भोपाल। हाल ही में जारी की गई नीति आयोग की रिपोर्ट ये दावा कर रही है कि देश में पिछले नौ साल के भीतर 25 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर आए हैं। साथ ही मध्य प्रदेश में भी 2.30 करोड़ लोग गरीबी से उबरे हैं। इधर, प्रदेश के आदिवासी बहुल और देश के सबसे गरीब जिले अलीराजपुर के प्रशासनिक अधिकारियों को नीति आयोग के डिस्कशन पेपर 'मल्टी डायमेंशनल पॉवर्टी इन इंडिया की जानकारी तक नहीं है। ऐसे में नीति आयोग द्वारा जारी डिस्कशन पेपर पर सवाल खड़े हो रहे है।
दरअसल, वर्ष 2021 में आई नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया कि पूरे भारत में अलीराजपुर ही वो ज़िला है, जहाँ सबसे ज़्यादा ग़रीबी है। ये पहली बार था जब आयोग ने ‘मल्टी डायमेंशनल पावर्टी इंडेक्स’ यानी 'बहुआयामी ग़रीबी सूचकांक' साझा किया था।
ये रिपोर्ट वर्ष 2019 और 2020 के बीच हुए ‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण’ के आंकड़ों के आधार पर तैयार की गई थी। अब नीति आयोग ने पिछले 9 वर्षों की रिपोर्ट का अध्ययन कर निष्कर्ष निकाला है। पेपर जारी कर दावा किया है कि देश के 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकल आए हैं, लेकिन इस निष्कर्ष के बाद भी अलीराजपुर के ग्रामीण इलाकों में रह रहे आदिवासियों की ज़िंदगी में कोई सुधार देखने को नहीं मिलता है।
अलीराजपुर में वर्तमान गरीबी स्थिति को समझने के लिए जब द मूकनायक ने कलेक्टर डॉ. अभय अरविंद बेडेकर से बातचीत की तो उन्होंने कहा कि अभी फिलहाल मुझे नीति आयोग की मल्टी डायमेंशनल पॉवर्टी इन इंडिया से संबंधित रिपोर्ट की जानकारी नहीं है। हमने कलेक्टर से पूछा की क्या 2022-23 में अलीराजपुर के लोगों को गरीबी से निजात मिली है? तो इस बारे में भी कलेक्टर को जानकारी नहीं थी। भारत के सबसे गरीब जिले के कलेक्टर के इस जवाब से नीति आयोग की पेपर पर प्रश्नचिन्ह लग रहा है।
नीति आयोग के डिस्कशन पेपर 'मल्टी डायमेंशनल पॉवर्टी इन इंडिया के मुताबिक इन वर्षों में बड़ी आबादी को गरीबी से उबारने वाले राज्यों में उत्तरप्रदेश और बिहार के बाद मध्यप्रदेश तीसरा अव्वल राज्य बन गया है। बीते नौ साल में देशभर में 24.84 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकले हैं।
नीति आयोग की ओर से दिल्ली में जारी एक डिस्कशन पेपर 'मल्टी डायमेंशनल पॉवर्टी इन इंडिया सिंस 2005-06' के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है। इसमें वर्ष 2013-14 की स्थिति में देश में गरीब आबादी के अनुपात और 2022-23 में देश में गरीब आबादी के अनुपात की तुलना की गई है। दिल्ली में नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद्र ने नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रमण्यम की मौजूदगी में यह पेपर जारी किया।
इस डिस्कसन पेपर को ऑक्सफोर्ड नीति और मानव विकास पहल (ओपीएचआई) और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के आंकड़ों के आधार पर तैयार किया गया है। गरीबी से मुक्त हुई आबादी के आकलन के लिए बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) के 12 पैरामीटर को चुना गया है। यह वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त तरीका है, जो मौद्रिक पहलुओं से परे अनेक आयामों में गरीबी को दर्शाता है।
देशभर में 24.84 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकले हैं। इनमें गरीबी को हराने वालों में सर्वाधिक 5.94 करोड़ लोग उत्तरप्रदेश के और 3.77 करोड़ लोग बिहार के हैं। 1.87 करोड़ के साथ राजस्थान चौथे स्थान पर है। वहीं 2 करोड़ तीस लाख लोग मध्य प्रदेश के हैं।
वर्ष 2005-06 से वर्ष 2015-16 की अवधि में 7.69% की वार्षिक दर से गरीबी घट रही थी। जबकि 2015-16 से 2019-20 की अवधि में गरीबी में वार्षिक गिरावट दर तेज होकर 10.66% पहुंच गई थी। यदि इसी दर से लोग गरीबी रेखा से बाहर आए तो वर्ष 2030 तक भारत बहुआयामी गरीबी को आधा करने के अपने एसडीजी लक्ष्य (सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल) को प्राप्त कर लेगा।
बिहार में 26.59% आबादी गरीब है। इसके बाद झारखंड (23.34%), यूपी (17.40%), मध्य प्रदेश (15.01%), छत्तीसगढ़ (11.71%), राजस्थान (10.77%) है। केरल (0.48%) में सबसे कम गरीबी है। इसके बाद तमिलनाडु (1.48%), तेलंगाना (3.76%), हिमाचल (1.88%) हैं।
रिपोर्ट के अनुसार देशभर में, 41.3% लोग बेघर हैं। स्वच्छ भारत अभियान के बावजूद 31% टायलेट से वंचित हैं। तमाम अभियानों के बाद 44% के पास रसोई गैस नहीं हैं। 20 साल में 14.61% लोगों को ही घर मिला है। रिपोर्ट 12 मानकों के आधार पर तैयार हुई है।
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