखर ने सोशल मीडिया पर कैसे पोस्ट कर दिया था। इसके बाद बेंच ने कहा कि शेखर को कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। सिर्फ माफी मांग लेने से काम नहीं चलेगा। सोशल मीडिया यूज करने के दौरान हर किसी को ध्यान देना जरूरी है और अगर किसी से गलती होती है, तो उसे खामियाजा भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए।
वायरल हो गई थी पोस्ट- अभिनेता और तमिलनाडु के पूर्व विधायक एस वे शेखर के वकील ने कहा कि पोस्ट कुछ ही समय में वायरल हो गई। उनके वकील ने कहा कि मैं एक सम्मानित परिवार से आता हूं। मेरा परिवार महिला पत्रकारों का सम्मान करता है। मैंने उस समय अपनी आंखों में दवा ले ली थी। इसके कारण मैं अपनी तरफ से शेयर की गई पोस्ट के कंटेंट को नहीं पढ़ सका। हालांकि, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि अभिनेता ने सामग्री को पढ़े बिना इतनी लापरवाही से पोस्ट कैसे साझा किया। कोर्ट ने उनके खिलाफ मुकदमे की कार्रवाई में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
अदालत ने उन्हें मुकदमे का सामना करने के लिए कहा। शीर्ष अदालत ने साफ कहा कि किसी को सोशल मीडिया का उपयोग करते समय बहुत सावधान रहना होगा। सोशल मीडिया का उपयोग करना आवश्यक नहीं है, लेकिन अगर कोई इसका उपयोग कर रहा है तो उसे परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए। इससे पहले मद्रास हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि सोशल मीडिया पर भेजा या फॉरवर्ड किया गया संदेश उस तीर की तरह होता है जिसे पहले ही धनुष से छूट चुका होता है। जब तक वह संदेश भेजने वाले के पास रहता है, तब तक वह उसके नियंत्रण में रहता है। एक बार भेजे जाने के बाद... संदेश भेजने वाले को उस तीर (संदेश) से हुई क्षति के परिणामों का स्वामित्व लेना होगा। एक बार क्षति हो जाने के बाद माफीनामा जारी करके उससे उबरना बहुत मुश्किल हो जाएगा।
अगर आपके किसी पोस्ट पर या फिर किसी पोस्ट को शेयर करने से किसी की भावना आहत होती है या दो समुदायों के बीच नफरत पैदा होती है, तो आपको जेल की हवा खानी पड़ सकती है। भारतीय संसद ने साइबर क्राइम को रोकने के लिए साल 2000 में इनफॉर्मेशन एक्ट यानी आईटी एक्ट बनाया था।
इसके तहत अगर आप फेसबुक, ट्विटर, टिक टॉक, शेयर चैट, यूट्यूब समेत अन्य सोशल मीडिया पर किसी भी तरह का आपत्तिजनक, भड़काऊ या फिर अलग-अलग समुदायों के बीच नफरत पैदा करने वाला पोस्ट, वीडियो या फिर तस्वीर शेयर करते हैं, तो आपको जेल जाना पड़ सकता है. साथ ही जुर्माना देना पड़ सकता है।
भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धारा 153A और 34 के साथ आईटी एक्ट की धारा 67 के तहत मुकदमा दर्ज किया जाता है।आईपीसी की धारा 153A उनके खिलाफ लगाई जाती है, जो धर्म, नस्ल, भाषा, निवास स्थान या फिर जन्म स्थान के आधार पर अलग-अलग समुदायों के बीच नफरत फैलाने और सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश करते हैं। इस धारा के तहत तीन साल की जेल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी यानी आईटी एक्ट 2000 की धारा 67 में प्रावधान किया गया है कि अगर कोई इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से आपत्तिजनक पोस्ट करता है या फिर शेयर करता है, तो उसके खिलाफ मामला दर्ज किया जा सकता है। इसका मतलब यह है कि यदि कोई शेयर चैट, फेसबुक, ट्विटर समेत किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट करके अलग-अलग समुदायों के बीच नफरत फैलाने की कोशिश करता है, तो उसके खिलाफ आईटी की धारा 67 के तहत कार्रवाई की जाती है। आईटी एक्ट की धारा 67 में कहा गया है कि अगर कोई पहली बार सोशल मीडिया पर ऐसा करने का दोषी पाया जाता है, तो उसे तीन साल की जेल हो सकती है। साथ ही 5 लाख रुपये का जुर्माना भी देना पड़ सकता है। इतना ही नहीं, अगर ऐसा अपराध फिर दोहराया जाता है, तो मामले के दोषी को 5 साल की जेल हो सकती है और 10 लाख रुपये तक का जुर्माना देना पड़ सकता है।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.