बाबा साहेब के संविधान को ओम बिरला ने कहा ‘आधुनिक गीता’, इस नाम से क्यों खुद डॉ. आंबेडकर असहमत होते?

बाबा साहेब के संविधान को ओम बिरला ने कहा 'आधुनिक गीता', इस नाम से क्यों खुद डॉ. आंबेडकर असहमत होते?
बाबा साहेब के संविधान को ओम बिरला ने कहा 'आधुनिक गीता', इस नाम से क्यों खुद डॉ. आंबेडकर असहमत होते?
Published on

पार्लियामेंट एक ऐसी जगह है, जहां देश की नीतियों पर चर्चा की जाती है. सिर्फ़ यही नहीं बल्कि यहां होने वाली चर्चाएं आने वाली नस्लों के लिए एक ज़िन्दा दस्तावेज़ होती हैं. जब कोई शोधकर्ता किसी विषय पर शोध करता है तब इन दस्तावेज़ों का इस्तेमाल करता है. इसलिए हम देखते हैं कि संसद के भीतर होने वाली चर्चाओं को शब्दसः रिकॉर्ड किया जाता है. हमारे जैसे शोधकर्ताओं के लिए पार्लियामेंट के डाक्यूमेंट्स किसी भी अन्य सोर्सेज़ से ज़्यादा सत्यापित समझें जाते हैं.

मैं ये सब बातें इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि 26 नवंबर 2021 के दिन लोकसभा में संविधान दिवस के उपलक्ष्य में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. इस कार्यक्रम में महामहिम राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सहित सभी सांसद उपस्थित हुए थे. लंबे समय तक चले इस कार्यक्रम में लोकसभा स्पीकर ओम बिरला का लगभग पांच मिनट लम्बा सम्बोधन हुआ. इस भाषण को सुनने के बाद मेरा ध्यान दो-तीन महत्वपूर्ण बिंदुओं की तरफ़ गया है.

संविधान दिवस के इस सम्बोधन में उन्होंने संविधान सभा के किसी भी सदस्य का नाम नहीं लिया. किसी भी सदस्य का नाम नहीं लेने के पीछे उनकी क्या सोच थी वे ख़ुद बेहतर जानते होंगे मगर मेरी राजनीतिक समझ के अनुसार उन्होंने ऐसा जानबूझकर किया था. क्योंकि किसी भी सदस्य का नाम लेने से संविधान के ड्राफ़्टिंग कमेटी के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आंबेडकर का नाम लेना उनकी मज़बूरी हो जाती और उनकी विचारधारा इसकी अनुमति नहीं देती है.

26 नवंबर 1949 को संविधान की ड्रॉफ़्टिंग का काम पूरा कर लिया गया था और 25 नवंबर को डॉ अम्बेडकर ने संविधान सभा में आख़री ऐतिहासिक भाषण दिया था और ये भाषण हिंदुत्ववादी एजेंडे को ध्वस्त करने के लिए काफ़ी है.

ओम बिरला के सम्बोधन में सबसे अधिक चौंकाने वाली बात यह थी कि उन्होंने भारत के संविधान को "आधुनिक गीता" से सम्बोधित किया था. सुनने में यह मामूली बात तो लग सकती है मगर यह बात इतनी भी मामूली नहीं है- क्योंकि जब लोकसभा का स्पीकर सदन को सम्बोधित कर रहे हैं तब उनके मुख से निकलने वाला एक-एक शब्द स्वयं में एक व्यापक अर्थ रखता है.

सवाल ये है कि आख़िर उन्होंने संविधान को केवल संविधान क्यों नहीं बोला बल्कि "आधुनिक गीता" से क्यों सम्बोधित किया? इस सवाल का जवाब खोजा जाना चाहिए.

इस मामलें में मेरी दो-तीन तरह की समझ है-

1- ओम बिरला जिस हिंदुत्व की विचारधारा से आते हैं डॉ अम्बेडकर उस विचारधारा के सबसे कटु आलोचक रहे हैं. इसलिए वह जानबूझकर डॉ. आम्बेडकर को इस बहस से अलग करना चाहते थे. अगर वह डॉ अम्बेडकर का नाम लेते तो संविधान को "आधुनिक गीता" की संज्ञा नहीं दी जाती.

2- "आधुनिक गीता" की संज्ञा देकर जनता की भावनाओं को टेस्ट करना चाहते थे. वे चाहते तो मनु-स्मृति की भी संज्ञा दे सकते थे-लेकिन उन्होंने ऐसा इसलिए नहीं किया क्योंकि मनुस्मृति की संज्ञा देने से दलित एवं बहुजन समाज की तरफ़ से विरोध झेलना पड़ता. इसलिए उन्होंने गीता तक सीमित रखा. गीता के साथ एक फ़ायदा यह भी है कि कृष्ण और अर्जुन के बीच संवाद है और इसका विरोध होने पर यादव जाति का नैतिक समर्थन मिल जाता. क्योंकि यादव जाति के लोग स्वयं को कृष्ण से जोड़कर देखतें हैं. गीता के ज़रिये भी उनके हिंदुत्व की विचारधारा पूर्ण हो सकती है.

3- यह मुद्दा एक नैरेटिव सेट करने का है. क्योंकि जब भविष्य में संविधान और आधुनिक गीता के मुद्दे पर बहस शुरू होगी तब लोकसभा में दिये गए ओम बिरला के इस सम्बोधन को एक रेफ़रेंस की तरह इस्तेमाल किया जायेगा. अगर सदन के भीतर उनके सम्बोधन के बाद उनकी बातों का काउंटर पेश किया जाता तब भी वह एक दस्तावेज़ होता. मगर सदस्यों ने जानबूझकर या अनजाने में इसे इग्नोर कर दिया.

डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति The Mooknayak उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार The Mooknayak के नहीं हैं, तथा The Mooknayak उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.

The Mooknayak - आवाज़ आपकी
www.themooknayak.com