ओडिशा: केंद्रपाड़ा विवादित श्मशान अब समाज के सभी वर्गों के लिए

द मूकनायक ने प्रमुखता से प्रकाशित किया था समाचार, प्रबंधन ने हटाया "सिर्फ ब्राम्हणों के लिए' बोर्ड.
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ओडिशा। राज्य के केंद्रपाड़ा में नगर पालिका की ओर से संचालित एक श्मशान में 'केवल ब्राह्मणों के लिए’ की तस्वीर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुई थी। इस मामले ने दलित समाज ने अपना विरोध प्रकट किया था। तस्वीर की लोगों ने जमकर आलोचना की। जिसके बाद श्मशान पर लिखे गए शब्द हटा दिए गए थे। हमारे देश में जीते जी तो भेदभाव होता है परंतु मौत के बाद भी जातिगत भेदभाव कम नहीं होता। विवाद के बाद नगर प्रशासन ने इसे सभी वर्गों के लिए खोल दिया है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार साल 1928 में इस श्मशान को 'केवल ब्राह्मणों' के लिए स्थापित किया गया था। अब इसे क़ानून और संविधान के ख़िलाफ़ पाया गया है। क़ानूनी जानकारों के अनुसार, यह संविधान की धारा 14, 19 और 21 का उल्लंघन करता है, जो धर्म या जाति के आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव को गैर क़ानूनी ठहराते हैं।

लेकिन इसके बावजूद ओडिशा की सबसे पुरानी नगर पालिका (सन 1869 में स्थापित) की देखरेख में इतने दिनों तक यह श्मशान कैसे चलता रहा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। श्मशान के प्रवेश पथ पर लिखे गए "ब्राह्मण श्मशान" को मिटा कर अब उसके स्थान पर "स्वर्गद्वार" लिख दिया गया है।

जानिए क्या था पूरा मामला?

ओडिशा की केंद्रपाड़ा नगरपालिका राज्य की सबसे पुरानी निकाय है। केंद्रपाड़ा के हजारीबागीचा इलाके में एक श्मशान घाट पर सिर्फ ब्राह्मणों के लिए लिखा बोर्ड लगा हुआ था, जिस पर लोगों में नाराजगी है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस श्मशान घाट पर लंबे समय से एक जाति समाज के लोगों के शवों का अंतिम संस्कार हो रहा था, लेकिन हाल ही में नगर पालिका ने इस श्मशान घाट का पुनर्निर्माण कराया है, जिसके बाद श्मशान घाट पर यह विवादित बोर्ड लगाया गया था। अब सरकारी अनुदान के साथ सुविधा के नवीनीकरण के बाद हाल ही में आधिकारिक बोर्ड भी लगा दिया गया था।

द मूकनायक ने केंद्रपाड़ा दलित समाज जिला अध्यक्ष नागेंद्र जेना से बात की। वह बताते है कि जब से यह विवाद शुरू हुआ था। उसके चार-पांच दिन के बाद ही वहां का बोर्ड बदल दिया गया था। जो सभी वर्गों के लिए है। यह केवल एक जगह की बात नहीं है। यहां पर हर जगह पर जातिगत भेदभाव होता है। हमें और भी ऐसे सुधार लाने है। लेकिन यह सब इतना आसान नहीं है। क्योंकि यह जातिगत भेदभाव अभी अपने पैर पसारे हुए है। देखते है कितना समय लगता है, लेकिन हम फिर भी कोशिश करते रहेंगे।

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