दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार 13 दिसंबर, को कहा कि भारत में 'सरोगेसी उद्योग' को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने यह टिप्पणी कनाडा में रहने वाले भारतीय मूल के दंपति की याचिका पर सुनवाई के दौरान की। दंपति ने दान 'सरोगेसी' को प्रतिबंधित करने के लिए सरोगेसी अधिनियम में संशोधन के लिए जारी की गई केंद्र सरकार की अधिसूचना को चुनौती दी है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने कहा कि सरोगेसी नियमों में बदलाव अदालतों के कहने पर हुआ है।
न्यायालय ने कहा कि ‘सरोगेसी’ की प्रक्रिया को विनियमित करने वाले कानून की मंशा ‘अपनी कोख’ देने वाली महिलाओं के शोषण पर अंकुश लगाना है। सरोगेसी से आशय किसी महिला द्वारा अपनी कोख में किसी अन्य दंपति के बच्चे को पालने और उसे जन्म देने से है।
हालाँकि 14 मार्च, 2023 को केंद्र ने सरोगेसी नियमों में संशोधन करते हुए एक अधिसूचना जारी की और डोनर सरोगेसी पर प्रतिबंध लगा दिया। कोर्ट को बताया गया कि दंपत्ति को दिसंबर 2022 में डोनर ओओसीटी के साथ सरोगेसी के लिए मेडिकल इंडिकेशन का प्रमाण पत्र दिया गया था। उसमें कहा गया था कि वे बांझपन के उन्नत उपचार के रूप में सरोगेसी प्रक्रिया से गुजर सकते हैं। लेकिन 14 मार्च, 2023 को सरोगेसी नियमों में संशोधन के लिए एक अधिसूचना जारी की गई, जिसमें डोनर सरोगेसी पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि वे भारतीय नागरिक हैं। जिन्होंने हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार कानूनी रूप से शादी की है। और भारत के स्थायी निवासी हैं। उन्होंने कहा कि वे निसंतान दंपति हैं। और उन्हें चिकित्सीय परेशानी है, जिसके कारण सरोगेसी की जरूरत पड़ी है। और इसके माध्यम से वे माता-पिता बनना चाहते है। याचिका में कहा गया है कि दंपति को अंडाणु दान के माध्यम से 'सरोगेसी' के लिए दिसंबर 2022 में चिकित्सा संकेत प्रमाणपत्र प्रदान किया गया था और कहा गया था कि वे 'सरोगेसी' प्रक्रिया शुरू करा सकते हैं।
कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि कनाडा में इस प्रक्रिया से गुजरने में क्या नुकसान है। जब वह वहां बस गए हैं तो। वह सरोगेसी के लिए भारत क्यों आ रहे हैं। कोर्ट ने कहा है कि लोगों के पास बच्चा गोद लेने का विकल्पित मौजूद है। कुछ अच्छे जोड़े उन बच्चों को गोद लेने के लिए आगे आते हैं तो उन बच्चों का जीवन बदल जाएगा।
अगर किसी भी बेसहारा बच्चों को गोद लिया जाए। तो उनकी जिंदगी संवर सकती है, लेकिन अभी यह मानसिकता है कि गोद लिए हुए बच्चे दूसरों के बच्चे ही होते हैं।
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