भुवनेश्वर। भारत अब चांद पर पहुंच चुका है। इतनी वैज्ञानिक व तकनीकी उन्नति होने के बाद भी हमारे देश व समाज में जातिवाद चरम पर है। ओडिशा का एक श्मशान ऐसी ही सच्चाई बयान कर रहा है। मृत्यु के बाद भी यहां पर अंतिम संस्कार तक पर जातिवाद हो रहा है। आपको ये जानकार ताज्जुब होगा कि इस श्मशान घाट का संचालन ओडिशा के नगर निकाय द्वारा किया जा रहा है। इस श्मशान घाट पर केवल ब्राह्मणों के शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है। जिस कारण इस श्मशान प्रबंध समिति की जमकर आलोचना हो रही है।
ओडिशा राज्य के केंद्रपाड़ा में नगर पालिका की ओर से चलाये जा रहे एक श्मशान में 'केवल ब्राह्मणों के लिए’ की तस्वीर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुई। इस मामले ने दलित समाज ने अपना विरोध प्रकट किया है। तस्वीर की लोगों ने जमकर आलोचना की है। जिसके बाद श्मशान पर लिखे गए शब्द हटा दिए गए। हमारे देश में जीते जी तो भेदभाव होता है परंतु मौत के बाद भी जातिगत भेदभाव काम नहीं होता।
ओडिशा की केंद्रपाड़ा नगरपालिका राज्य की सबसे पुरानी निकाय है। केंद्रपाड़ा के हजारीबागीचा इलाके में एक श्मशान घाट पर सिर्फ ब्राह्मणों के लिए लिखा बोर्ड लगा हुआ है, जिस पर लोगों में नाराजगी है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस श्मशान घाट पर लंबे समय से एक जाति समाज के लोगों के शवों का अंतिम संस्कार हो रहा था, लेकिन हाल ही में नगर पालिका ने इस श्मशान घाट का पुनर्निर्माण कराया है, जिसके बाद श्मशान घाट पर यह विवादित बोर्ड लगाया गया है। अब सरकारी अनुदान के साथ सुविधा के नवीनीकरण के बाद हाल ही में आधिकारिक बोर्ड भी लगा दिया गया है. उन्होंने बताया कि अन्य जातियों के लोग अंतिम संस्कार के लिए पास के एक अन्य श्मशान घाट जाते हैं. इसका भी हाल ही में नवीनीकरण किया गया है।
द मूकनायक ने ओडिशा दलित समाज के जिला अध्यक्ष नागेंद्र जेना से बात की। वह बताते हैं कि जब उन्हें इसके बारे में पता चला तो वह हैरान रह गए। श्मशान घाट लंबे समय से सिर्फ एक जाति समाज के लोगों के शवों के अंतिम संस्कार के लिए इस्तेमाल हो रहा था। सरकारी निकाय ने यहां जातीय भेदभाव को बढ़ावा देकर कानून का उल्लंघन किया है। इस पर तुरंत रोक लगनी चाहिए।
आगे वह बताते हैं कि यहां पर जाति के नाम पर बहुत कुछ होता है। यहां पर हालत अभी भी नहीं सुधरे हैं। यहां यह सब इतना है कि आपको हर दूसरी जगह ऐसी बातें सुनने को मिल जाएंगी। यहां पर हमेशा ही ऊंची जाति को ज्यादा समझ जाता है। यहां पर सब कुछ प्रशासन की नजरों के सामने ही होता है। परंतु वह लोग ज्यादा कुछ नहीं करते, यहां पर मरने से पहले भी जाति भेदभाव होता है, और मरने के बाद भी होता ही रहता है। हमारे पास जितने मामले आते हैं। हम कोशिश करते हैं कि 100 प्रतिशत इन मामलों में न्याय मिले। प्रशासन के साथ भी बात की जाती है। कल शाम जैसे ही पता चला कि श्मशान के बाहर ऐसा लिखा है। हम लोग वैसे ही वहां पहुंचे और वहां पर लिखे हुए बोर्ड को हटाया और दूसरा लिखा हुआ बोर्ड वहां लगा दिया। जो सभी जातियों के लिए समान है।
आगे वह कहते हैं यहां के अवाम में जागरूकता की बहुत कमी है अभी भी कितने लोग हैं। जिनको अपने अधिकार और अपने बारे में पता ही नहीं है। वह अभी भी पुरानी चीजों और अंधविश्वासों के बीच में रह रहे हैं। हम कोशिश करते हैं कि यह भेदभाव के प्रति सबको जागरूक करें। यहां के प्रशासन भी इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाता सबसे बड़ी यही समस्या है, कि अगर कोई भेदभाव, जातिगत चीजों को लेकर शिकायत करता भी है, तो पुलिस उसकी मानती ही नहीं है। तो बताइए कैसे जागरूकता फैले और कैसे यह बात आगे जाएगी।
द मूकनायक ने गयाधर ढाल से भी बात की। वह एक जन आंदोलन के भी हिस्सा है। वह बताते हैं-यहां पर अक्सर ऐसी बातें सामने आती रहती हैं। दूसरी जगह पर एक श्मशान बनाया हुआ है, जिसमें सभी जाते हैं। लेकिन हम यही लड़ाई लड़ रहे हैं कि और जो श्मशान है, वहां पर ब्राह्मणों का ही क्यों जाना जरूरी है। यह सभी के लिए समान होना चाहिए हमारा एक संगठन हाईकोर्ट में इसकी याचिका भी डाल चुका है। इसके लिए हम जन आंदोलन भी शुरू कर रहे हैं ताकि यह सब उच्च-नीच भेदभाव खत्म हो। प्रशासन भी ब्राह्मण लोगों को ही सामने कुछ नहीं बोलना चाहता है। ब्राह्मण लोग अभी भी यही सब मानते हैं। कहीं पर ज्यादा है, और कहीं पर कम है। शिक्षा में यह सब भेदभाव कम हुआ है।
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