नई दिल्ली। मध्य प्रदेश और हरियाणा-पंजाब हाईकोर्ट के हाल में एससी/ एसटी एक्ट के तहत विचारधीन मामलों में आए फैसले को लेकर द मूकनायक ने हरियाणा के हिसार निवासी वरिष्ठ अधिवक्ता रजत कल्सन से बात की। कल्सन ने कहा न्यायालय में एससी/एसटी एक्ट के तहत विचाराधीन मामलों में प्रभावी सुनवाई नहीं होती, क्योंकि दलित आदिवासी तबके से आने वाले न्यायाधीश या जजों की संख्या कम है। वहीँ अधिकांश सवर्ण समाज से आने वाले जज ऐसे मामलों की सुनवाई संवेदनशील होकर नहीं करते।
हायर जुडिशरी में एससी- एसटी- ओबीसी समाज के नगण्य प्रतिनिधित्व पर चिंता व्यक्त करते हुए नेशनल अलायन्स फ़ॉर दलित ह्यूमन राइटस के संयोजक रजत कल्सन ने कहा कि देश में एससी/ एसटी व ओबीसी समाज की जनसंख्या लगभग 80 फीसदी है, परंतु हायर जूडिशरी में इनका प्रतिनिधित्व न के बराबर है।
देश के विभिन्न हाईकोर्टस में पिछले छह सालों के दौरान अनुसूचित जाति के महज तीन प्रतिशत जज नियुक्त हुए हैं, जबकि अनुसूचित जनजाति के नवनियुक्त जजों की संख्या सिर्फ डेढ़ प्रतिशत है तथा पिछले 10 सालों में सर्वोच्च अदालत के जजों के नाम की सिफारिश करने वाले सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने एक भी अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को सुप्रीम कोर्ट के जज के तौर पर नामित नही किया।
कल्सन ने बताया कि पिछले पांच वर्षों में 25 हाईकोर्ट में 554 नियुक्तियां की गईं, जिनमें से सामान्य श्रेणी से 430, अनुसूचित जाति से 19, अनुसूचित जनजाति से 6, अन्य पिछड़ा वर्ग से 58 और अल्पसंख्यकों में से 27 लोगों की नियुक्तियां हुईं. इनमें 84 नियुक्तियां महिला न्यायाधीशों के खाते में गईं , उन्होंने कहा कि साल 2018 के बाद से हाईकोर्टों में नियुक्त 75 फीसदी से ज्यादा जज ऊंची जातियों से हैं। अन्य पिछड़ी जाति के जजों की संख्या 12 फीसदी से कम है।
उन्होंने बताया कि भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन के 11 मई, 2010 को रिटायर होने के बाद, अनुसूचित जाति के किसी भी जज को सुप्रीम कोर्ट का जज नहीं बनाया गया है। साथ ही, वर्तमान के सभी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों में कोई भी अनुसूचित जाति से नहीं है।
कल्सन ने द मूकनायक से कहा कि उनकी संस्था मांग करती है कि भारत सरकार तुरंत प्रभाव से कॉलेजिंयम सिस्टम खत्म करे व भारतीय न्यायिक आयोग की स्थापना करे।
इसके तहत हायर जुडिशरी में नियुक्तियां की जाए तथा यह सुनिश्चित हो की हर वर्ग को उच्चतम व उच्चतर न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व मिले।
भारतीय प्रशासनिक सेवा व भारतीय पुलिस सेवा की तरह भारतीय न्यायिक सेवा की परीक्षा भी शुरू की जाए ताकि सत्र न्यायाधीश स्तर के न्यायिक अधिकारियों की सीधी भर्ती हो उसके तथा पदोन्नति के आधार पर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जज नियुक्त हो सकें। इससे हर वर्ग को योग्यता व कंपटीशन के आधार पर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में प्रतिनिधित्व मिले।
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