भोपाल। "मेरा नाम अजु है, पिछले 20 सालों से यहीं फुटपाथ पर रहती हूं। इसी जगह मेरे पति की चाय की दुकान हुआ करती थी। लेकिन बीमारी के बाद मेरे पति की मौत हो गई। मैं भीख मांगती हूं जो कुछ मिलता है। उसी से खाना-पीना चल रहा है। ठंड, बारिश और गर्मी के मौसम में भी यहीं रहतीं हूं। मेरा कोई घर नहीं है। मजबूर हूँ, दिव्यांग हूं।" 58 वर्षीय महिला अजु थापा यह बताते हुए फफक कर रो पड़ीं। थापा की तरह सैकड़ों लोग खुले आसमान के नीचे कड़कड़ाती ठण्ड में रहने को मजबूर हैं।
भोपाल में लगातार ठंड बढ़ रही है। टैम्परेचर जैसे-जैसे नीचे जा रहा है वैसे-वैसे ही फुटपाथ पर रह रहे लोगों की परेशानी भी बढ़ रहीं है। द मूकनायक की टीम रात को शहर में ठंड से परेशान सड़क किनारे रह रहे लोगों की समस्याओं को जानने निकली। ठंड के बीच सड़को के किनारे फुटपाथ पर लोग अलाव के सहारे बैठे दिखाई दिए। शहर में नगर निगम द्वारा संचालित रैन बसेरों की क्षमता कम होने के कारण लोग मजबूरन फुटपाथ पर सो रहें हैं।
द मूकनायक की टीम पुराने भोपाल के इलाकों में पहुँची। रात के करीब 12 बज चुके थे। सड़के जहाँ सूनसान हो रही थीं। वहीं ठंड भी बढ़ रही थी। आधी रात में शहर का तापमान करीब 15 डिग्री था। शीतलहर भी शुरू हो चुकी थी। जब हम शाहजहांनी पार्क रोड पर पहुँचे तो यहाँ कई लोग सड़क किनारे फुटपाथ पर अलाव के सहारे बैठे हुए थे। इनमें दर्जनों परिवार ऐसे है, जिनके सर के ऊपर छत नहीं हैं। यह लोग वर्षों से फुटपाथ पर यह पीड़ा झेल रहे हैं।
वहीं रैनबसेरा के सामने जब हम पहुँचे तो रोड किनारे अनीता और उसका पति हमें मिला, दोनों यहीं रहते हैं। दिन में कबाड़ बीनने का काम करते हैं और रात को यह लोग यहीं फुटपाथ पर सो जाते हैं। फिलहाल ठंड इतनी तेज है कि अनीता और उसका पति आग जलाकर उसके सहारे बैठे हैं।
ठंड कड़ाके की है और इन लोगों के पास उस हिसाब से ओढ़ने, बिछाने के लिए कपड़े या कंबल नहीं हैं। अनीता ने बताया कि वह पिछले पांच सालों से यहां रह रही हैं। दिन में कचरे से कबाड़ा बीनते हैं। अनीता ने कहां कि उनके पास आधार कार्ड है, लेकिन सरकार की किसी योजना का लाभ नहीं मिलता। हमारी पड़ताल में कई लोग ऐसे भी मिले जो मजदूरी की तलाश में भोपाल कुछ समय के लिए आए हैं। वहीं कुछ लोग शहर में कई सालों से रह रहे हैं।
लोगों से बातचीत के बाद हम शाहजहांनी पार्क स्थित रैन बसेरा में पहुँचें। इस रैन बसेरा में चार सौ लोगों के रहने की व्यवस्था है, लेकिन खचाखच भरे रैन बसेरे में लोग जमीन पर ही विस्तर लगाकर सो रहे थे। रैन बसेरा की दूसरी मंजिल की बालकनी में भी लोग जमीन पर ही लेटे हुए थे।
यहां मौजूद रैन बसेरा के प्रभारी अब्दुल आरिफ ने बताया कि यहाँ अधिक लोग यदि आते हैं तो उन्हें अन्य जगहों पर गाड़ी से भेज देते हैं। इसके लिए नगर निगम ने दो गाडि़यों का प्रबंधन किया है। रैन बसेरा सबसे अधिक चार सौ बेड की छमता वाला है। रेलवे स्टेशन से नजदीक होने के कारण यहां लोग ज्यादा आते हैं। इसलिए भीड़-भाड़ रहती है। आरिफ ने जो हमें बताया उससे इतर आँखों देखा हाल था। न तो बाहर निगम की वैन थी। बाहर सो रहे लोगों को किसी अन्य जगह शिफ्ट किया जा रहा था।
एक ओर शहर में ठंड बढ़ने लगी है, दूसरी ओर बस स्टैंड समेत सार्वजनिक स्थानों में अब तक अलाव की व्यवस्था नहीं की गई है। इससे शाम और रात के समय राहगीरों यात्रियों को ठंड की मार झेलनी पड़ रही है। कुछ दिन पहले तक बदली की वजह से ठंड कम थी। लेकिन मौसम साफ होते ही जिले में अब कड़ाके की ठंड पड़ने लगी है।
प्रतिवर्ष ठंड बढ़ते ही नगर निगम द्वारा लोगों को राहत दिलाने के लिए शहरी-उपनगरीय क्षेत्र में बस स्टैंड समेत प्रमुख चौक-चौराहों में अलाव की व्यवस्था की जाती है। लेकिन इस साल अब तक निगम के द्वारा अलाव की व्यवस्था नहीं की गई है। इसके कारण रात के समय लोगों को खुले में ठंड से बचने के लिए कोई साधन नहीं मिल रहा है, जबकि रात बढ़ते ही पारा गिरने से खुले में गर्म कपड़े भी असर नहीं करते हैं। नगर निगम की ओर से अलाव की व्यवस्था नहीं हो रही है इस कारण लोग खुद ही लकड़ी की व्यवस्था कर आग जला रहे हैं।
द मूकनायक से बातचीत करते हुए नगर निगम भोपाल के एपीआरओ संजय शर्मा ने बताया कि फिलहाल अलाव जलाने के लिए निगम आयुक्त के द्वारा कोई निर्देश नहीं दिए गए हैं। वहीं रैन बसेरों में भी क्षमता बढ़ाने को लेकर कोई प्रस्ताव नहीं है।
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