भोपाल। 24 दिसंबर को देशभर में 'राष्ट्रीय उपभोक्ता अधिकार दिवस' मनाया जा रहा है। आज ही के दिन साल 1986 में 'उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986' को राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई थी। इस कानून का उद्देश्य उपभोक्ताओं को विभिन्न प्रकार के शोषण, जैसे दोषपूर्ण सामान, सेवाओं में कमी और अनुचित व्यापार प्रथाओं के खिलाफ प्रभावी सुरक्षा उपाय प्रदान करना है। इसके लिए राज्यों के स्तर पर उपभोक्ता आयोग और न्यायालय स्थापित किए गए हैं।
लेकिन आज भी समाज का शोषित, वंचित समाज उपभोक्ता अधिकार से दूर है। कारण है जागरूकता की कमी। दलित, आदिवासी एक्टविस्ट मानते हैं कि इन कानूनों की जानकारी नहीं होने से इन वर्गों के लोग अपने उपभोक्ता अधिकारों के लिए आवाज़ नहीं उठा पाते हैं।
देशभर में उपभोक्ता सरंक्षण के लाखों मामले पेंडिंग पड़े हैं। साल 2022 की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में करीब 6,07,996 उपभोक्ता मामले लंबित थे। एनसीडीआरसी में करीब 22250 मामले विचाराधीन थे। 28318 मामलों के साथ उत्तर प्रदेश जैसे प्रमुख राज्य, 18093 लंबित मामलों के साथ महाराष्ट्र, 15450 लंबित मामलों के साथ दिल्ली, 10319 के साथ मध्य प्रदेश, और 9615 लंबित मामलों के साथ कर्नाटक कुछ ऐसे राज्य हैं जहां सबसे अधिक लंबित मामले थे।
द मूकनायक से बातचीत करते हुए आदिवासी एक्टविस्ट एडवोकेट सुनील कुमार आदिवासी ने कहा कि उपभोक्ता कानून और शिकायत प्रोसेस की जानकारी दलित, आदिवासियों में न के बराबर है। इसका प्रमुख कारण प्रशासन की ओर से जागरूकता अभियान सिर्फ औपचारिकता और कागजों में खानापूर्ति कर देना है। सही जानकारी ग्रामीण अंचलों के पिछड़े लोगों को नहीं हैं। इसके अलावा जो लोग आयोग में शिकायत भी करते हैं तो वह मामले भी वर्षों विचार में रहते हैं।
प्रदेश के 52 जिलों के उपभोक्ता आयोगों में तीन अध्यक्ष और 31 सदस्यों के पद रिक्त हैं। वहीं, राज्य उपभोक्ता आयोग में दो बेंच लगाए जाने के बाद भी लंबित मामलों में कमी नहीं आ रही है। करीब चार साल से आयोग में अध्यक्ष व सदस्यों की भर्ती नहीं हो पाई है। इस कारण राज्य और जिला उपभोक्ता आयोगों में लंबित मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है। हालांकि नेशनल लोक अदालत में मध्यस्थता कराकर मामलों का तेजी से निराकरण किया जा रहा है। लेकिन विचारधीन मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
अधिनियम के तहत उपभोक्ताओं को निम्नलिखित छ: उपभोक्ता अधिकार प्रदान किए गए हैं :
1. सुरक्षा का अधिकार
2. संसूचित किए जाने का अधिकार
3. चयन का अधिकार
4. सुनवाई का अधिकार
5. प्रतितोष पाने का अधिकार
6. उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार
इसी साल सितंबर 2023 में मध्यप्रदेश राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग ने जबलपुर के एक अस्पताल को ईलाज में लापरवाही बरतने के मामले में 85 लाख रुपए पीड़ित को दिए जाने का आदेश दिया था। मामला जबलपुर स्थित आयुष्मान चिल्ड्रन अस्पताल का था। यहां इनक्यूबेटर ऑपरेटिंग में लापरवाही के चलते एक बच्ची की आंखों की रोशनी हमेशा के लिए चली गई थी। मामला दिसम्बर साल 2002 का है जब कटनी निवासी शैलेन्द्र जैन ने हाल ही में जन्मी अपनी नवजात प्रीमेच्योर बेटी को अस्पताल में भर्ती कराया था।
इस मामले में पीड़ित की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता दीपेश जोशी ने बताया कि यह एक ऐतिहासिक फैसला है। अभी तक इतनी बड़ी कंपनसेशन राशि किसी भी अस्पताल पर लापरवाही के चलते नहीं लगाई गई है। यह फैसला 14 सितंबर को राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग के सदस्य एके तिवारी, श्रीकांत पांडे और डीके श्रीवास्तव की बैंच ने सुनाया। इससे पहले एक स्टोन क्लीनिक के मामले में आयोग ने 15 लाख का जुर्माना लगाया था।
उपभोक्ता सेवा प्रदाता के खिलाफ ई-दाखिल पोर्टल से आनलाइन शिकायत दर्ज करवा सकता है। इसके माध्यम से दर्ज शिकायत को ट्रैक भी किया जा सकता है कि उस पर क्या कार्रवाई हुई है या क्या स्टेट्स है। इसके साथ ही आयोग में आवेदन देकर भी शिकायत कर सकते हैं।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत उपभोक्ताओं की शिकायतों को ऑनलाइन माध्यम से दर्ज कराने के लिए एनआईसी द्वारा एक पोर्टल (https://consumerhelpline.gov.in/) विकसित किया गया है। यहां उपभोक्ता अपना नाम, नंबर और अन्य जानकारी डालकर अकाउंट बना सकते हैं और फिर अपनी शिकायतें दर्ज करा सकते हैं। दर्ज शिकायत को उपभोक्ता ट्रैक भी कर सकते हैं कि उस पर क्या कार्रवाई हुई है या उस शिकायत का क्या स्टेट्स है। इसके अलावा उपभोक्ता फोरम हेल्पलाइन नंबर पर कॉल करके अपनी शिकायत दर्ज कराई जा सकती है, जिसके लिए टोल फ्री नम्बर 1800114000 या 08368711588. या 1915. पर की जा सकती है। यह नंबर राष्ट्रीय छुट्टियों को छोड़कर पूरे सप्ताह सुबह 8:00 से रात 8:00 बजे तक उपलब्ध है।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.